विवादों से खेलता रहा है जेके बैंक
नवीन नवाज जम्मू जम्मू कश्मीर बैंक का विवादों से पुराना नाता है। हवाला एनपीए अवैध नियुक्तियां.. शायद बैंकिग सेक्टर का कोई ऐसा आरोप या विवाद नहीं बचा होगा जो इसके साथ न जुड़ा हो।
नवीन नवाज, जम्मू
जम्मू कश्मीर बैंक का विवादों से पुराना नाता है। हवाला, एनपीए, अवैध नियुक्तियां.. शायद बैंकिग सेक्टर का कोई ऐसा आरोप या विवाद नहीं बचा होगा जो इसके साथ न जुड़ा हो। लेकिन शनिवार को जो हुआ, उसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। जम्मू कश्मीर बैंक के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक परेवज अहमद नेंगरु को उनके कार्यकाल के समाप्त होने से करीब पांच माह पहले ही हटा दिया गया। उनके कार्यालय व घर में छापेमारी हुई। भ्रष्टाचार के मामलों की जांच शुरू हो गई है। इससे रियासत की सियासत में ही नहीं, व्यापारिक जगत में भी खूब हलचल हो रही है।
जम्मू कश्मीर बैंक देश में किसी राज्य के स्वामित्व का पहला बैंक है। कहने को तो यह जम्मू कश्मीर बैंक है, लेकिन बैंक की कार्यप्रणाली, इसमें नियुक्त कर्मचारियों की संख्या, बैंक द्वारा दिए जाने वाले कर्ज से लाभान्वित होने वालों की संख्या के आधार पर अगर बात की जाए तो यह कश्मीर संभाग और विशेषकर कश्मीरियों के वर्चस्व वाला बैंक है। जम्मू सिर्फ नाम के लिए कश्मीर के आगे जुड़ा है, अन्यथा वह पीछे है। लद्दाख कहीं नजर नहीं आता। हालांकि, आधिकारिक तौर पर बैंक ने कभी ऐसे खातों का ब्यौरा जारी नहीं किया, जिन्हें खुलवाने वाले कभी बैंक तक नहीं पहुंचे, लेकिन उनमें लेनदेन की तथाकथित प्रक्रिया बदस्तूर जारी है। ऐसे कई खाते हैं, जिनमें अज्ञात स्रोतों से पैसा आता है, छोटी-छोटी रकम विभिन्न जगहों से पहुंचती है और अचानक निकल जाती है। बैंक के कई अधिकारियों के दुबई व खाड़ी के अन्य देशों के कथित दौरे भी 1990 के दशक के दौरान खूब रहे हैं। बैंक में कई खातों के बारे में कहा जाता है कि वह सिर्फ हवाला कारोबारियों के लिए ही हैं। राज्य में आतंकवाद को वित्तीय आक्सीजन देने के आरोप भी बैंक पर लगते रहे हैं, लेकिन इन आरोपों की जांच के लिए कभी राज्य प्रशासन द्वारा हरी झंडी नहीं दी गई।
1990 के दशक में आतंकी हिसा शुरू होने पर जम्मू कश्मीर में जब अन्य बैंकों ने अपनी गतिविधियां सीमित कीं तो जेके बैंक ने अपना कारेाबार बढ़ाया। इसके साथ ही बैंक की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े हुए। आरबीआई ने कई बार नियमों के उल्लंघन पर बैंक को फटकार लगाई।
अलबत्ता, बैंक को लेकर करीब पांच साल पहले पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबु जो जम्मू कश्मीर बैंक के चेयरमैन भी रह चुके हैं, ने 2014 की शुरुआत में तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस सरकार के मुखिया उमर अब्दुल्ला पर निशाना साधते हुए जेके बैंक पर 2500 करोड़ रुपये का एनपीए छिपाने का आरोप लगाया था। उन्होंने आरबीआई से जेके बैंक के भीतर जारी वित्तीय घोटालों व अनियमितताओं का पता लगाने के लिए एक स्पेशल ऑडिट की मांग की थी। इसके कुछ ही दिनों बाद यह तथ्य भी सामने आया कि बैंक ने 1100 करोड़ रुपये के तीन एनपीए खाते भी अपनी बैलेंस शीट से गायब कर दिए। इनमें से 650 करोड़ रुपये कोलकाता की एक कंपनी को दिए गए थे, जबकि 400 करोड़ का कर्ज मुंबई की एक रियल एस्टेट कंपनी को दिया गया। उक्त कंपनी ने भी कर्ज नहीं चुकाया और उसके द्वारा जो चेक दिए गए थे वह बाउंस हो गए। तीसरा कर्जदार बेंगलूर स्थित दूरसंचार क्षेत्र की एक कंपनी का प्रोमोटर था, जो धोखाधड़ी के मामले में पकड़ा गया था।
वर्ष 2014 की विनाशकारी बाढ़ और वर्ष 2016 के हिसक प्रदर्शनों का नाम लेते हुए वर्ष 2016-17 के दौरान बैंक ने 600 करोड़ का घाटा दिखाया। इससे उबारने के लिए राज्य सरकार ने 532 करोड़ का पूंजी निवेश किया। इसके बावजूद एनपीए छह हजार करोड़ तक पहुंच गया था। उस समय भी उंगलियां उठीं, लेकिन मामला दबा दिया गया। लेकिन वर्ष 2018 में जब पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार गिरी तो बैंक की कार्यप्रणाली के खिलाफ आवाज भी पहले से कहीं ज्यादा मुखर हो गई ,क्योंकि यह आवाज अब कश्मीर से भी उठ रही थी।
तत्कालीन राज्यपाल एनएन वोहरा ने बैंक अधिकारियों की एक बैठक में परवेज अहमद नेंगरु की कार्यप्रणाली पर कड़ा एतराज जताया था। उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि बैंक को बैंक की तरह चलाया जाए, यह किसी वर्ग विशेष के हितों की रक्षा के लिए नहीं है। उन्होंने बैंक के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक के पद अलग करने पर भी जोर दिया था। उन्होंने बैंक में घोटालों व नियुक्तियों के फर्जीवाड़े की तरफ भी संकेत किया था। वोहरा के जाने के बाद राज्यपाल बने सत्यपाल मलिक ने सार्वजनिक तौर पर कश्मीर के 40 युवकों की शिकायत का जिक्र कर अन्य लोगों को भी मौका दिया। पहली बार बैंक में हुई नियुक्तियों को लेकर प्रशासनिक कार्रवाई होती नजर आई, लेकिन तथाकथित अवैध नियुक्तियों को रद्द नहीं किया गया, लेकिन जिन्हें योग्यता के बावजूद नकारा गया था, उन्हें एडजस्ट किया गया। यह करीब 582 नियुक्तियों का मामला था, जिनके लिए 19 मार्च 2015 को आनलाइन आवेदन मांगे गए थे। परिणाम नौ मार्च 2017 को घोषित हुए तो सब हैरान हो गए। क्योंकि आवेदन सिर्फ रिलेशनशिप एक्जीक्यूटिव यानी आरई के लिए मांगे गए थे। सिर्फ 350 आरई चुने गए और 1250 बैंकिग एसोसिएट भी घोषित किए। बैंकिग एसोसिएट के लिए कभी किसी ने न आवेदन मांगा था और न किसी ने किया था। मामला तूल पकड़ता, उससे पहले ही उन लड़कों को एडजस्ट कर दिया गया, जो आरई की चयन परीक्षा में कामयाब होने के बावजूद नियुक्त नहीं किए गए थे। छानबीन के दौरान पता चला कि आरई पद के लिए लिखित परीक्षा में पास करने के बाद साक्षात्कार में विफल रहने वालों को बैंकिग एसोसिएट नियुक्त किया गया है। लेकिन इनमें कई ऐसे निकले जिन्होंने किसी भी पद के लिए आवेदन नहीं किया था। इसके अलावा भी 500 से ज्यादा लोगों को चोर दरवाजों से विभिन्न पदों पर बैंक मे लगाया गया। इन नियुक्तियों पर जब भी सवाल उठा तो कहा गया कि बैंक एक स्वायत्त संस्था है और चेयरमैन के पास नियुक्तियों का अधिकार है।
बैंक ने खुद को सूचना के अधिकार के दायरे से हमेशा बाहर रखा। हालांकि वर्ष 2009 मे राज्य सूचना आयोग ने जम्मू कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद दो के तहत साबित किया कि जम्मू कश्मीर बैंक एक सार्वजनिक संस्था है। आयोग ने अपने फैसले में कहा था कि जम्मू कश्मीर बैंक की स्थापना जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने एक कानून के तहत की थी। इसके अलावा यह बैंक 1956 में एक कंपनी में बदला गया और इसलिए यह सूचना के अधिकार के दायरे में आता है। इसके अलावा यह भी बताया किया बैंक में सरकार की हिस्सेदार ही अधिक है और इसके अलावा महाराजा के आदेश पर ही जम्मू कश्मीर बैंक की इमारत का निर्माण हुआ और इस संदर्भ में महाराजा द्वारा 10 जुलाई 1939 को भी एक निर्देश की पुष्टि की गई थी जो बैंक को आरटीआई के दायरे में लाने का पर्याप्त आधार है। लेकिन जम्मू कश्मीर बैंक ने इसके खिलाफ अदालत का सहारा लिया और नवंबर 2017 में उसने उच्च न्यायालय को बताया कि बैंक राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित नहीं है। इसलिए वह आरटीआई के दायरे में नहीं आता। कभी भी आरटीआई का पालन नहीं किया
बीते साल राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य प्रशासनिक परिषद की एक बैठक में जम्मू कश्मीर बैंक को सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम घोषित करते हुए इसे आरटीआई के दायरे में खड़ा कर दिया। इस मामले पर खूब हंगामा हुआ। पीडीपी, नेकां समेत विभिन्न राजनीतिक दलों ने इसे जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे और बैंक की स्वायत्तता पर आघात करार दिया। मामले को तूल पकड़ते देख राज्यपाल ने अपना सार्वजनिक उपक्रम का फैसला बदल लिया, लेकिन आरटीआई के दायरे से बैंक को बाहर नहीं किया। इसके बावजूद बैंक ने कभी भी आरटीआई का पालन नहीं किया। लेनदेन की कानोंकान किसी को खबर नहीं होती
जम्मू कश्मीर बैंक को लेकर राज्य के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि जम्मू कश्मीर बैंक ने खुद को पूरी तरह से एक लौह आवरण से ऐसे ढक रखा है जैसे कोई गोपनीय एजेंसी हो। बैंक में रिक्रूटमेंट, कर्ज आवंटन, कर्ज न चुकाने वालों, खातों में लेनदेन की जांच को लेकर किसी को भी कानोंकान खबर नहीं लगने देता रहा है। इस तरह की गोपनीयता सिर्फ खुफिया एजेंसियों में ही होती है या वहां जहां कोई घोटाला चल रहा होता है।