जम्मू-कश्मीरः उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती से छिनेंगी सुविधाएं
Omar Abdullah. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला महबूबा मुफ्ती से सरकारी आवास सुविधाएं और स्टाफ वापस ले लिया जाएगा।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद बहुत कुछ बदल जाएगा। पुलिस हिरासत में लिए पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती से सरकारी आवास, सुविधाएं और स्टाफ वापस ले लिया जाएगा। सर्वाेच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुरूप कोई भी पूर्व सीएम पदाच्युत होने के बाद सरकारी निवास का अधिकार नहीं रखता है।
गौरतलब है कि इस समय केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में चार पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती हैं। आजाद को छोड़ अन्य तीनों कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाले और सबसे ज्यादा पॉश माने जाने वाले गुपकार मार्ग पर रहते हैं। उमर व महबूबा जिस सरकारी निवास में रहते हैं, वह उन्हें बतौर मुख्यमंत्री आवंटित किए गए थे, लेकिन पद से हटने के बाद भी उन्होंने सुरक्षा का हवाला देकर सरकारी बंगले खाली नहीं किए हैं। दोनों की श्रीनगर में अपनी निजी संपत्ति भी है। गुलाम नबी आजाद ने कोई सरकारी निवास नहीं लिया है। वह कश्मीर प्रवास के दौरान गुपकार मार्ग पर ज्येष्ठा देवी मंदिर से पूर्व जठियार में स्थित जेके बैंक के गेस्ट हाउस में रुकते हैं। एक तरह से उन्होंने गेस्ट हाउस अपने लिए ले रखा है।
अपना मकान किराये पर दिया
डॉ. फारूक अपने मकान में रह रहे हैं। कथित तौर पर मकान का एक हिस्सा एस्टेट विभाग को लीज पर दिया है। इससे मिलने वाला किराया बंद हो सकता है। डॉ. फारूक का कहना है कि बतौर पूर्व मुख्यमंत्री उन्हें सरकारी मकान आवंटित करना राज्य की जिम्मेदारी है।
50 करोड़ रुपये की राशि साज सज्जा पर खर्च की जाती
राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उमर और महबूबा मुफ्ती के निवास पर करीब 50 करोड़ रुपये की राशि विभिन्न सुविधाओं को जुटाने व साज सज्जा पर खर्च की गई है। उमर के निवास में जिम भी है। श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र नौगाम में स्थित महबूबा के पिता स्व. मुफ्ती मुहम्मद सईद के निजी मकान के सौंदर्यीकरण और आवश्यक मरम्मत पर भी राज्य सड़क एवं भवन निर्माण विभाग ने लाखों रुपये खर्च किए हैं।
चारों पूर्व सीएम को सुरक्षा के नाम पर पुलिस व केंद्रीय बलों का दस्ता, जैमर, बुलेट प्रूफ वाहनों के अलावा घरों में विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए कुछ सरकारी स्टाफ भी हैं। इनका खर्च भी राज्य सरकार उठाती है। केंद्रीय कानून लागू होने के बाद सभी से यह सुविधाएं वापस ली जा सकती हैं। सुरक्षा दस्ते में भी कटौती हो सकती है।
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