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Amarnath Yatra: पहले धर्म, पर्यावरण और अब सुरक्षा प्रबंध को मुद्दा बना रहे कश्‍मीरी दल, जानिए क्या है ये सियासी खेल! Srinagar News

अलगाववादी सीधे शब्दों में इस यात्रा को भारतीयता से जोड़ते हुए कहते हैं और उन्‍हें डर है कि कश्मीर में उनकी दुकानें कमजोर हो सकती हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 09 Jul 2019 01:12 PM (IST)Updated: Tue, 09 Jul 2019 01:12 PM (IST)
Amarnath Yatra: पहले धर्म, पर्यावरण और अब सुरक्षा प्रबंध को मुद्दा बना रहे कश्‍मीरी दल, जानिए क्या है ये सियासी खेल! Srinagar News
Amarnath Yatra: पहले धर्म, पर्यावरण और अब सुरक्षा प्रबंध को मुद्दा बना रहे कश्‍मीरी दल, जानिए क्या है ये सियासी खेल! Srinagar News

जम्मू, नवीन नवाज। श्री अमरनाथ की वार्षिक यात्रा को शुरु हुए लगभग एक सप्ताह ही बीता है। दुर्गम मार्ग पर आतंकियों की धमकियों को दरकिनार कर भगवान श्री अमरेश्वर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या एक लाख का आंकड़ा पर कर चुकी है। प्रशासन और सुरक्षा बलों के कड़े प्रबंध और श्रद्धालुओं के जोश को देखते हुए श्रद्धा का यह ज्‍वार बढ़ता ही जा रहा है। यही जोश अलगाववादी नेताओं और उनके कथित हितचचिंतकों को रास नहीं आ रहा। खुलकर यात्रा का विरोध नहीं किया जाता पर अब आम नागरिकों की मुश्किलों का बहाना बनाकर कश्‍मीरी दलों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। हालांकि सनातक परंपरा और कश्‍मीरियत की प्रतीक इस यात्रा को हर बार विवाद में घसीटने की साजिश रची जाती है।

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श्री अमरनाथ की वार्षिक यात्रा को लेकर किए गए सुरक्षा प्रबंधों पर हंगामा करने का प्रयास जारी है। साफ है यह हंगामा उसी सियासत और मानसिकता के कारण है जो इस तीर्थयात्रा के खिलाफ है। यात्रा के नाम पर बार-बार विवाद पैदा करने की साजिशें होती रही। वर्ष 1990 के बाद आतंकी संगठन हरकत उल अंसार ने इस यात्रा पर रोक लगाने का फतवा जारी कर दिया। हालांकि 1996 के बाद कभी भी आतंकी संगठनों ने सार्वजनिक तौर पर यात्रा के खिलाफ किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन श्रद्धालुओं को बार-बार निशाना बनाने की साजिश रची जाती रहीं। बीते तीन दशक के दौरान श्री अमरनाथ यात्रा के लगभग 120 श्रद्धालुओं की हत्या की जा चुकी है। भले ही मौसम के कारण कभी बाधा आई हो पर श्रद्धालुओं का जोश लगातार बढ़ता ही गया।

अलगाववादी सीधे शब्दों में इस यात्रा को भारतीयता से जोड़ते हुए कहते हैं और उन्‍हें डर है कि कश्मीर में उनकी दुकानें कमजोर हो सकती हैं। चूंकि आम कश्‍मीरी की इसमें सीधी भागेदारी होती है। इसलिए वह धर्म की आड़ लेने से नहीं चूकते। यह दुश्‍प्रचार किया जाता है कि आरएसएस इस यात्रा को बढ़ा रही है और उनके संगठन पूरे कश्मीर को शैव परंपरा का एक बड़ा तीर्थ क्षेत्र घोषित करने के लिए इस तीर्थयात्रा को बढ़ावा दे रही है। पर वह खुलकर विरोध करने का साहस नहीं कर पाते। साथ ही प्रत्‍यक्ष तौर पर इसे कश्मीर की साझी विरासत का प्रतीक बताते हैं।

उनका धर्म का दुष्‍प्रचार काम नहीं आया तो फिर पर्यावरण के एजेंडे के बहाने श्रद्धालुओं की संख्‍या को सीमित करने की साजिश रची गई। यह तय किया गया कि रोजाना दो से अढ़ाई हजार श्रद्धालु ही पवित्र गुफा तक जाएं और यात्रा मात्र 15 दिन की होनी चाहिए। इसके अलावा श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड में कश्मीरी मुस्लिमों और कश्मीरी पंडितों की निर्णायक भूमिका होनी चाहिए।

2003 में पहली बार सामने आया विवाद

यह विरोध चलते रहे पर अलबत्ता यात्रा के खिलाफ कश्मीर में अगर मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध जताया तो वर्ष 2003 में पीडीपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के दौर में। राज्य सरकार और बोर्ड के बीच या फिर यूं कहा जाए कि तत्कालीन मुख्यमंत्री और तत्कालीन राज्यपाल एसके सिन्हा के बीच विवाद यात्रा की अवधि को लेकर शुरु हुआ। तत्कालीन राज्यपाल एसके सिन्हा चाहते थे कि यात्रा की अवधि को बढ़ाया जाए। उस समय मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों एक-दूसरे के सामने आए गए थे। राज्य सरकार किसी भी तरह से यात्रा की अवधि को बढ़ाने के पक्ष में नहीं थी लेकिन राज्यपाल ने इसे दो माह तक करवा ही लिया। इस पर विरोध भी बढ़ गया। अलगाववादियों को कश्मीर के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के अलावा मुख्यधारा की सियासत करने वालों को भी समर्थन मिलने लगा। उन्होंने इसे पर्यावरण के लिए घातक बता विरोध तेज कर दिया। यात्रियों की संख्या काे सीमित करने की मांग उठाई।

अमरनाथ भूमि आंदोलन में साफ हुआ एजेंडा

इस यात्रा पर तीखी सियासत वर्ष 2008 में हुई। श्री अमरनाथ भूमि अांदोलन के बहाने पहली बार जम्मू संभाग कश्मीरी दबंगई के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। विवाद उस समय शुरु हुआ, जब राज्य सरकार ने बालटाल में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बोर्ड को अस्थायी तौर पर जमीन देने का फैसला किया। पीडीपी ने इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद से समर्थन वापस ले लिया। हंगामा बोर्ड को जमीन देने के फैसले से शुरू हुआ था लेकिन यात्रा शुरु होने से पहले प्रमुख अलगाववादी नेता मसर्रत आलम ने अलगाववादी एजेंडे पर हंगामा शुरू कर दिया। कश्मीर जमीन देने के खिलाफ सड़क पर उतर आया जबकि जम्‍मू में लोग बोर्ड को जमीन देने के पक्ष में आ गए। कभी पर्यावरण का बहाना बनाया गया और कभी प्रदेश के बाहर के लोगों को बसाने की साजिश के तौर पर प्रस्‍तुत किया गया। वर्ष 2009 में शोपियां में दो युवतियों की रहस्यमय मौत के बहाने यात्रा पर इसका असर नजर आया। वर्ष 2010 में कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शनों को भी श्री अमरनाथ की वार्षिक तीर्थयात्रा के संपन्न होने के बाद तक अलगाववादियों ने चलाया।

विरोध के पीछे परंपराओं को नष्‍ट करने की साजिश

कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ डा अजय चुरुंगु ने कहा कि काेई लाख बार कहे कि कश्मीर में कोई भी श्री अमरनाथ की वार्षिक तीर्थयात्रा का विरोधी नहीं है, उसकी बात का यकीन नहीं किया जा सकता। श्री अमरनाथ की वार्षिक तीर्थयात्रा उन लोगों के लिए सबसे खतरनाक है, जो कश्मीर में सनातन संस्कृति की धरोहरों और परंपराओं को नष्ट करना चाहते हैं। यह तीर्थयात्रा और इसमें शामिल होने वाले श्रद्धालु कश्मीर में भारतीय संस्कृति और भारतीय राष्ट्रवाद के संवाहक हैं। यह कश्मीर में एक वर्ग विशेष की छद्म धर्मनिरपेक्ष छवि को बेनकाब करती है, इसलिए इसका विरोध होता है। अलगाववादियों और आतंकियों को पता है कि यात्रा के दौरान जितना वह माहौल बिगाड़ेंगे, उतना लोग यात्रा पर आने से बचेंगे। कश्मीर में मुख्यधारा की सियासत करने वाले अगर इस मुद्दे पर अलगाववादियों के खिलाफ हैं ताे वह क्यों खुलकर उनकी निंदा क्यों नहीं करते, वह यह कहने से क्यों डरते हैं कि श्री अमरनाथ की यात्रा कश्मीर की शैव परंपरा का प्रतीक है और यात्रा से उन्हें कोई एतराज नहीं है।

हर रोज के बंद का विरोध क्‍यों नहीं

अलगाववादी बार-बार बंद का आह्वान कर सूबे के जनजीवन में खलल डालते हैं। तब न उन कश्‍मीरी दलों को लोगों की असुविधा दिखती है और न ही परेशानी। उसका विरोध करने का साहस वह नहीं जुटा पाते। 


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