ठाकुरद्वारा में राम कथा सुनने उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़
जागरण संवाददाता राजौरी ठाकुरद्वारा नौशहरा में चल रही रामकथा में हजारों की भीड़ उ
जागरण संवाददाता, राजौरी : ठाकुरद्वारा नौशहरा में चल रही रामकथा में हजारों की भीड़ उमड़ी। श्री श्री 1008 इंद्रेश्वर आनंद महाराज वृंदावन वाले ने अपनी पावन वाणी से श्रोताओं को कृतार्थ करते हुए राम कथा सुनाई। बुधवार की कथा में राम जी के विवाह का प्रसंग सुनाया गया, जिसमें राजा जनक के दरबार में सीता का स्वयंवर रखा गया।
उसमें यह शर्त थी कि जो शिव जी के धनुष को तोड़ेगा, वह सीता के गले में वरमाला पहना सकता है। गुरु जी को भी सीता जी के स्वयंवर में बुलाया गया। उनकी आज्ञा से राम-लक्ष्मण दोनों जनकपुरी में पहुंचे, जहां स्वयंवर में राजा-महाराजाओं की भीड़ लगी हुई थी। जब रावण समेत सभी राजा शिव जी के धनुष को न तोड़ पाए तो राजा जनक विलाप करते हुए कहते हैं कि क्या धरती सुर वीरों से खाली हो गई है। इतना कहते ही लक्ष्मण क्रोधित होकर अपने स्थान पर खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि राजेंद्र को यह बात शोभा नहीं देती कि वह सभी को एक समान समझते हैं। मेरे बड़े भाई राम और गुरु महाराज की आज्ञा हो तो मिनट में धनुष को तोड़ सकता हूं, मगर अपने बड़े भाई के होते हुए मैं धनुष को नहीं तोड़ सकता। इतने में विश्वामित्र जी राजा जनक के पास जाकर उनको सांत्वना देते हुए चुप कराते हैं और कहते हैं कि राजन तेरी बेटी का विवाह जरूर होगा। धरती सुर वीरों से खाली नहीं हुई है। चक्रवर्ती महाराज दशरथ के दोनों पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम राम और लक्ष्मण मेरे साथ पधारे हैं। वे इस धनुष को उठाएंगे। आप चिता न करें। इसके बाद गुरु की आज्ञा पाकर राम जी उठे और शिव जी के धनुष को प्रणाम करते हुए उसकी पूजा की। वहीं, सीता जी मां गौरी से प्रार्थना करती हैं कि हे मां गौरी, मेरे पति श्रीराम जी हों। गौरी माता की कृपा से प्रभु राम जी ने धनुष को उठाया और तोड़ दिया। सीता राम जी के गले में वरमाला डालने लगीं, तब राम जी ने कहा कि गुरु जी मैं आपकी हर बात मानता हूं, लेकिन जब तक मेरे माता-पिता की आज्ञा नहीं होगी मैं सीता के गले में कैसे डालूं। तभी विश्वामित्र जी ने जनक राजा से पत्र लिखवा कर अवधपुरी में महाराजा दशरथ के पास भेजा। दशरथ ने यह समाचार सुना तो हर्षोल्लास के साथ अवधपुरी से बरात जनकपुरी में आई। इसके साथ ही उपस्थित सारी संगत खुशी मनाते गाते, नाचते भगवान राम की दया पर खुशियां मनाई। भगवान राम अपने माता-पिता की और गुरु की आज्ञा से सीता से वरमाला पहनाते हैं। उनके साथ आए हुए भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण की भी शादी जनकपुरी में होती है। मंगल गीत गाए जाते हैं। कथा में कथा व्यास जी ने कहा कि माता-पिता, पति, भ्राता सबका धर्म मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने निभाया। इसके बाद आरती पूजा हुई और प्रसाद बांटा गया।
इस मौके पर श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर संतोष दास मुनि जी महाराज ने अपने प्रवचनों से संगत को निहाल करते हुए कहा कि नौशहरा नगर में पिछले दिनों से चल रही राम कथा के दो दिन रह गए हैं। रामकथा में भाग लेकर अपने जीवन को सफल बनाएं और पुण्य के भागी बनें। आने वाले दो दिनों में नौशहरा नगर में फूलों की वर्षा विमान द्वारा की जाएगी। संतों महंतों का आगमन पहले ही हो चुका है और आने वाले दो दिनों में कई साधु-महात्मा देश के कोने-कोने से आएंगे। संत समागम होगा।