गुरु ही खोलते हैं मोक्ष का द्वार:स्वामी विश्वात्मानंद जी
जागरण संवाददाता राजौरी सुंदरबनी के ज्ञान गंगा आश्रम में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे
जागरण संवाददाता, राजौरी : सुंदरबनी के ज्ञान गंगा आश्रम में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन पीठाधीश्वर महामंडेलश्वर राजगुरु 1008 स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी महाराज ने संगत को अपने प्रवचनों से निहाल किया।
पांचवें दिन की कथा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि गुरु ही मोक्ष के द्वार खोलते हैं। गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेते ही कर्म का चयन किया। नन्हें कृष्ण ने जन्म के छठे दिन ही शकटासुर का वध कर दिया, सातवें दिन पूतना को मौत को नींद सुला दिया। तीन महीने के थे तो कान्हा ने व्योमासुर को मार गिराया। प्रभु ने बाल्यकाल में ही कालिया वध किया और सात वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत को उठा कर इंद्र के अभिमान को चूर-चूर किया। गोकुल में गोचरण किया तथा गीता का उपदेश देकर हमें कर्मयोग का ज्ञान सिखाया। प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन में अग्रसर रहना चाहिए।
स्वामी जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और कंस वध का भजनों सहित विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म लेकर भी जो व्यक्ति पाप के अधीन होकर इस भागवत रुपी पुण्यदायिनी कथा को श्रवण नहीं करते तो उनका जीवन ही बेकार है और जिन लोगों ने इस कथा को सुनकर अपने जीवन में इसकी शिक्षाएं आत्मसात कर ली हैं तो मानों उन्होंने अपने पिता, माता और पत्नी तीनों के ही कुल का उद्धार कर लिया है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गोवर्धन की पूजा करके इद्र का मान मर्दन किया। भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का साधन गौ सेवा है। श्रीकृष्ण ने गो को अपना आराध्य मानते हुए पूजा एवं सेवा की। याद रखो, गो सेवक कभी निर्धन नहीं होता। इस अवसर पर काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ मौजूद थी।