ज्ञान गंगा मठ में सजा श्रीकृष्ण दरबार
जागरण संवाददाता राजौरी सुंदरबनी में ज्ञान गंगा मठ में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर क
जागरण संवाददाता, राजौरी : सुंदरबनी में ज्ञान गंगा मठ में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान नियमों का पूरी तरह से पालन किया गया और शारीरिक दूरी को कायम रखकर पूजा-अर्चना की गई। मठ में पीठाधीश्वर राज गुरु महामंडलेश्वर 1008 स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी महाराज की अगुआई में श्रीकृष्ण दरबार सजाया गया और मठ में मौजूद विद्यार्थियों, साधु-संतों ने मिलकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की।
इस अवसर पर अपने प्रवचनों से संगत को निहाल करते हुए स्वामी विश्वात्मानंद ने कहा कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार और हिदू धर्म के ईश्वर माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। श्रीकृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे। स्वामी जी ने कहा कि उनका बचपन गोकुल में व्यतीत हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए, जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहां अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया, जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। 124 वर्षो के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। स्वामी जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा से ही पापों का नाश हो जाता है।