आज भाजपा कार्यकर्ता मुखर्जी के प्रतिमा स्थल पर जुटेंगे
पहले जिला कठुआ के पास रावी दरिया पर जम्मू कश्मीर में अलग विधान और निशान के खिलाफ आंदोलन छेड़ कर अपना बलिदान दिया थाउसकी याद में भाजपा ने गत वर्ष उनके जन्म दिन पर प्रदेश में पहली मूर्ति स्थापित कर सच्ची श्रद्धांजलि दीउसके तीन महीने के बाद जम्मू कश्मीर से करीब 7 दशक पुरानी व्यवस्था को बद
राकेश शर्मा, कठुआ : एक विधान एक निशान आंदोलन के नायक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के मूर्ति स्थल पर मंगलवार यानि आज पहला बलिदान दिवस मनेगा। प्रदेश के मुख्य प्रवेश द्वार कठुआ में पहली मूर्ति स्थापित कर मुखर्जी के सपने को भाजपा ने जम्मू कश्मीर में लागू किया एक विधान एक निशान।
जिस नेता ने 67 वर्ष पहले जिले के रावी दरिया पर जम्मू कश्मीर में अलग विधान और निशान के खिलाफ आंदोलन छेड़ कर अपना बलिदान दिया था, उसकी याद में भाजपा ने गत वर्ष उनके जन्म दिन पर प्रदेश में पहली मूर्ति स्थापित कर सच्ची श्रद्धांजलि दी, उसके तीन महीने के बाद जम्मू कश्मीर से करीब 7 दशक पुरानी व्यवस्था को बदल कर उनके सपने को पूरा करते हुए एक विधान एक निशान को लागू कर दिया। हालांकि, भाजपा मुखर्जी के बलिदान दिवस को हर साल पखवाड़े के रूप में मनाती आ रही है, लेकिन आज जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में ऐसा पहला मौका होगा, जब उनके बलिदान के बाद उनके मूर्ति स्थल पर पहला बलिदान दिवस होगा।
भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहे डॉ. मुखर्जी, जिन्होंने 1953 के आंदोलन में भाजपाइयों के भीतर राष्ट्रीयता की भावना को उजागर करते हुए पहला आंदोलन प्रजा परिषद के बैनर तले कठुआ जिला के समीप पंजाब से सटे रावी दरिया के पुल पर शुरू किया था। उस आंदोलन में उन्हें प्रदेश सरकार ने रावी दरिया पुल पार करने पर गिरफ्तार करते हुए जेल में डाल दिया, जहां उनकी मौत हुई, मौत कैसे हुई, ये भी रहस्य बरकरार है, लेकिन उनके बलिदान ने जम्मू कश्मीर को अलग निशान औैर अलग विधान की जंजीरों से बाहर करते हुए अभी कुछ माह पहले ही आजाद कर दिया। जिससे उनका बलिदान बेकार नहीं गया आर आज उनके सपनों का जम्मू कश्मीर भारत का अटूट अंग बन चुका है, जहां पर अब अलग विधान एवं निशान वाली सरकार का कानून चलने की बजाय राष्ट्रीय सरकार का कानून लागू हो चुका है। ऐसे में उनके बलिदान के बाद जम्मू कश्मीर प्रदेश में कठुआ जिला में लगी पहली मूर्ति पर पहला श्रद्धांजलि कार्यक्रम होना भाजपाइयों के लिए गर्व का मौका रहेगा।
67 साल से भाजपाइयों का नारा 'जहां बलिदान हुआ मुखर्जी का वो कश्मीर हमारा है वो सारे का सारा है', सपना साकार हो चुका है। मुखर्जी के उक्त आंदोलन में उस समय कठुआ के दर्जनों कार्यकर्ता भी शामिल थे, हालांकि, उन्हें उस समय की सरकार ने मुखर्जी के 23 जून को लखनपुर के पास पहुंचने से पहले ही जेलों में डाल दिया था, जिसमें स्वर्गीय चंदा सिंह, स्वर्गीय सुरेंद्र उब्बट, स्वर्गीय लाला निक्का राम, स्वर्गीय अमर नाथ सहित दर्जनों कार्यकर्ता थे। जिहोंने मुखर्जी के आहवान पर आंदोलन के खिलाफ बिगुल बजाया था, लेकिन सरकार ने उन्हें एक साल पहले 1952 में ही गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया था। उस समय हीरानगर के दो आंदोलनकर्ता भीखम चंद और बिहारी लाल शहीद हुए थे, जिनकी याद में आज भी भाजपा हर वर्ष 11 जनवरी को हीरानगर में उनका स्मारक पर शहीदी दिवस मनाती है। उस आंदोलन में शामिल कठुआ के चौ. चग्गर सिंह भी है, जो आज भी जीवत है, हालांकि वृद्धावस्था में है, लेकिन उन्हें आंदोलन के दिन आज भी याद हैं और वो मुखर्जी को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं।