इलाज के साथ मरीजों में आत्मविश्वास जगाने की भी जरूरत
राकेश शर्मा कठुआ कोरोना महामारी के इस संकट में अस्पतालों में इलाज के दौरान संक्रि
राकेश शर्मा, कठुआ
कोरोना महामारी के इस संकट में अस्पतालों में इलाज के दौरान संक्रमितों से सीधे रूबरू होने वाले डाक्टरों के पेशे को हर कोई सलाम कर रहा है, जो अपनी जान जोखिम में डाल कर मरीजों को बचाने में लगे हैं। ऐसे में उनके साथ कंधे से कंधे मिलाकर सहयोग करने वाली नर्स की सेवाओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कुछ ऐसी भी नर्स हैं, जिन्होंने सामान्य ड्यूटी से आगे बढ़कर ऐसा काम किया है, जो सबके लिए उदाहरण बन गया है। कुछ ऐसी ही कहानी जीएमसी कठुआ में तैनात युवा स्टाफ नर्स प्रियंका कुमारी की है, जो अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणादायक बन गई हैं। दस महीने से गायनी वार्ड के आपरेशन थियेटर में कार्यरत प्रियंका एक महीने से कोरोना आइसोलेशन में वार्ड में ड्यूटी दे रही हैं। लगातार ड्यूटी के बाद भी प्रियंका थकी नहीं, बल्कि कई अनुभव हासिल किए और वो अनुभवों को अन्य ऐसे मरीजों एवं उनके तीमारदारों के साथ भी साझा कर रही हैं। प्रियंका का कहना है कि कोरोना के मरीजों को दवा ही नहीं, बल्कि करुणा की भी जरूरत होती है। अस्पताल में पहुंचे कोरोना मरीजों के दिल में कैसी-कैसी सोच बनती रहती है, इन सबको प्रियंका ने जाना और फिर उन्हें ऐसी सोच से बाहर निकालने का बीड़ा उठा लिया है। प्रियंका के पिता सीआरपीएफ में तैनात हें, वहीं उनकी बेटी भी इस महामारी के दौरान मरीजों के इलाज में लगातार ड्यूटी देने में पीछे नहीं है। मई की शुरुआत में जब कोरोना संक्रमण का तेजी से प्रसार बढ़ा, तो उन्हें अस्पताल प्रशासन की ओर से स्त्री रोग वार्ड की ड्यूटी आपरेशन थिएटर से हटाकर आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी देने के निर्देश दिए गए। वहां उन्होंने बिना किसी संकोच किए तुरंत ही कोरोना आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी को अंजाम देना शुरू कर दिया। जारी ड्यूटी के दौरान उन्हें मात्र 11 महीने की जीएमसी में सेवा में एक बड़ा अनुभव मिला। तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी, प्रियंका कुमारी पूरे दो महीने के दौरान एक भी बार अपने घर जम्मू स्थित फलाएं मंडाल में नहीं गई। हालांकि 2 महीने पहले उनके पापा घर में आए थे तब उनसे जब मिलने पहुंचीं तो उनके घर पहुंचने से पहले ही पापा ड्यूटी पर चले गए थे। इससे पहले प्रियंका जम्मू के सुपर स्पेशल्टी हास्पिटल में 3 साल तक अनुबंध के आधार पर अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। उनका सबसे बड़ा अनुभव जीएमसी में 11 महीने की सेवा में कोरोना आइसोलशेन वार्ड में लगातार एक महीने से ड्यूटी देना रहा। ड्यूटी के बाद खुद ही अपने रूम में आकर खाना तैयार करना और फिर सुबह उसी वार्ड में चले जाना, जहां मरीज भावनात्मक रूप से थके और डरे हुए रहते हैं। कोट्स---
अकेले और परिवार से दूर रहना और रोजाना पीपीई किट में 6 घंटे की शिफ्ट के बाद अलगाव में रहना कभी-कभी चिता और बहुत तनाव देता है, लेकिन मरीजों की सेवा सर्वोपरि है। इस महामारी से जूझ रहे लोगों को दवा से ज्यादा उनमें बीमारी से लड़ने के लिए आत्मविश्वास पैदा की जरूरत है।
प्रियंका कुमारी, स्टाफ नर्स, जीएमसी, कठुआ