Kathua: मन में धारण करें प्रभु की छवि, मिलेगी शांति : संत सुभाष शास्त्री
शास्त्री जी ने संगत को समझाया कि संसार में हर मानव ¨चतित है। यह इसलिए क्योंकि उसे संतोष नहीं है। मानव के हृदय में सदैव इच्छाएं जन्म लेती हैं। संसारिक वस्तु व्यक्ति एवं पदार्थ चिरस्थायी नहीं होते हैं।
जागरण संवाददाता, कठुआ : नडोली गांव में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दौरान शुक्रवार को उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रवचन में संत सुभाष शास्त्री जी महाराज ने कहा मन में सदैव भगवान की छवि को धारण करें। इससे शांति और संतोष मिलेगा।
उन्होंने कहा कि समाज में अनेक झगड़े, यहां तक की हत्याएं केवल इसलिए हो जाती हैं कि हम वाणी का दुरुपयोग कर जाते हैं। जैसे वाणी के द्वारा तीर से चुभने वाले वचन, अपमानजनक और अहितकर द्वेष जनित क्रोध ¨हसा इत्यादि वाले शब्द बोल देते हैं। इससे दूसरे के मन में अशांति तथा और अप्रसन्नता जन्म लेती है। इस प्रकार बिना किसी कारण ही हम एक शत्रु पैदा कर लेते हैं। इसलिए सदा वाणी का उपयोग मधुरता से करने का प्रयास करें। फलस्वरूप आए दिन आप मित्र बढ़ाते चले जाएंगे।
शास्त्री जी ने संगत को समझाया कि संसार में हर मानव ¨चतित है। यह इसलिए क्योंकि उसे संतोष नहीं है। मानव के हृदय में सदैव इच्छाएं जन्म लेती हैं। संसारिक वस्तु, व्यक्ति एवं पदार्थ चिरस्थायी नहीं होते हैं। इनमें से जो भी आपको प्राप्त होगा, वह एक न एक दिन बिछुड़ जाएगा और फिर आपको उसके बिछड़ने का कष्ट होगा। इसलिए हमें चाहिए कि जो कुछ भी प्रभु ने हमें दिया है, उसमें ही संतोष कर लें तो शांति से रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि असंतोष करना ही है तो भजन में करें क्योंकि भजन जितना हो, उतना ही कम।
जैसे परमार्थ जितना भी हो, उतना ही थोड़ा तथा भगवान के प्रति प्रेम जितना हो, उतना ही थोड़ा। अंत में शास्त्री ने संगत को बताया कि इस जगत में बंधन से मुक्त होने के लिए निसंकल्प होना अति आवश्यक है। जब तक संकल्प होते रहते हैं, मन की क्रियाएं बंद नहीं होतीं। मन का निसंकल्प होना इतना सहज भी नहीं है, तो फिर क्या करें? उपाय यह है कि जगत के संकल्पों को छोड़कर भगवान भगवत संकल्प करें।
ऐसा संकल्प करते हुए मुख से प्रभु के नाम का उच्चारण तथा हृदय, मन और आंखों में प्रभु की छवि को धारण करना चाहिए क्योंकि ऐसा साधक सहजता से प्रभु के अनुग्रह का अधिकारी बन जाता है।