देखरेख के अभाव में जर्जर हो रही है बंद पड़ी स्कूलें
बैठ कर काम करना पड़ता है ऐसी हि स्थिति कृषि विभाग की भी है उन के पास भी पंचायत स्तर पर कार्यालय नहीं। लोगों को इन विभागों से संबंधित काम करवाने के लिए दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता हैं और समय के साथ साथ आने जाने में किराया भी खर्च होता है। पंचायतों की तरफ़ से सरकार से पहले भी मांग कर चुके हैं
संवाद सहयोगी, हीरानगर: शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक गांवों में खोले गए सरकारी स्कूलों में से दर्जनों स्कूल बच्चों की कम संख्या की वजह से बंद पड़े है, बल्कि देख रेख के अभाव में उनके भवन भी क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार जब तक इन स्कूलों को दोबारा नहीं खोलती, तब तक इन खाली पड़े भवनों को विभिन्न विभागों के क्षेत्रीय कर्मचारियों के कार्यालय खोलने चाहिए। ऐसा करने से लोगों को भी अपने काम करवाने में आसानी होगी तथा भवनों की देखभाल भी होती रहेगी। जानकारी अनुसार हीरानगर जोन में 37और मढीन जोन में 14 सरकारी स्कूल इस समय बंद पडे हैं। कोट्स---
राजस्व विभाग के पास पटवार खाना नहीं है, पटवारियों को नयाबत में बैठ कर काम करना पड़ता है, ऐसी स्थिति कृषि विभाग की भी है, उनके पास भी पंचायत स्तर पर कार्यालय नहीं। है लोगों को इन विभागों से संबंधित काम करवाने के लिए दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता हैं, समय के साथ-साथ आने जाने में किराया भी खर्च होता है।
- राम लाल कालिया, चेयरमैन, हीरानगर। कोट्स---
सूबे चक पंचायत में चार सरकारी स्कूल बंद पड़े हैं, जिनकी देखरेख नहीं हो रही। स्कूलों के भवन खाली रहे तो बर्बाद हो जाएंगे। सरकार को इन स्कूलों में आंगनबाड़ी सिलाई कढ़ाई केंद्र या फिर अन्य विभागों के कर्मचारियों को बैठाना चाहिए, ताकि भवनों की देखरेख होती रहे। खाली पड़ी स्कूलों की इमारतों में क्षेत्रीय कार्यालय खोलने चाहिए।
- राकेश खजुरिया, सरपंच, सूबे चक। कोट्स---
बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए दूर न जाना पड़े, इसी उद्देश्य से सरकार ने गांव-गांव में स्कूल खोले थे, लेकिन बच्चों की कम होती संख्या की वजह से इन स्कूलों को बंद करना पड़ा था। लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना चाहिए वैसे भी कोरोना वायरस जैसी महामारी की वजह से छोटे बच्चों को दूर भेजना ठीक नहीं। अगर इन स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़े तो दोबारा खुल सकते हैं।
-तिलक राज, सेवा निवृत्त शिक्षक। कोट्स---डीसी
खाली पड़ी स्कूलों की इमारतों में जरूरत पड़ने पर सरकारी कर्मचारी बैठ सकते हैं। कुछ स्कूलों की, जिनमें पोलिग स्टेशन बनाए गए थे, उनकी मरम्मत करवाई भी गई थी।
-ओपी भगत, डीसी, कठुआ।