अंधकार को मिटाने के लिए त्याग व सहनशीलता की जरूरत
जागरण संवाददाता कठुआ शहर के वार्ड 7 में वीरवार को आयोजित सत्संग में डुग्गर प्रदेश के
जागरण संवाददाता, कठुआ: शहर के वार्ड 7 में वीरवार को आयोजित सत्संग में डुग्गर प्रदेश के संत सुभाष शास्त्री जी महाराज ने श्रद्धालुओं को अपनी वाणी से ज्ञान रूपी गंगा में डुबकी लगवाते हुए बताया कि मनुष्य को 'मैं' को जानने की जरूरत है, इनसे हमारे जीवन का भी संबंध है, इसलिए वे हर कथा में बार-बार समझाते और बताते हैं कि मैं को जानो, जानने वालों को जानो।
क्या जानना है कि मैं ²ष्टा हूं लेकिन मैं ²ष्टा भी नहीं हूं और ज्ञाता भी नहीं हूं, ²ष्टा में इसलिए कहलाता हूं कि वहां मैं अंत:करण की सूक्ष्म प्रज्ञा के लिए हूं वहां मैं बुद्धि को लिए हूं, इसलिए मैं कहता हूं कि शरीर को देख रहा हूं, शरीर ²श्य है, मैं ²ष्टा हूं, जब तक लकड़ी का हिस्सा आग के साथ है तब तक आग कहती है कि मैं तुझे जलाती हूं। तू जल जाएगी। मैं तुझे जलाऊंगी। जलाने का ठेका उसके हाथ तब तक है, जब तक चलने वाला वाले का भाई उसके साथ है। इसलिए मैं को जानने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि इस समस्त संसार एवं इसकी प्रत्येक इकाई को न तो सूर्य, न चंद्र, न तारे, न विद्युत, न अग्नि प्रकाशित करते हैं, वरन एक अद्वितीय आत्मा से ही प्रकाशित होते हैं। वह ज्योतियों की भी ज्योति है। ये आत्मा हमारे अंदर भी है,पर क्या कारण है कि हम अंधकार में सुख के लिए जीवन भर भटका करते हैं। इसका कारण हमारे ग्रंथों के अनुसार हमारे संस्कार, हमारा प्रारब्ध या संचित कर्म है जो कई जन्मो में हमारे द्वारा काम, क्रोध एवं लोभ के आवेश में किए गए कर्माें का प्रतिफाल है। हमारे द्वारा डाले गए आवरण के कारण ही आत्मा का प्रकाश नहीं दिखाई पड़ता है। हम काम, क्रोध, एवं लोभ के विषयों की चादर को अपनी आंखों पर डाले हुए हैं और तृष्णाओं को पूरा करने में ही मनुष्य अधिकांश पाप करता है और अपने को अंधकार से घेर लेता है। इस अंधकार को मिटाने के लिए हमें त्याग, सहनशीलता, क्षमा,अस्तेय, इंद्रियां संयम एवं विवेक के दिए जलाने होंगे। अपना स्वार्थ त्याग कर व्याप्क ²ष्टिकोण अपनाना होगा। सबमें उसी एक ईश्वर को अनुभव करना होगा।