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ज्ञानी होने का अहंकार न रहे तो यही शांति, भक्ति और मुक्ति होना का है मार्ग

जागरण संवाददाता कठुआ श्री अखंड परमधाम नौनाथ घगवाल में जारी दो दिवसीय गुरु पूर्णिमा कार्यक

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 12:38 AM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 12:38 AM (IST)
ज्ञानी होने का अहंकार न रहे तो यही शांति, भक्ति और  मुक्ति होना का है मार्ग
ज्ञानी होने का अहंकार न रहे तो यही शांति, भक्ति और मुक्ति होना का है मार्ग

जागरण संवाददाता, कठुआ : श्री अखंड परमधाम नौनाथ घगवाल में जारी दो दिवसीय गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम के समापन पर आयोजित सत्संग में रविवार को उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को गुरु की महिमा से अवगत करवाते हुए स्वामी परमानंद गिरि जी महाराज के शिष्य संत सुभाष शास्त्री जी महाराज ने कहा कि अंधेरा है तो रोशनी की जरूरत है, किसी वस्तु विशेष का अज्ञान है तो ज्ञान की जरूरत है, निर्गुण को जानना है तो सगुन चाहिए।

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उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में जो कमियां आई हैं वह अज्ञान के कारण आई हैं, कर्म तो बाद में किए, जब हमने चोरी आदि कोई पाप किया तो पहले सत्य को भूले, फिर पाप-अपराध हुए अर्थात आप-अपराध का कारण अज्ञान है। अज्ञावश हम अपने को अधूरा समझते हैं। अपनी असलियत को नहीं जानते हैं कि हम स्वयं आनंद स्वरूप हैं। शास्त्री जी ने कहा कि हमारे दुखों- कलेशों की जड़ अज्ञान है, ज्ञान के अभ्यास से ही निर्मल होंगे, केवल कर्म से नहीं, कर्म से अधूरापन घटेगा नहीं, बल्कि बढ़ेगा अर्थात विषय भोगों से मन को शांति नहीं मिलेगी, संयम नहीं रखा तो और बढ़ेगी जैसे अग्नि में घी तेल डालने पर आग और बढ़ती है। संत जी ने बताया कि ज्ञानी संत के सत्संग की ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान से ही हमारा मन निर्मल होगा और एक बार जब ज्ञान हो जाता है फिर ज्ञान की जरूरत नहीं रहती है। जैसे पानी को निर्मल करने के लिए फिटकरी आदि डाली जाती है, वह पानी को निर्मल करके स्वयं भी नीचे बैठ जाती है, कूड़े के ढेर को आग लगाई जाती है तो आग कूड़े को जलाकर स्वयं भी शांत हो जाती है, कपड़े को साबुन लगाया, बाद में साबुन भी निकाल देते हैं।

उन्होंने कहा कि जब जब तक दुख परेशानी है तब तक ज्ञान भी जरूरी है, जब ज्ञान हो जाता है फिर मैं ब्रह्म हूं, यह भी याद करने की जरूरत नहीं रहती है। आत्म ज्ञान कैसे हो, स्वपन से जगते ही आत्म ज्ञान हो जाता है। यदि मनुष्य विचार करकें कि स्वप्न मैंने देखा था, इस देह ने नहीं, स्वपन में हमने शरीर खड़ा किया,- सांप से डरे रहे हैं। जगे तो अब लाठी-डंडे जरूरत ही नहीं है। पता चल गया कि मैं शरीर नहीं हूं, स्वप्न का अंत मैंने देख लिया है। ज्ञानी होने का भी अहंकार ना रहे तो यहीं शांति, भक्ति, मुक्ति का मार्ग है।


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