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गौ के बिना श्रृष्टि की परिकल्पना अधूरी: आचार्य अभिषेक

संवाद सहयोगी बसोहली चूड़ामणि संस्कृत संस्थान में वैदिक विधि विधान से हवन व गौ पूजन कर गोप

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Nov 2021 12:53 AM (IST)Updated: Fri, 12 Nov 2021 12:53 AM (IST)
गौ के बिना श्रृष्टि की परिकल्पना अधूरी: आचार्य अभिषेक
गौ के बिना श्रृष्टि की परिकल्पना अधूरी: आचार्य अभिषेक

संवाद सहयोगी, बसोहली : चूड़ामणि संस्कृत संस्थान में वैदिक विधि विधान से हवन व गौ पूजन कर गोपाष्टमी पर्व मनाया गया।

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इस अवसर पर संस्थान के प्राचार्य आचार्य अभिषेक कुमार उपाध्याय ने कहा कि गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन एवं गोविन्द की तरह ही भारतीय संस्कृति में गौ पूजन का विधान है, सभी मंगल अवसरों पर गाय एवं कन्या पूजन का विधान वेदों में वर्णित हैं। 'मातर: सर्व भूतानां गाव' अर्थात समस्त प्राणियों की माता है गौ। पृथ्वी पर मनुष्य के अलावा बहुत से जानवर निवास करते हैं, लेकिन सभी को माता नहीं कहते। गाय के ऐसे बहुत से गुण है जो माता से मिलते है, जैसे उसके दूध के सेवन से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है। उसके सद्गगुणों में वृद्धि होती हैं। उसके गोबर और गोमूत्र खेती के लिए पोषक व शरीर के लिए रोग नाशक और रक्त शोधक भी हैं। उन्होंने गाय की महिमा को वैदिक, वैज्ञानिक व पौराणिक उदाहरणों के माध्यम से बताते हुए कहा कि इसके शरीर में एक 'सूर्य केतु नाड़ी' पाई जाती है जो सूर्य किरणों को शोषित करके स्वर्णअक्षर में बदल सकती है, जिससे जीवाणु नाशक एवं रोग प्रतिकारक शक्ति की वृद्धि होती है। गोपाष्टमी पर्व की ऐतिहासिकता की बात करें तो द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने गौ, गोपी और नन्द गांव को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा। अन्त में अष्टमी को इन्द्र भगवान प्रसन्न हुए और भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना किए, गोपियां खुशी से भगवान को गोविन्द नाम से पुकारा और गौ रक्षा के साथ यह अष्टमी तिथि 'गोपाष्टमी' नाम से ख्यात हुई। गोपाष्टमी से संबंधित एक और कथा है कि माता यशोदा जी ने कृष्ण जी के जिद पर उन्हें गौ चारण के लिए वन में भेजी थी शुभमुहूर्त में।

भारतीय संस्कृति में शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन और सिख आदि सभी धर्म संप्रदायों में कर्मकाण्ड एवं उपासना पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। श्रीमद् भागवत पुराण में कहा गया है कि 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:' अर्थात गौ के शरीर में ही सभी देवी देवताओं का निवास हैं। प्राच्य काल से ही गौ धन हमारी अर्थ व्यवस्था के आधारभूत अंग रही, गो धन सम को धन नाही, अर्थात जिसके पास जितनी अधिक गौ वह उतना बड़ा व्यक्ति होता था। हमारे ऋषियों ने बड़े ही दूर ²ष्टि से हमारे जीवन में सहयोग आने वाले वस्तुओं को धर्म एवं पूजा अर्चना से जोड़ दिया, जिससे उनकी रक्षा और अपनी आवश्यकता भी पूरी हो सके, जैसे पेड़-पौधे, नदी- तालाब, गौ-ग्राम आदि।

आचार्य सुरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि अभीष्ट सिद्धि एवं सौभाग्य सिद्धि चाहने वाले को गोपाष्टमी के दिन प†चोपचार से गौ पूजन कर उसके संरक्षण और संवर्धन हेतु संकल्प लेना चाहिए। इस अवसर पर आचार्य महेंद्र उपाध्याय एवं सौरभ शर्मा ने वैदिक विधि विधान से बछड़े सहित गौ पूजन करने और उसके लाभ पर प्रकाश डाले। इस अवसर मोहित शर्मा, मानिक शर्मा, भूषण शर्मा, अभिषेक शर्मा, कार्तिक वर्मा, विनय विलवरिया, अगम शर्मा, सुनन्दन शर्मा, शौर्य शर्मा, सुजल खजुरिया, रोहित, हरीश एवं आस्था पुरोहित सहित संस्थान व नगर के विद्यार्थी उपस्थित रहें।


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