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जलवायु परिवर्तन को देख किसान कैश क्राप्स और ग्रीन हाउस बनाकर करे खेती

जारी परिवर्तन के बीच इस विभाग की विगत दो दशकों से गतिविधियां काफी बढ़ गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा योगदान भी कृषि का ही है। इसी के चलते आए दिन कृषि विभाग से जुड़ी कोई न कोई गतिविधि लोगों को देखने मिल रही हैवहीं इससे जुड़े लोग भी सक्रिय हुए हैं। विभाग द्वारा बदलते जलवायु को

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 09:56 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jan 2020 06:17 AM (IST)
जलवायु परिवर्तन को देख किसान कैश क्राप्स और ग्रीन हाउस बनाकर करे खेती
जलवायु परिवर्तन को देख किसान कैश क्राप्स और ग्रीन हाउस बनाकर करे खेती

कृषि में नई-नई वैज्ञानिक तकनीक एवं जलवायु में परिवर्तन विगत दो दशकों से काफी बढ़ गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा योगदान भी कृषि का ही है। इसी के चलते आए दिन कृषि विभाग से जुड़ी कोई न कोई गतिविधि लोगों को देखने को मिल रही है। विभाग बदलते जलवायु को देखते हुए कृषि की नई-नई तकनीक आए दिन शुरू करके किसानों को वैज्ञानिक कृषि करने के लिए जागरूक कर रहा है, ताकि वे पारंपरिक खेती से हटकर कैश क्रॉप्स वाली खेती की ओर मुड़े। इससे उन्हें जलवायु परिवर्तन व प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं। इसके लिए विभाग किसानों को कई तरह के प्रोत्साहन स्कीमों का लाभ देने में लगा है। जिले में जारी कृषि विभाग की मौजूदा गतिविधियों को लेकर दैनिक जागरण के उप मुख्य संवाददाता राकेश शर्मा ने मुख्य जिला कृषि अधिकारी बी के उपाध्याय से विशेष बातचीत की। उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:- . जिला में इस समय कितने किसान कृषि से जुड़े हैं।

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- जिले में मौजूदा समय में किसानों की संख्या 73381 है, कुल 61535 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र है। -जिले में कौन सी मुख्य फसलें किसान लगाते है।

जिले में कुल 20515 हेक्टेयर क्षेत्र में सिचाई की व्यवस्था है, यानि कुल कृषि क्षेत्र में से 33 फीसद में ही सिचाई होती है, अन्य क्षेत्र पूरी तरह से बारिश पर निर्भर रहता है। इसके कारण कई बार किसानों को कम या ज्यादा बारिश होने पर नुकसान भी उठाना पड़ता है। अब तो पिछले कुछ सालों से वैसे भी जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान हो रहा है। जिले में मुख्य फसल गेहूं, धान, मक्का, सरसों एवं सब्जियां होती है। -गेहूं और धान कितने क्षेत्रफल में होती है।

जिले में कुल कृषि क्षेत्र में से 74 फीसद गेहूं एवं 49 फीसद में धान की फसल लगती है। गेहूं का जिले में 1120770 टन उत्पादन होता है, धान का 102265 टन उत्पादन होता है। जिले में मुख्य फसल गेहू है। जिले में प्रति एक हेक्टेयर में धान का उत्पादन 35.12 और गेहूं का 27 क्विंटल होता है। - जलवायु परिवर्तन से निपटने को किसानों को क्या करना चाहिए।

कृषि विभाग किसानों को अब जलवायु परिवर्तन को देखते हुए पारंपरिक खेती से हटकर कैश क्राप्स (नकदी फसलें जैसे दलहन, सरसों, सब्जियां आदि) और जल्द उत्पादन वाली खेती करने के लिए जागरूक कर रहा है, ताकि छह महीनें के इंतजार वाली फसल के स्थान पर दो महीने में तैयार होने वाली फसलें लगाएं और उन्हें बिगड़ते मौसम से बचाने के लिए ग्रीन हाउस जैसे तरीके अपनाएं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों से सलाह लेकर उसमें समय पर सिंचाई और उसे कितनी मात्रा एवं बचाव के लिए किस तरह की दवा आदि का छिड़काव किया जाए। इसके भी तरीके सीखे। किसानों को आधुनिक तकनीक की खेती की जानकारी देने के लिए उन्हें बाहरी राज्यों में बड़े-बड़े कृषि विवि एवं अनुसंधान केंद्रों में भी विभाग अपने खर्चे पर भेजता है, ताकि उनका एक्पोजर भी बढ़े और वे उन्नत खेती करने वाले किसानों से प्रेरित होकर जहां भी उनका प्रयोग करें।

- जिले में कितने किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा ले रखी है।

जिले में किसान क्रेडिट कार्ड की 46332 किसानों ने सुविधा ले रखी है, -इससे उन्हें क्या लाभ मिलता है।

इसका लाभ एक तो उन्हें समय पर फसल लगाने के लिए होने वाले खर्च पर लोन मिलता है, जिसे फसल निकलने पर वापस भी करना पड़ता है, इसके अलावा उनकी फसल का भी बीमा कवर होता है। -अधिकांश जिले के किसानों को फसल बीमा का लाभ नहीं मिलता है, क्या कारण है।

उसमें बीमा कंपनी की कुछ अपनी गाइडलाइन हैं, जिसके अनुसार वो बीमा कवर करते हैं। - किसानों को सब्सिडी भी मिलता है, किसमें।

- विभाग कृषि के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरणों पर खरीद के लिए सब्सिडी देता है। इसके अलावा जैसे अब गेहूं के बीज के लिए भी सब्सिडी दी जा रही है, विभाग गेहूं के बीज को 3321 रुपये प्रति क्विंटल रेट पर खरीद कर किसानों को 2750 रुपये प्रति क्विंटल दे रहा है। बारिश का सबसे ज्यादा नुकसान जिले के किन क्षेत्रों में हुआ है।

- पानी वाले क्षेत्र दियालाचक के मढ़ीन, हीरानगर, राजबाग, नगरी और कठुआ क्षेत्र में हुआ है। मढ़ीन हीरानगर में तो 100 फीसद नुकसान हो चुका है।


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