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लोभ और मोह के कारण ही इस संसार में अधिकतर पाप कर्म होते हैं : सुभाष शास्त्री

जागरण संवाददाता, कठुआ : जम्मू संभाग के प्रसिद्ध संत शिरोमणि सुभाष शास्त्री जी महाराज ने अपने धार्मिक

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 01:40 AM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 01:40 AM (IST)
लोभ और मोह के कारण ही इस संसार में अधिकतर पाप कर्म होते हैं : सुभाष शास्त्री
लोभ और मोह के कारण ही इस संसार में अधिकतर पाप कर्म होते हैं : सुभाष शास्त्री

जागरण संवाददाता, कठुआ : जम्मू संभाग के प्रसिद्ध संत शिरोमणि सुभाष शास्त्री जी महाराज ने अपने धार्मिक ज्ञान का अमृत प्रवाह जारी रखा हुआ है। मंगलवार को नगरी स्थित माता बाला सुंदरी के मंदिर में आयोजित एक दिवसीय सत्संग कार्यक्रम के दौरान प्रवचन का शुभारंभ कबीर दास जी के दोहे कबीर सो धन संचिए, जो आगे को होय।

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शीश चढ़ावे पोटली, ले जात ना देख्या कोय।।

से करते हुए उपस्थित श्रद्धालुओं को जीवन में धन से ज्यादा धर्म कमाने का उपदेश दिया।

शास्त्री जी ने कहा कि संत कबीर जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से मानव जाति को संदेश दिया कि जीवन में कुछ पाना है, कमाना है तो ऐसा होना चाहिए। जो मृत्यु उपरात भी साथ रहे। इसलिए आप उसी धन का संचय करो जो आगे भी काम दे। अर्थात धर्म रूपी धन का संचय करें। उन्होंने कहा कि शास्त्र अनुसार लोभ और मोह के कारण ही इस संसार में अधिकतर पाप कर्म होते हैं। इसलिए लोगों को त्यागने का प्रयास करें। क्योंकि संसार में बड़े से बड़ा गढ्डा भर सकता है पर मनुष्य का मन नहीं भरता। जो मनुष्य लालसा और वासना से प्रभावित रहते हैं और जिनका मन कामनाओं का जाल बनता रहता है वह कभी तृप्त और संतुष्ट नहीं हो सकते।

शास्त्री जी ने कहा कि धनी और निर्धन के संबंध में शास्त्रों में कहा गया है कि अधिक धन संपन्न होने पर भी जो मनुष्य असंतुष्ट रहता है वह सदा निर्धन है और जो धन से रहित होने के बावजूद संतुष्ट रहता है वह सदा घनी है। धन संपदा से युक्त होकर सांसारिक जीवन भोग विलास से बिताने और विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों के सेवन के बाद भी सभी प्राणी अतृप्त रह कर चले गए। इसलिए कहा गया है कि सदा अपने धर्म का अनुसरण करें क्योंकि मृत्यु होने पर बंधु-बान्धव, मित्र आदि आपके मृत शरीर को लकड़ी और मिट्टी के समान समझकर मुंह फेर लेते हैं केवल मनुष्य धर्म को ही अपने साथ ले जाता है। इसलिए जीवन में धर्म मार्ग को प्राथमिकता दें। इसी से कल्याण संभव है।


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