जिले के पांच छोटे कस्बों में ड्रेनेज व्यवस्था नहीं के बराबर
राकेश शर्मा कठुआ जिले के पांच छोटे कस्बे में ड्रेनेज व्यवस्था नहीं के बराबर है। आलम यह है
राकेश शर्मा, कठुआ: जिले के पांच छोटे कस्बे में ड्रेनेज व्यवस्था नहीं के बराबर है। आलम यह है कि राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन ने बढ़ती आबादी के बावजूद भविष्य की कोई योजना तक नहीं बनाई है।
करीब साढ़े छह लाख की आबादी वाले जिले में कठुआ शहर के अलावा सरकार ने हीरानगर, बसोहली, बिलावर, नगरी और लखनपुर को भी म्यूनिसिपल कमेटी का दर्जा दिया है। विगत चार दशकों से म्यूनिसिपल कमेटी का दर्जा प्राप्त जिले के उपरोक्त पांच छोटे कस्बे की कमेटियों में तो ड्रेनेज सिस्टम का और भी बुरा हाल है। उक्त कमेटी में व्यर्थ पानी की निकासी में मौजूदा ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से असमर्थ हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि म्युनिसिपल कमेटी ने भी ड्रेनेज सिस्टम की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अगर कहीं नई बनाई गई तो उसे भी बिना योजना के ही बना दिया गया। इसके चलते उपरोक्त पांचों छोटे कस्बों की करीब 50 आबादी वाले 52 वार्ड में बदहाल अवस्था में ड्रेनेज दम तोड़ रहा है। इन छोटे कस्बों में रिहायशी क्षेत्र फैलता गया, लेकिन ड्रेनेज व्यवस्था के कोई भी नए प्रबंध नहीं किए गए और न ही अपग्रेड किया गया। गलियों के निर्माण में कमेटियां हमेशा आगे रहती हैं, लेकिन ड्रेनेज को राम भरोसे छोड़ दिया जाता। जबकि किसी भी मार्ग की मजबूती ड्रेनेज व्यवस्था पर ही निर्भर करती है, लेकिन बीते छह दशकों से इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और न ही अभी दिया जा रहा है। अभी तक किसी भी छोटे कस्बे में ड्रेनेज व्यवस्था को लेकर कोई भी भविष्य की योजना तक नहीं बनाई गई है।
अगर बात करें नगरी म्यूनिसिपल कमेटी की, जहां की आबादी करीब 20 हजार है। छह दशक पुरानी कमेटी का दर्जा मिलने के समय आबादी मात्र 10 हजार के करीब थी, लेकिन अब दोगुना हो चुकी है। एक हजार से ज्यादा नए घर बन चुके हैं, लेकिन ड्रेनेज सिस्टम आज भी वही है,जो शुरू में 13 वार्डों में बनाया गया था। नगरी म्यूनिसिपल कमेटी की ड्रेनेज सिस्टम देखकर ऐसा लगता है कि यहां पर सरकार ने सिर्फ कमेटी का गठन किया, उसके बाद दोबारा इसकी सुध लेना ही भूल गई। कस्बे में लगभग सभी ड्रेनेज बदहाल अवस्था में हैं। आलम ये है कि ड्रेनेज और गलियां जमीन स्तर पर बराबर दिखती है। पूरे कस्बे में कई मोहल्लों में तो दम तोड़ चुकी ड्रेनेज के कारण 24 घंटे बदबू का आलम रहता है।
ऐसा ही कुछ हाल है सात हजार आबादी वाले हीरानगर कमेटी का है, यहां अभी तक ड्रेनेज सिस्टम को अपग्रेड तक नहीं किया गया। इसके कारण लोगों के घरों से निकलने वाला व्यर्थ पानी सड़कों पर बह रहा है। कई स्थानों पर तो ड्रेनेज कच्ची ही बनाकर उसमें पानी छोड़ दिया गया है। कोट्स---
पानी की निकासी के लिए सुलताना चौक से लेकर पुराने पुलिस स्टेशन तक ड्रेनेज बनाने की जरूरत है। इसका प्रपोजल बनाया जा रहा है। कुछ वार्ड में सीवरेज विभाग ने पक्के नाले भी बनाए है।
- रवि सैनी, कार्यकारी अधिकारी म्यूनिसिपल कमेटी, हीरानगर। बाक्स----
बिलावर में ड्रेनेज व्यवस्था बदहाल
13 वार्ड और करीब 5 हजार आबादी वाले बिलावर कस्बे में ड्रेनेज व्यवस्था बदहाल है। आज तक ड्रेनेज को अपग्रेड करने के लिए कोई योजना तक नहीं बनी। हालांकि कस्बे में करोड़ो की परियोजनाएं मंजूर हुई, लेकिन ड्रेनेज पर ध्यान नहीं दिया गया। जो हैं, उनके निकास बंद हो चुके हैं। इसके कारण जमा पानी ओवरफ्लो होकर सड़कों पर बह रहा है। हालांकि कई स्थानों पर नाले तो बनाए जा रहे हैं, लेकिन प्लानिग नहीं है। कोट्स---
बिलावर में ड्रेनेज के लिए फिलहाल कोई विशेष योजना को मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन कस्बे में जहां-जहां ड्रेनेज की जरूरत है, ड्रेनेज बनाए जा रहे हैं।
- सुभाष चंद्र रैणा, कार्यकारी अधिकारी, म्यूनिसिपल कमेटी, बिलावर।
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बसोहली और लखनपुर में है ड्रेनेज व्यवस्था
13 वार्ड में करीब 6 हजार आबादी वाले बसोहली कस्बे में ड्रेनेज व्यवस्था है। बिलावर की तरह बसोहली भी पहाड़ी पर स्थित होने के कारण ड्रेनेज पुरानी व्यवस्था के तहत ही काम कर रही है,लेकिन बढ़ती आबादी के चलते अब पुरानी ड्रेनेज उतनी क्षमता वाली नहीं रही, जिसके चलते ड्रेनेज व्यवस्था को अपग्रेड करने की जरूरत है।
इसी तरह, जिले का सबसे छोटा कस्बा लखनपुर, जो मात्र सात वार्डों में फैला हुआ है। जिसकी आबादी मात्र 3 हजार के करीब है, लेकिन यहां की ड्रेनेज व्यवस्था को बीचो बीच बहने वाली नहर और पास ही रावी दरिया सहायक साबित हो रही है। कुछ घरों ने अपने घरों की ड्रेनेज को नहर की ओर मोड़ कर अपने घर के आसपास साफ कर लिया है, लेकिन नहर के पानी को दूषित कर रखा है। इसकी कई बार शिकायत की गई, लेकिन कमेटी ने कोई संज्ञान नहीं नहीं लिया। कुछ घरों के लिए रावी दरिया पास होने के कारण ड्रेनेज वहां का काम रहा है। वर्ष में लाखों की कमाई वाली इस कमेटी में ड्रेनेज की कोई विशेष योजना नहीं है।