संत का दर्शन पाप, ताप और अभिशाप तीनों का नाश करता है : शास्त्री
जागरण संवाददाता, कठुआ : शहर के ब्राह्मण सभागार में जारी श्रीमद् भागवत कथा में उमड़े श्रद्धालुओं ने सं
जागरण संवाददाता, कठुआ : शहर के ब्राह्मण सभागार में जारी श्रीमद् भागवत कथा में उमड़े श्रद्धालुओं ने संत सुभाष शास्त्री जी महाराज के प्रवचनों का रसपान किया। शनिवार को कथा के छठे दिन संत श्री ने श्रद्धालुओं को संतों द्वारा दिखाए मार्ग पर चल कर अपने कल्याण के मार्ग को प्रशस्त बनाने के लिए प्रेरित किया।
अपने प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि सत्य और ईमान का रास्ता स्वर्ग में जाकर खत्म होता है, लेकिन हमारा दुर्भाग्य आज यह है कि सत्यवादी और ईमानदारों का अकाल सा पड़ गया है। ऐसे माहौल में सत्संग का महत्व और भी बढ़ जाता है, इसलिए प्रयास कर सत्य का संग अवश्य करें।
शास्त्री जी ने कहा कि सर्दी में नहाने और कर्ज चुकाने में शुरू में थोड़ा कष्ट तो होता है, परंतु बाद में बहुत आराम मिलता है। इसी प्रकार जहर खाकर मरने में और विषय भोग करने में शुरू में थोड़ा सुकून मिलता है, परंतु बाद में बड़ी सजा भुगतनी पड़ती है। ऐसे ही तपस्या कटु होती है, लेकिन अंत स्वर्ग होता है और कुकर्म और विषय भोग का फल भी इसी प्रकार मधुर लगता है, लेकिन अंत नर्क होता है।
उन्होंने उपस्थित श्रद्धालुओं को धर्म का अर्थ समझाते हुए कहा कि सत्संग का अर्थ संतों का संग कर अपना कल्याण करना है। अध्यात्म के आकाश में संत इंसानियत का इंद्रधनुष है। संत अपनत्व के आंगन में आत्मीयता की आराधना, विकृति के बाजार में संस्कृति का शंखनाद है। संत वासनाओं के बताशे नहीं बांटता, संत षड़यंत्र का यंत्र नहीं बेचता, बल्कि संत तो समाधिकरण का बीज देकर आचरण का आशीष भी देता है। अंत में शास्त्री जी ने कहा कि गंगा सिर्फ आप का, चंद्रमा सिर्फ ताप का और कल्पवृक्ष अभिशाप का नाश करता है। लेकिन संत का दर्शन पाप, ताप और अभिशाप तीनों का नाश करता है इसलिए संतों का संग हमेशा करें, जिससे आपका कल्याण होगा।