पुलवामा से चार दिन पैदल चलकर पहुंचे श्रमिक
कश्मीर से पैदल बिहार को निकले श्रमिक जम्मू पहुंचे परिवार से मिलने की आस बंधा रही उनकी हिम्मत
जागरण संवाददात, जम्मू : पैरों में फटी चप्पल, चार दिन से भूखे प्यासे श्रमिक दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के काकपोरा से पैदल चल जम्मू में पहुंच गए। उनकी मंजिल जम्मू नहीं, बल्कि बिहार है। हिम्मत बड़ी है, लेकिन किसी तरह घर पहुंचने की लालसा उनमें हिम्मत जगाए हुए है। 30 के करीब श्रमिकों का समूह जम्मू कटड़ा बाइपास रोड पर स्थित नरवाल में बुधवार को पहुंचा तो उन्हें उन्हें बेहद निराशा हुई, जब पता चला कि कटड़ा से भी एक हफ्ते तक बिहार के लिए कोई ट्रेन नहीं है। जम्मू से बिहार का दरभंगा जिला 1700 किलोमीटर दूर है। ऐसे में श्रमिक कैसे बिहार पहुंचेंगे, उन्हें कुछ नहीं पता। हालांकि वे कह रहे थे कि यदि ट्रेन नहीं मिली तो वे पैदल ही बिहार जाएंगे। कुछ श्रमिकों ने तौबा की कि वे जिदगी में कभी वापस कश्मीर घाटी नही आएंगे। 4 दिन में करीब 240 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां पहुंचे श्रमिकों का कहना है कि रास्ते में उन्होंने केवल बिस्कुट, चिप्स और कुरकुरे खाकर ही गुजारे।
जम्मू से कश्मीर में यह श्रमिक पेंटिग, बढ़ई और राज मिस्त्री का काम करते हैं। ऐसे ही एक श्रमिक जमाल हुसैन ने बताया कि उसने सोचा था कि क्वारंटाइन के बाद उप राज्यपाल प्रशासन उन्हें उनके राज्य बिहार भेज देगा। जमाल हुसैन बिहार के बेतिया जिले के रहने वाले हैं। 28 दिनों तक क्वारंटाइन सेंटर में काटने के बाद जब वापस बिहार भेजने की बात की तो अधिकारियों ने कह दिया कि बिहार की सरकार उन्हें वापस नहीं बुलाना चाहती। अधिकारीगण झूठा आश्वासन देते रहे कि कल या परसों उनके प्रदेश भेज दिया जाएगा, परंतु वह दिन नहीं आया। बिहार के दरभंगा के रहने वाले रमेश कुमार डल झील के बुल्वर्ड रोड पर गुब्बारे बेच कर अपनी रोटी कमाते थे। लॉकडाउन में सभी कुछ सिमट कर रह गया। खाने पीने के लाले पड़ने तो हमे काकपोरा में सेंटर में भेज दिया, जहां तीन लोगों के लिए दिन में एक किलो आटा, एक आलू, एक प्याज, एक साबुन मिलता था। इससे भूख भी नहीं मिटती थी। बिहार के मुज्जफरनगर के रहने वाले आलम दीन का कहना है कि भूखों मरने से बेहतर है कि घर लौट चलें। पेशे से बढ़ई का काम करने वाले मोहम्मद अफजल का कहना है कि पर्स खाली हो चुका है। घर से पैसे मंगवाए। पिता जी ने कुछ पैसे भेजे, पत्नी ने गहने बेच कर जो पैसे भेजे वे सब खर्च हो गए। नौबत भुखमरी पर आ गई है। थोड़ी सी जमीन है, मिल बांट कर खा लेंगे। बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले पुलकित वर्मा का कहना है कि वह कुछ माह पहले पांच हजार रुपये लेकर यह सोच कर कश्मीर आए थे कि कुछ कमा खा कर घर वालों को पैसे भेज देंगे, लेकिन पर्स खाली है। किसी तरह घर पहुंच जाए तो फिर नहीं लौटेंगे।