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Kashmiri Pandit: जब कश्मीरी बच्चे ने पूछा, अगर आप कश्मीरी हैं तो माथे पर तिलक क्यों

कश्मीरी पंडितों के त्यौहारों में मुस्लिम लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होते थे और हिंदू भी उनके त्यौहारों पर मुस्लिमों के यहां जाते थे।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 02:42 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 02:42 PM (IST)
Kashmiri Pandit: जब कश्मीरी बच्चे ने पूछा, अगर आप कश्मीरी हैं तो माथे पर तिलक क्यों
Kashmiri Pandit: जब कश्मीरी बच्चे ने पूछा, अगर आप कश्मीरी हैं तो माथे पर तिलक क्यों

जम्मू, गुलदेव राज। 70 साल के कश्मीरी पंडित तोताराम भट्ट को आज भी कश्मीर के पहलगाम के उनके गांव त्रेल का मुस्लिम-हिंदू भाईचारा, दुआ-सलाम और एक-दूसरे के दु:ख-सुख में भाग लेना आज भी याद है। मोहिउद्दीन भट्ट, रमजान भट्ट, हाजी अकबर भट्ट उनके दोस्तों के नाम हैं, जो अब वृद्ध हो गए हैं, लेकिन अपने गांव से पलायन के तीस साल बाद भी उनके साथ तोताराम का पहले जैसा रिश्ता आज भी बना हुआ है। वयोवृद्ध होने के बाद भी उनके ये दोस्त कभी-कभी उनसे मिलने के लिए जम्मू के नगरोटा स्थित जगटी माइग्रैंट कैंप में आ पहुंचते हैं। सभी बुजुर्ग कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की अहमियत, उनकी संस्कृति, कश्मीरियत को अच्छी तरह से जानते-समझते हैं। कश्मीरी पंडितों के त्यौहारों में मुस्लिम लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होते थे और हिंदू भी उनके त्यौहारों पर मुस्लिमों के यहां जाते थे।

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तोताराम भट्ट को लगता है अगले 20 बरस में कश्मीर की तस्वीर और बदल जाएगी, क्योंकि आज की युवा पीढ़ी चाहे मुस्लिम समुदाय की हो या कश्मीरी पंडितों की, असल कश्मीर, कश्मीरियत व अपने इतिहास से कटती जा रही है। ये युवा यह नहीं समझ पाते कि कश्मीरी पंडितों से ही कश्मीरियत बनती है। कश्मीर में अपने गांव के दर्शन करने गए तोताराम भट्ट को उस समय हैरानी हुई, जब दोस्त के लड़के बिलाल ने ही उनसे पूछ लिया कि अगर आप कश्मीरी हैं, तो माथे पर तिलक क्यों लगाए हैं। तोताराम से यह बात गांव के बुजुर्गों ने नहीं पूछा और न ही तीस साल पहले किसी ने पूछा था। वे पूछते भी कैसे, क्या उनको नहीं पता कि कश्मीरी पंडित कैसे गांव में रहा करते थे और माथे पर तिलक लगाकर मंदिरों में पूजा-अर्चना किया करते थे। जब माता क्षीर भवानी का मेला लगता तो मुस्लिम समुदाय के लोग भरपूर सहयोग करते थे, लेकिन इस इतिहास को बच्चे क्या जानें? क्योंकि घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद उन्होंने तिलक लगाने वालों को देखा ही नहीं। इसीलिए वे यह समझ ही नहीं पाते कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीरी मुस्लिम भी अधूरा है।

गांव के मुस्लिमों का नहीं था कोई कसूरः 1990 में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ने कश्मीर में ऐसा माहौल बना दिया कि कश्मीरी पंडित अपने घरों से दूर हो गए। हालांकि तोताराम मानते हैं कि इसमें गांव के मुस्लिमों का कोई कसूर नहीं था। उन्होंने बताया कि त्रेल गांव में 70 कनाल उनकी जमीन थी। वे वहां खुशहाल थे और मुस्लिम लोगों का उनको पूरा सहयोग मिलता था। एक रात आतंकवादियों ने गांव में हमला बोलकर मंदिर तोड़ दिया, पानी के चश्मे को भी नुकसान पहुंचाया। तब भट्ट ने गांव के मुस्लिम लोगों ने पूछा कि किसने यह हरकत की है, तो पूरे गांव के लोगों ने हाथ जोड़ लिया और कहा कि यह उनका काम नहीं है।

सोचा था माहौल शांत होगा तो लौटेंगे, पर..ः तोताराम भट्ट का कहना है कि उनके गांव का कोई भी मुस्लिम कश्मीरी पंडितों के खिलाफ नहीं था। बाद में जब आतंकवाद के कारण घाटी में और माहौल खराब होने लगा तो उनके गांव के लोगों ने तोताराम से तीन माह के लिए घाटी से सुरक्षित स्थान पर चले जाने के लिए आग्रह किया था। उसके बाद वे अपनी पत्नी दया भट्ट व अन्य परिजनों के साथ जम्मू चले आए। उन्होंने सोचा था कि जब माहौल शांत होगा तो वे परिवार के साथ वापसी कर लेंगे, लेकिन वह समय 30 साल बाद भी नहीं आ पाया। 


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