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विश्व डाक दिवस: जब चिट्ठियों में उतरते थे जज्बात, अब सिर्फ सरकारी दस्तावेज ही ढो रहा है डाक विभाग

जम्मू कश्मीर में डाक विभाग की अपनी अलग पहचान है। यह पहचान बनी है कश्मीर की डल झील में तैरते हुए डाक घर से जो भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ डाक घर है। इस डाक घर का उद्धाटन वर्ष 2011 में हुआ था।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2020 05:25 PM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2020 05:25 PM (IST)
विश्व डाक दिवस: जब चिट्ठियों में उतरते थे जज्बात, अब सिर्फ सरकारी दस्तावेज ही ढो रहा है डाक विभाग
युवा साहित्यकार राजेश्वर सिंह राजू का कहना है कि चिट्ठी लिखने और पढ़ने का अपना ही मजा था।

जम्मू, सुरेंद्र सिंह: फिर एक खत आया मेरे नाम, फिर कागज में उसकी तस्वीर उभर आई है। किसी शायर ने जब यह शेर लिखा होगा तो उसने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि आने वाली पीढ़ी इस अहसास को महसूस नहीं कर पाएगी। एक युग ऐसा भी आएगा जब कागजों पर उतरने वाले जज्बात खत्म हो जाएगा और खत इतिहास बनकर रह जाएंगे।

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मोबाइल इंटरनेट ने यहां देश दुनिया को आपस में जोड़ा तो वहीं उसने कुछ उन यादाें को भी ले लिया जो कभी कभार घर में पुरानी अलमारी के किसी कोने में पड़ी मिलती थी। वह यादें थीं हमारे घरों में आने वाले खत जो अब नहीं आते। मोबाइल पर की गई बातें तो कुछ देर बाद भूल जाती हैं लेकिन उन कागज के टुकड़ों पर लिखकर आने वाले जज्बात हमेशा रहते थे जिन्हें बार बार पढ़ा जाता था। जिस किसी का भी खत घर में आता था तो उसके लिखे शब्द ऐसा अहसास करवाते थे मानों हम खत नहीं पढ़ रहे बल्कि उस व्यक्ति का कागज पर उतर आया चेहरा हमें पढ़कर सुना रहा है। युवा पीढ़ी की बात करें, तो उन्हें पता ही नहीं कि कभी डाकिया भी उनके घर में चिट्ठी लेकर आता था और लोग डाकिए का इंतजार करते रहते थे। दूर से जब डाकिया आता दिखता तो उनके चेहरे पर खुशी आ जाती। घरों में बकायदा लैटर बाक्स होता था लेकिन अब लैटर बाक्स घर तो दूर पूरे शहर में ढूंढने से नहीं मिलता। डाक विभाग अब भी चल रहा है। बल्कि पहले से ज्यादा चल रहा है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि वहां जज्बात नहीं सिर्फ सरकारी कागज आते हैं।

चिट्ठी लिखने और पढ़ने का अपना ही मजा था: युवा साहित्यकार राजेश्वर सिंह राजू का कहना है कि चिट्ठी लिखने और पढ़ने का अपना ही मजा था। जब हम किसी को चिट्ठी लिखते थे तो उसका चेहरा सामने आ जाता था। हम शब्दों को ताल ताल कर लिखते थे। चिट्ठी लिखने का भी अपना ही अंदाज था लेकिन मोबाइल क्रांति ने इन अहसासों को छीन लिया। आज भी घर में पुरानी चिट्ठियां कभी मिल जाती हैं तो वे पल ताजा हो यादें जाे उनमें समाए रहते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होता। पहले फिल्मों में भी चिट्ठी को लेकर कई गीत बनते थे जो आज भी काफी सुने जाते हैं लेकिन अब वे गाने भी इतिहास बनकर रह गए हैं। शायद युवा पीढ़ी को पता भी नहीं होगा कि डाकिया डाक में क्या लेकर आता है। उन्हें तो पोस्ट कार्ड और अंतरदेशीय पत्र और लिफाफे की जानकारी भी नहीं होगी।

कई बार चिट्ठियां लिखते, पढ़ते मैं भी बह जाता था भावनाओं में: जिन दिनों मैं स्कूल में पढ़ाया करता था उन दिनों मेरे पास अकसर लोग चिट्ठियां पढ़ाने या लिखाने के लिए आया करते थे। मैंने अपने कार्यकाल में ज्यादातर समय ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में पढ़ाया है। उस समय भी वहां पर ज्यादातर लोग सेना में नौकरी करते थे।घरों में जवानों के बूढ़े मां-बाप या पत्नियां लिख-पढ़ नहीं सकती थी। इसलिए वे मेरे पास ही चिट्ठियां लिखाने या पढ़ाने के लिए आते थे। उनकी चिट्ठियां लिखते-पढ़ते मेरा उनसे एक जुड़ाव सा हो गया था। उनकी खुशी के साथ मैं खुश और दुख के साथ मैं भी दुखी हो जाता था। यह कैसा संबंध बन गया था, आज भी इस बारे में सोचता हूं तो समझ नहीं आता। परंतु आज भी मुझे वो दिन बहुत याद आते हैं। मैं किसी काम में कितना भी व्यस्त होता था, चिट्ठी पढ़ने या लिखने के लिए कभी मना नहीं किया। - सेवानिवृत्त माॅस्टर बलवंत सिंह

समय के साथ डाक विभाग ने भी बदला खुद को: कहते हैं वही तरक्की करता है जिसने खुद को समय के साथ बदल लिया। यह बात डाक विभाग पर भी बिलकुल स्टीक बैठती है। चिट्ठियाें का चलन कम हुआ तो डाक विभाग ने अपनी छवि को कम नहीं होने दिया। आज डाक विभाग चिट्ठियों के अलावा बैंकिंग सेक्टर का काम भी कर रहा है। डाक विभाग की ओर से कई सेविंग स्कीम चलाई जा रही है। फिक्सड डिपॉजिट तक डाक विभाग में लोग करवा रहे हैं। इतना ही नहीं डाक विभाग लोगों की आस्था का केंद्र भी बन गया है। डाक के माध्यम से माता वैष्णों देवी व अन्य कई तीर्थ स्थलों के प्रसाद की होम डिलीवरी भी डाक विभाग कर रहा है। इसके अलावा एक जगह से दूसरी जगह पैसों को ट्रांसफर करने का काम भी डाक विभाग कर रहा है। इसका लाभ उन लोगों को मिल रहा है जाे अपने घरों से दूर कमाई करने के लिए आए हैं और वे अपने परिवार तक सुरक्षित पैसा पहुंचाना चाहते हैं।

कश्मीर की डल झील में है दुनिया का एक मात्र तैरता हुआ डाक घर: जम्मू कश्मीर में डाक विभाग की अपनी अलग पहचान है। यह पहचान बनी है कश्मीर की डल झील में तैरते हुए डाक घर से जो भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ डाक घर है। इस डाक घर का उद्धाटन वर्ष 2011 में हुआ था और इस डाक घर में चिट्ठयों पर लगने वाली स्टेंप भी अलग हैं जिसमें नाव चलाता नाविक दिखता है। यहां दी जाने वाली अन्य सेवाओं में इंटरनेट सुविधा और अंतरराष्ट्रीय फोन कॉल शामिल हैं। इसके अलावा, पोस्ट ऑफिस के परिसर में एक डाक टिकट संग्रहालय है जिसमें टिकटों का विशाल संग्रह है। इसके अलावा एक दुकान भी है जहां से पोस्टकार्ड, टिकट, स्थानीय आइटम और ग्रीटिंग कार्ड खरीद सकते हैं।


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