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तेरे अपने हैं पराये नहीं, इस तरह से सितम हम पे ढाए गए मुद्दतें हो गई मुस्कुराए नहीं

दशकों से विस्थापन का दंश झेल रहे कश्मीरी पंडित मां राघेन्या के आगे झुकाए शीश।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 21 Jun 2018 09:36 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 04:06 PM (IST)
तेरे अपने हैं पराये नहीं, इस तरह से सितम हम पे ढाए गए मुद्दतें हो गई मुस्कुराए नहीं
तेरे अपने हैं पराये नहीं, इस तरह से सितम हम पे ढाए गए मुद्दतें हो गई मुस्कुराए नहीं

तुलमुला (गांदरबल), नवीन नवाज। तेरे अपने हैं, हम तो पराये नहीं। इस तरह से सितम हम पे ढाए गए मुद्दतें हो गई मुस्कुराए नहीं। मेरे पुरखों की जागीरदारी है ये मत समझिएगा हम लोग मेहमान हैं, शुबन जी लाल ने कहा। इसके साथ ही उसने कहा कि ये पंक्तियां मेरी नहीं है, लेकिन भाव मेरे हैं। मुझ पर जो गुजरी है, वह इन चंद लाइनों में सिमट जाती है। बीते कल को भुलाने और अच्छे दिनों की उम्मीद में, फिर से अपने पुरखों की जमीन में रचने-बसने के लिए हर साल सिर्फ मैं नहीं, मेरे जैसे सैकड़ों यहां मां राघेन्या के आगे शीश झुकाने के लिए आते हैं।

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यह मंदिर और ज्येष्ठ अष्टमी का मेला ही अब हमारी सनातन, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।चुन्नी लाल और उस जैसे हजारों श्रद्धालु जिनमे अधिकांश आतंकियों के कारण कश्मीर से पलायन कर देश- विदेश में जा बसे हैं, आज यहां वार्षिक क्षीर भवानी मेले में जमा हुए हैं। मां क्षीर भवानी को देवी राघेन्या भी कहा जाता है। चिनारों के झुरमुट के बीच जलकुंड में स्थित सफेद संगमरमर से बने मां भवानी के मंदिर के समक्ष पूजा की थाली लिए, जलकुंड में दूध और क्षीर का प्रसाद चढ़ा रहे कश्मीरी पंडितों के चेहरों पर फिर अपनी जड़ों और जमीन से जुड़ने उम्मीद और रोमांच साफ नजर आ रहा था।

पूजा करने के बाद मंदिर परिसर के विभिन्न हिस्सों में चक्कर लगाते श्रद्धालु वहां भीड़ में अपने परिचितों और पुराने जानने वालों को तलाशते नजर आए। कइयों की उम्मीद पूरी हुई तो कई अपनों को न पाकर निराश भी हुए।कश्मीर संभाग के गांदरबल जिले के तुलमुला में मां क्षीर भवानी स्थापित हैं। सदियों से हर साल शुक्ल पक्ष की ज्येष्ठ अष्टमी को यहां मां क्षीर भवानी का वाíषक पूजन होता आ रहा है।

मां क्षीर भवानी को कश्मीरी पंडितों की आराध्य देवी माना जाता है और उनका वाíषक मेला कश्मीरी पंडितों का प्रमुख धाíमक समागम होता है। आतंकवाद के शुरू होने के साथ ही 1990 में कश्मीरी पंडितों के वादी से पलायन के साथ ही मां क्षीर भवानी मेला भी समाप्त होता नजर आया। लेकिन हालात बदलने के साथ मेले की रौनक भी साल-दर साल बढ़ने लगी और यह मेला सिर्फ धाíमक अनुष्ठान न रहकर कश्मीरी पंडितों के लिए जहां अपनी जड़ों से जुड़ने और पुराने दोस्तों से मिलने का एक जरिया भी बन गया है।

दूरसंचार विभाग से रिटायर होने के बाद दिल्ली में जा बसे शुबन जी कहते हैं, मैं दिल्ली से आए श्रद्धालुओं संग नहीं आया। मैं और मेरी पत्नी कुछ दिन पहले ही श्रीनगर आ गए थे। श्रीनगर में दो दिन घूमने और रैनावारी स्थित अपने पुराने मकान पर नजर दी। मकान अब खंडहर बन चुका है। उसे ठीक कराने का बंदोबस्त किया है और आज यहां पूजा के लिए आए। सच कहूं तो अब हर साल इसी दिन का इंतजार होता है, क्योंकि जब मैं अपने समुदाय के लोगों को यहां देखता हूं तो उम्मीद होती है कि हमारा अस्तित्व बचा रहेगा। हम जरूर एक दिन यहां लौट आएंगे। दिल्ली की भीड़ में खुद को अकेला और पराया महसूस करता हूं।

उन्होंने कहा कि मुझे कश्मीर आकर जितना अच्छा लगता है, उतना ही दुख मुझे उस समय होता है, जब कुछ लोग हमें यहां चंद दिन का मेहमान समझकर बात करते हैं। मैं उन्हें समझाकर थक जाता हूं कि हम मेहमान नहीं हैं। यह हमारा घर ह। यह हम कश्मीरियों की ही जागीर है चाहे वह पंडित हो, मुस्लिम हो या सिख। कश्मीर हम कश्मीरियों का ही है।

कश्मीरी हिंदू वेलफेयर सोसायटी के प्रैस सचिव चुन्नी लाल ने कहा कि मैंने कश्मीर से पलायन नहीं किया। मैं हर साल यहां आता हूं ताकि मेरे जो दोस्त कश्मीर से चले गए हैं, वह आएंगे और उनसे मुलाकात भी होगी। वहीं पास खडे़ कृष्ण लाल जोकि पुणे से आए थे, ने कहा कि मैं वर्ष 2005 के बाद हर साल यहां आ रहा हूं। हमारा परिवार अनंतनाग में रहता था। मैं उस समय 27 साल का था जब हमें पलायन करना पड़ा था। इस बार मैं अपने बच्चों को भी लेकर आया हूं। उन्हें यहां आकर अच्छा लगा है और उससे भी ज्यादा वह इस बात पर हैरान हुए कि हमें लेने के लिए मेरे ससुर के मित्र का बेटा सलीम कोकरनाग से यहां आया हुआ है। मेरे ससुर का देहांत हो चुका है, सलीम के पिता का भी निधन हुए सात साल हो रहे हैं। लेकिन उनके बेटे सलीम ने रिश्ता निभाया है,यही तो कश्मीरियत है।

प्रार्थना करती हूं कि सबकुछ ठीक हो जाए अर्चना कौल नामक एक महिला ने कहा, मैं तो अब गुड़गांव में रहती हूं। बेटे मेरे ने अंतरजातीय विवाह किया है, लेकिन बहू को कश्मीर और कश्मीर की पंरपरा बतानी है, इसलिए अपने परिवार को लेकर हर साल यहां आती हूं। प्रार्थना करती हूं कि सबकुछ ठीक हो जाए। कश्मीर पहले जैसा हो और मैं फिर अपने उसी घर में जाकर रहूं, जहां में दुल्हन बनकर आई थी। अर्चना कौल के मुताबिक वह जिला बारामुला में पैदा हुई थी और उसकी शादी सोपोर के पास एक गांव में हुई थी।

विस्थापन झेल रहे लोगोंमें अब कोई डर नहीं अपने परिवार के साथ मंदिर प्रांगण में बैठे प्राणनाथ ने कहा कि इस बार पहले से ज्यादा लोग आए हैं। हालांकि, इस बार यहां आतंकी घटनाएं भी खूब हुई हैं, लेकिन मैंने यहां लोगों के चेहरे पर खौफ नहीं देखा। मुझे लगता है कि यहां के हालात को लेकर विस्थापन झेल रहे हमलोगों के बीच अब कोई ज्यादा डर नहीं है जो एक अच्छी बात है। इससे हमारा कश्मीर में लौटने और वापस अपने पुश्तैनी घरों में बसने का इरादा और मजबूत होगा। मां क्षीर भवानी हमें अपनी जड़ों के साथ मजबूती से जुड़ने का आशीर्वाद प्रदान करें ताकि हम यहां मेहमानों या तीर्थयात्रियों की तरह नहीं बल्कि घर के मालिक की तरह आएं।

सुरक्षा का रहा पुख्ता प्रबंधमां क्षीर भवानी के मेले को पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े प्रबंध कर रखे थे। जिला मुख्यालय गांदरबल से तुलमुला की तरफ जाने वाली सड़क पर आरआर, पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों की नाका पाíटयां तैनात थीं, वहीं, मां क्षीर भवानी परिसर के भीतर और बाहर पुलिस व सीआरपीएफ के जवानों ने सुरक्षा का जिम्मा संभाल रखा था। श्रद्धालुओं को जांच पड़ताल के बाद ही मंदिर परिसर में जाने की इजाजत थी। इसके अलावा सादी वर्दी में भी खुफिया पुलिस के कर्मी मेले में आए लोगों के बीच मौजूद थे। सीसीटीवी कैमरों के जरिए भी मेले की सुरक्षा व्यवस्था की लगातार निगरानी की जा रही थी।

केंद्रीय वार्ताकार भी पहुंचे तुलमुला

केंद्रीय वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर भी तुलमुला में मां क्षीर भवानी के दर्शनों के लिए अलग-अलग पहुंचे। केंद्रीय वार्ताकार ने पूजा करने और कश्मीर में अमन बहाली की प्रार्थना करने के बाद वहां मौजूद श्रद्धालुओं से भी बातचीत की और श्रीनगर लौट गए। कांग्रेस नेता जीए मीर ने मंदिर मे माथा टेका और कश्मीरी पंडिति समुदाय के लोगों के साथ बातचीत कर, उन्हें उपलब्ध कराई गई सुविधाओं का जायजा लिया। उन्होंने कश्मीरी पंडितों को वादी में उनकी वापसी के लिए कांग्रेस की तरफ से हरसंभव सहयोग का यकीन भी दिलाया।

 'कश्मीरी पंडित विस्थापितों के पुनर्वास पर सियासत हुई'

मां क्षीर भवानी मेले में शामिल हुए कश्मीरी पंडितों ने कहा कि आज तक केंद्र और राज्य में जो भी सरकार रही है, उसने सिर्फ विस्थापितों के पुनर्वास पर सियासत करने के अलावा कुछ और नहीं किया। कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को सिर्फ सियासी मुद्दा बनाकर रख दिया है। बेहतर है कि कश्मीरी मुस्लिम भाई ही इस दिशा में पहल करें।एक कश्मीरी पंडित सतीश महालदार ने कहा कि 28 वर्षो में सिर्फ पुनर्वास का आश्वासन मिला है। लेकिन हुआ कुछ नहीं है। हमारे विस्थापन और हमारे समुदाय को सिर्फ सियासी नारों और वोटों के लिए ही इस्तेमाल किया जा रहा है। पुनर्वास अब सियासी शगूफा हो गया है।

उन्होंने कहा कि हमें सियासत से कोई सरोकार नहीं है। कोई हमें इस तरफ ले जाता है तो कोई दूसरी तरफ। जितने सियासी दल, उतने सियासी नारे और उतने वादे। कश्मीर छोड़ने के बाद हमारी सभ्यता और संस्कृति पूरी तरह प्रभावित हुई है। अगर आतंकवाद से हम पलायन करने को मजबूर हुए हैं तो कश्मीरी मुस्लिमों को भी तकलीफें कम नहीं सहनी पड़ी। उनका भी बहुत नुकसान हुआ है। आतंकवाद ने तो कश्मीरियों और कश्मीरियत को तबाह कर दिया है। मुस्लिम भाइयों को चाहिए कि वह हमारे पुनर्वास में सहयोग करें और आगे आएं।

क्षीर भवानी मेला

-शुबन जी लाल बोले, यहां मेरे पुरखों की जागीरदारी है, हमलोग मेहमान नहीं हैं-आतंकियों के कारण कश्मीर से पलायन कर चुके हजारों पंडितों ने की क्षीर भवानी मेले में शिरकत-अपने परिचितों और पुराने जानने वालों को तलाशते नजर आए-कइयों की उम्मीद पूरी हुई तो कई अपनों को न पाकर निराश भी हुए-सभी बोले, हम जरूर एक दिन कश्मीर अपनी माटी पर लौटेंगे


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