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Jammu: श्रद्धा का महासावन: शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है

त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं। यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है। लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Thu, 12 Aug 2021 06:07 PM (IST)Updated: Thu, 12 Aug 2021 06:07 PM (IST)
Jammu: श्रद्धा का महासावन: शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है
शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं।

जम्मू, जागरण संवाददाता। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं। यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है। लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

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इस समय सावन महीना चल रहा है। सावन मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता है। इसके साथ जुड़े समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। इस महीने में भगवान शिव की भक्ति का विशेष महत्व है। सावन के इस महीने में हर ओर भगवान शिव के जयघोष गूंज रहे हैं।शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इन दिनों श्रद्धालु व्रत भी रख रखते हैं खासकर सोमवार के व्रत का विशेष महत्व माना गया है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सावन माह में ही समुद्र मंथन किया गया था। मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला। भगवान शंकर ने इस विष को अपने कंठ में उतारकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव उपासना से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। हर कोई शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है। इसका भी विशेष महत्व माना गया है। भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की उष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है।

शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं। जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है। वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछा तो उन्होंने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं। उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र है। बेलपत्र के विषय में शास्त्रों में बताया गया है कि तीन दलों वाले बेलपत्र को चढ़ाने से तीन जन्मों के पाप नाश हो जाते हैं। बेलपत्र के दर्शन मात्र से ही पाप नाश हो जाते हैं और छूने से सभी प्रकार के शोक, कष्ट दूर हो जाते हैं।- पंडित शिव दत्त शास्त्री 


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