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2011 की जनगणना पर परिसीमन कराना जम्मू के डोगरों से धोखा

वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर जम्मू कश्मीर में कराए जाने वाले परिसीमन पर इकजुट जम्मू ने मोर्चा खोल दिया है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Mar 2020 09:50 AM (IST)Updated: Fri, 13 Mar 2020 09:50 AM (IST)
2011 की जनगणना पर परिसीमन कराना जम्मू के डोगरों से धोखा
2011 की जनगणना पर परिसीमन कराना जम्मू के डोगरों से धोखा

जागरण संवाददाता, जम्मू : वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर जम्मू कश्मीर में कराए जाने वाले परिसीमन पर इकजुट जम्मू ने मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि अगर 2011 के आधार पर जनगणना हुई तो डोगरा हिदू फिर से गुलामी की जंजीरों में बंधकर रह जाएगा। जम्मू में वीरवार को हुए सेमिनार में अधिकतर वक्ताओं का कहना है कि यह फैसला जम्मू के डोगराओं के हित में नहीं है। राजनीतिक विशलेषक एवं इकजुट जम्मू के संरक्षक प्रो. हरिओम ने कहा कि अगर 2011 के आधार पर राज्य में परिसीमन हुआ तो तो जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 को हटाया जाना बेमानी होगा। इससे केवल वही अलगाववादी ताकतें मजबूत होंगी जिन्होंने जम्मू कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा दिया है। राष्ट्रवादी लोग फिर अलगाववादी ताकतों के गुलाम बन कर रह जाएंगे। वक्ता अनिल पाधा ने कहा कि डोगरा हिदुओं के साथ धोखा होगा, जो हमेशा से राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हैं। जानेमाने कश्मीर पंडितों के नेता सुशील पंडित ने कहा कि वर्ष 2011 के आधार पर परिसीमन करने से केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा राज्य के पुनर्गठन के लिए जो एतिहासिक फैसला लिया वे बेमानी होगा। इससे राज्य में आंतरिक तोड़फोड़ बढ़ेगी जिससे फिर जेहादी ताकतों को बल मिलेगा। अगर राज्य में निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से नए परिसीमन के लिए वर्ष 2021 में करवाई जाने वाली जनगणना को आधार बताया। इकजुट जम्मू ने आरोप लगाए कि राज्य में वर्ष 2011 में जो जनगणना हुई है, उसमें कश्मीर के एक व्यक्ति ने चार जगह अपना नाम दर्ज करवाया है। इस आधार से परिसीमन करवाने का मतलब अलगाववादी ताकतों को फिर सिर उठाने का मौका देने जैसा होगा। इकजुट के चैयरमेन अंकुर शर्मा ने कहा कि यह फैसला जम्मू के लोगों के साथ धोखा होगा। इससे केवल जम्मू के डोगरों को कश्मीर की कट्टरपंथी ताकतों को बेचना जैसा होगा। वर्ष 2002 में जम्मू कश्मीर में जनगणना हुई थी तो उसमें कश्मीर के मुकाबले जम्मू के वोटरों की संख्या 1.41 लाख अधिक थी। वर्ष 2011 में कश्मीर की जनसंख्या फर्जी तौर पर बढ़ाकर 14, 11,000 कर दी गई। जम्मू संभाग में वर्ष 1971- 2001 के बीच औसत आबादी वृद्धि 31 फीसदी थी, लेकिन वर्ष 2011 यह गिरकर 21 फीसदी ही दर्शायी गई । कश्मीर में हिदुओं और सिखों के नरसंहार के कारण कश्मीर में लोगों की आबादी कम होनी चाहिए। वर्ष 1991 में आबादी 26 फीसदी बढ़ गई। मुस्लिम आबादी 4.12 प्रतिश्त बढ़ गई। हिदू और सिखों की आबादी 4.27 गिर गई। इकजुट के उपप्रधान अनिल पाधा ने कहा कि परिसीमन के लिए राज्य की जनगणना का नया हिसाब जरूरी है। फर्जी जनगणना के आधार पर परिसीमन करवाना जम्मू के लोगों के साथ धोखा होगा।

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