Move to Jagran APP

Jammu: बच्चों की लंबी उम्र के लिए रविवार को होगी वत्स द्वादशी (बच्छदुआ) की पूजा

इस दिन अंकुरित मोठ मूँग तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और प्रसाद रूप में इन्हें ही चढ़ाया जाता है। इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 05:28 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 05:43 PM (IST)
Jammu: बच्चों की लंबी उम्र के लिए रविवार को होगी वत्स द्वादशी (बच्छदुआ) की पूजा
Jammu: बच्चों की लंबी उम्र के लिए रविवार को होगी वत्स द्वादशी (बच्छदुआ) की पूजा

जम्मू, जागरण संवाददाता : संतान प्राप्ति एवं संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए रखा जाने वाला वत्स द्वादशी का पर्व 16 अगस्त रविवार को मनाया जाएगा। वत्स द्वादशी का पर्व जम्मू में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को वत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष वत्स द्वादशी (बच्छदुआ) का पर्व 16 अगस्त रविवार को मनाया जाएगा, क्योंकि सूर्योदय व्यापिनी द्वादशी तिथि 16 अगस्त को है इसलिए वत्स द्वादशी (बच्छदुआ) पूजन एवं व्रत करना 16 अगस्त रविवार उत्तम होगा, परंतु जम्मू में कुछ माताएं एकादशी तिथि समाप्त होने के बाद द्वादशी तिथि शुरू होते ही वत्स द्वादशी (बच्छदुआ) व्रत एवं पूजन करती है।

loksabha election banner

महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि द्वादशी तिथि 15 अगस्त शनिवार को दोपहर 02 बजकर 21 मिनट से शुरू होगी और जो माताएं एकादशी तिथि समाप्त होने के बाद द्वादशी तिथि शुरू होते ही वत्स द्वादशी व्रत एवं पूजन करती है वह 15 अगस्त दोपहर 02 बजकर 21 मिनट के बाद वत्स द्वादशी का व्रत एवं पूजन कर सकती है।

वत्स द्वादशी को बछवास, बच्छदुआ, ओक दुआस या बलि दुआदशी के नाम से भी जाना जाता है, वत्स द्वादशी का यह व्रत संतान प्राप्ति एवं संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाने वाला व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों का पर्व होता है। इस दिन बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है। फिर बच्चों को नेग तथा श्रीफल प्रसाद रूप में देती हैं।

इस दिन अंकुरित मोठ, मूँग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और प्रसाद रूप में इन्हें ही चढ़ाया जाता है। इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है। इस दलीय अन्न तथा चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ वर्जित होता है।

ऐसे करें पूजा अर्चना: इस दिन दूध देने वाली गाय को बछड़े सहित स्नान कराते हैं, फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढ़ाया जाता है, दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं, दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं, सींगों को मढ़ा जाता है, तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल,जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए, आधुनिक समय में कई लोगों के घरों में गाय नहीं होती है, वह किसी दूसरे के घर की गाय का पूजन कर सकते हैं, यदि घर के आसपास भी गाय और बछड़ा नहीं मिले तब गीली मिट्टी से गाय तथा बछड़े को बनाए और उनकी पूजा करें, इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग नहीं किया जाता है। गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए, गाय माता का पूजन करने के बाद वत्स द्वादशी की कथा सुनी जाती है, सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है, उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.