ऐसे कैसे पढ़ेगा इंडिया: 20 वर्षों में भी खड़ी नहीं हो सकी तुरगा स्कूल की इमारत
हले इस स्कूल में 100 बच्चे पढ़ते थे जो अब 50 ही बचे हैं। पिछली भाजपा-पीडीपी सरकार ने बच्चों की कम संख्या का हवाला देकर राज्य के कई सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया था।
ऊधमपुर, अमित माही। सरकार स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लाख दावे करे, लेकिन अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं, जो ऐसे दावों पर सवाल खड़े करती हैं। इस बार खबर जिले की पंचैरी तहसील से है। उधमपुर की पंचैरी तहसील की कुलटैड पंचायत के तुरगा इलाके में स्थित निर्माणाधीन प्राइमरी स्कूल की इमारत का काम 20 साल बाद भी नींव डालने से आगे नहीं बढ़ पाया। जब बारिश होती है, तो इस स्कूल के बच्चे शेड डालकर बनाए गए किचन में पढ़ाई करते हैं।
बच्चों के अभिभावक सवाल करते हैं कि यदि बच्चे देश का भविष्य हैं, तो क्या यह देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है? स्कूल के शिक्षकों के पास अभिभावकों के इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता है। वैसे भी वे क्या करें, क्योंकि उन्होंने कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों से स्कूल के अधूरे निर्माण को पूरा करवाने की गुहार लगाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। ऐसे में अभिभावकों के सवाल नक्कारखाने में तूती ही साबित होते हैं। तुरगा इलाके में स्थित प्राइमरी स्कूल में पढऩे वाले बच्चे बेहद गरीब परिवारों से हैं।
100 से 50 हुई बच्चों की संख्या
पहले इस स्कूल में 100 बच्चे पढ़ते थे, जो अब 50 ही बचे हैं। पिछली भाजपा-पीडीपी सरकार ने बच्चों की कम संख्या का हवाला देकर राज्य के कई सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया था। तब लोगों को उम्मीद बंधी थी कि शायद इसके बाद सरकारी स्कूलों की हालत में सुधार किया जाए, पर तुरगा का प्राइमरी स्कूल आज भी वैसा ही है। आज भी इस स्कूल में पढऩे वाले बच्चे खंडहर बन चुकी स्कूल की निर्माणाधीन इमारत के सामने खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
अधर में लटकी है स्कूल की इमारत
कुलटैड के सरपंच पवन कुमार बताते हैं कि पंचैरी तहसील में आने वाले इस स्कूल की घोषणा 1999 में हुई। वर्ष 2005 में एसएसए की तरफ से इस इमारत को बनाने का काम शुरू किया गया, लेकिन ठेकेदार ने नींव डालने के बाद ही काम छोड़ दिया। तब से स्कूल की इमारत का काम अधर में लटका है। जब सरपंच और क्षेत्र के अन्य लोगों से इमारत का काम अधर में लटकने की वजह पूछी गई, तो उन्होंने बताया कि उनको इस बारे में कुछ नहीं बताया गया। इमारत का निर्माण शरू होने के बाद करीब दो साल तक एक किराये के कमरे में विद्यार्थियों बैठाया जाता था, लेकिन बाद में किराया भी न दे पाने की स्थिति में खुले आसमान के नीचे बच्चों की क्लास लगने लगी। बारिश-बर्फबारी होने पर बच्चों की क्लास का काम करने वाला किचन शेड, स्कूल का दफ्तर भी है।
मौसम खराब होने पर स्कूल नहीं बाते बच्चे
कई बार मौसम खराब होने पर अभिभावक बच्चों को स्कूल ही नहीं भेजते हैं। सरपंच ने बताया कि पहले स्कूल में 100 विद्यार्थी थे, लेकिन जैसे-जैसे इमारत पूरी होने की आस टूटती गई, बच्चों की संख्या भी कम होती गई। जिन अभिभावकों की स्थिति कुछ बेहतर थी, उन्होंने अपने बच्चों को इस नागा पानी, परेई के स्कूलों में डाल दिया।
- तुरगा के प्राइमरी स्कूल की इमारत का निर्माण एसएसए के तहत हो रहा था। ठेकेदार ने नींव डालने के बाद अचानक बीच में ही काम छोड़ दिया। उसे कई बार नोटिस जारी किया गया, लेकिन उसने काम नहीं शुरू किया। अब स्कूल की इमारत बनाने के लिए नई डीपीआर बनवाई गई है। इसे डेढ़ माह पहले मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। मंजूरी मिलने के बाद फंड उपलब्ध होते ही प्राइमरी स्कूल की इमारत बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा। - तारानाथ, जेडईओ, पंचैरी