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Jammu Kashmir: साजगार मौसम में पर्यटकों ने किया मानसर झील का रुख, मछलियों की अठखेलियां देखने उमड़े

मानसर झील के किनारे पहुंचते ही वहां मछलियां का जमघट लग जाता है। चूंकि यहां मछलियों को पूज्य माना जाता है इसलिए यहां इनको मारा नहीं जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु इन मछलियों को सदियों से भोजन भी देते रहे हैं। मछलियां इंसानों से बिल्कुल नहीं डरती हैं।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Mon, 27 Sep 2021 06:42 AM (IST)Updated: Mon, 27 Sep 2021 07:06 AM (IST)
Jammu Kashmir: साजगार मौसम में पर्यटकों ने किया मानसर झील का रुख, मछलियों की अठखेलियां देखने उमड़े
सैलानियों ने झील के किनारे स्थित मंदिर में पूजा-अर्चना की और झील में पैडल बोट से चक्कर भी लगाया।

जम्मू, जागरण संवाददाता : कोरोना महामारी की वजह से करीब दो साल तक सैलानियों से सूने रहे जम्मू कश्मीर के पर्यटन स्थल एक बार भी गुलजार होने लगे हैं। अब राज्य में कोरोना के बहुत कम मामले सामने आ रहे हैं। जम्मू संभाग के ज्यादातर जिलों में इक्का-दुक्का ही कोरोना के मामले आ रहे हैं। रात के कर्फ्यू में भी प्रशासन की तरफ से ढील दी गई है। ऐसे में प्रकृति के खूबसूरत नजारों को देखने के लिए अब बड़ी संख्या में सैलानी पर्यटन स्थलों पर पहुंचने लगे हैं। सांबा की मानसर झील भी पर्यटकों की पहली पसंद रही है। अब यहां भी बड़ी संंख्या में पर्यटक आ रहे हैं। इससे पर्यटन पर निर्भर क्षेत्र के लोगों के चेहरे खिल गए हैं।

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रविवार को मानसर झील पर्यटकों से गुलजार नजर आई। यहां पहंचे सैलानियों ने झील के किनारे स्थित मंदिर में पूजा-अर्चना की और झील में पैडल बोट से चक्कर भी लगाया। इससे पैडल बोट मालिकों की कमाई भी होने भी लगी है। कोरोना महामारी में पर्यटकों के नहीं आने से पैडल बोड मालिकों की कमाई बंद हो गई थी। ऐसे में उनके लिए अपने परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो गया था। पर्यटकों के आने से यहां खाने-पीने और पूजन सामग्री बेचने वाले दुकानदारों में भी खुशी की लहर है। जम्मू, ऊधमपुर, सांबा, कठुआ आदि इलाकों से परिवहन की सुविधा होने से पर्यटकों को यहां तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है। जिनके पास अपने साधन हैं, वे परिवार के साथ यहां पहुंच रहे हैं। इस समय मौसम भी साजगार बना हुआ है। ऐसे में यहां घूमने का मजा दोगुना हो गया है।

आटे की गोलियां खाने के लिए पर्यटकों के पास आ जाती हैं मछलियां

मानसर झील के किनारे पहुंचते ही वहां मछलियां का जमघट लग जाता है। चूंकि यहां मछलियों को पूज्य माना जाता है, इसलिए यहां इनको मारा नहीं जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु इन मछलियों को सदियों से भोजन भी देते रहे हैं। ऐसे में मछलियां इंसानों से बिल्कुल नहीं डरती हैं। यहां तक कि वे बिना डरे श्रद्धालुओं के हाथ से भी आटे की गोलियां खा लेती हैं। जब श्रद्धालु और सैलानी आटे की गोलियां पानी में फेंकते हैं तो वहां हजारों की संख्या में मछलियां जमा हो जाती हैं। इससे वहां छप-छप की इतनी तेज आवाज होती है कि दस-मीटर की दूरी से भी उसे सुना जा सकता है। इन मछलियों की वजह से पर्यटकों को गुथा आटा बेचने वाले स्थानीय लोगों को भी आजीविका का जरिया मिल गया है। सैलानी भी उनसे दस-बीस रुपये में आटा खरीदकर उसे मछलियों को खिलाकर सुकून महसूस करते हैं। दूसरे राज्यों से आने वाले सैलानियों के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं होता है।

पर्यटकों के आने से स्थानीय लोगों को मिला आजीविका का जरिया

इस दूरदराज इलाके में घूमने आने वाले पर्यटकों की वजह से स्थानीय लोगों को भी आजीविका का जरिया मिल जाता है। चाय-पकौड़े, चाउमीन, मोमो जैसे फास्ट फूड के साथ यहां ढाबे भी हैं, जहां पर्यटक भरपेट भोजन भी कर सकते हैं। झील के किनारे स्थित प्राचीन मंदिर में जम्मू संभाग के लोगों की बड़ी आस्था है। ऐसे में यहां आजकल रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु भी पूजा-अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं। ऐसे में पैडल बोट वालों के साथ ही झील के किनारे स्थित दुकानदारों की भी अच्छी कमाई हो रही है। इसके अलावा कोरोना महामारी में ऐसे पर्यटन स्थलों से आजीविका पाने वाले फोटोग्राफरों के भी अच्छे दिन आ गए हैं। यहां आने वाले पर्यटक यादगार के रूप में उनसे तस्वीरें खिंचवाते हैं, जिससे फोटोग्राफरों को भी इतने पैसे मिल जाते हैं कि वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। 


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