तिब्बत के पोटाला महल का लघु स्वरूप है ‘लेह महल’
लेह महल अवार्ड आफ डिस्टिंक्शन अंडर द यूनेस्को एशिया-पेसिफिक अवार्ड फाॅर कल्चरल हेरिटेज कंजर्वेशन कैटगरी पुरस्कार से सम्मानित
जम्मू, राहुल शर्मा : लद्दाख अपनी खूबसूरत वादियों, बर्फीली घाटियों, शांत वातावरण, अनूठी संस्कृति, कलात्मक शैली, शिल्प कला और रीति-रिवाजों के लिए विश्व भर में मशहूर है। यही वजह है कि पर्यटकों की लिस्ट में लेह-लद्दाख हमेशा ही प्राथमिकता में रहा है। पर्यटक खासकर युवा अलग तरीके से इस क्षेत्र की यात्रा करने को उत्साही रहते हैं। यहां की शांति हरेक को अपनी ओर आकर्षित करती है। यूनेस्को ने गत शुक्रवार को लद्दाख को ऐतिहासिक महल ‘लेह महल’ को अवार्ड आफ डिस्टिंक्शन अंडर द यूनेस्को एशिया-पेसिफिक अवार्ड फाॅर कल्चरल हेरिटेज कंजर्वेशन कैटगरी पुरस्कार से सम्मानित किया है। प्राकृतिक खूबसूरती, सालों पुरानी बौद्ध संस्कृति से ओतप्रोत जम्मू-कश्मीर का सबसे बड़ा प्रदेश लद्दाख को लेह महल और खास बना देता है। लेह महल जम्मू-कश्मीर में ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न राज्यों में बने ऐतिहासिक महलों से बिल्कुल अलग व असाधारण है।
राजा सेंग्गे नामग्याल ने 17वीं शताब्दी में बनाया था महल
त्सेमो की पहाड़ी पर बने लेह महल का निर्माण कार्य यूं तो सन् 1553 में त्सेवांग नामग्याल ने शुरू किया था। बाद में उनके भतीजे राजा सेंग्गे नामग्याल ने 17वीं शताब्दी में नौ मंजिला इस महल काे पूरा किया। इस महल की सबसे ऊपरी मंजिल में शाही परिवार रहता था जबकि नीचे वाली मंजिलों में अस्तबल, स्टोर रूम, रसोई घर सहित नौकरों के कमरे हुआ करते थे। पहाड़ की चोटी पर बना यह महल तिब्बत में स्थित ल्हासा के प्रसिद्ध पोटाला महल का लघु-स्वरूप भी माना जाता है।
राजसी परिवार को स्टॉक महल में करना पड़ा पलायन
जब 19वीं शताब्दी में डोगरा फोर्स ने लद्दाख पर कब्ज़ा किया तो राजसी परिवार को यह महल छोड़ना पड़ा। उन्होंने लेह महल को त्याग कर स्टॉक महल की ओर पलायन कर लिया। स्टॉक पैलेस राजा सेस्पाल तोंडुप नामग्याल द्वारा 1825 में निर्मित किया गया था। अब यहां म्यूजियम बना दिया गया है जहां पुराने सिक्के, शाही मुकुट, शाही परिधान व अन्य शाही वस्तुएं, लद्दाख के चित्र आदि आप देख सकते हैं।
पुरात्व विभाग कर रहा महल का संरक्षण
लेह महल का संरक्षण भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा किया जा रहा है। यह महल आम यात्रियों के लिए खुला हुआ है। इस महल के छत से लेह और उसके चारों ओर का अद्भुत व मनोरम दृश्य साफ नजर आते हैं। इस महल में कई मंदिर हैं, जो ज्यादातर बंद रहते हैं। पुजारी सुबह व शाम की पूजा के समय ही इन मंदिरों को खोलते हैं।
450 साल पुराने हैं यहां के चित्र
महल की वास्तुकला तिब्बती थांका चित्रकला को बखूबी प्रदर्शित करती है। यहां प्रदर्शित ये चित्र लगभग 450 साल पुराने हैं। यहाँ प्रदर्शित चित्रों को रत्नों व पत्थरों को कुचल व पीसकर बनाये गए पाउडर के रंगों से बनाया गया था। यहां का संग्रहालय में आज भी शाही परिवार के पुराने हीरे जवाहरात, आभूषण, गहने, कपड़े और औपचारिक मुकुट उसी तरह रखे हुए हैं। महल के भीतर एक छोटा पुस्तकालय भी है जिसमें कई पुराने बौद्धिक ग्रन्थ संरक्षित रखे गए हैं।
खास बातें:-
- - पहाड़ की चोटी पर बना यह महल ल्हासा के प्रसिद्ध पोटाला महल का लघु-स्वरूप माना जाता है।
- - इस महल को राजा सेंग्गे नामग्याल ने 17 वीं शताब्दी में बनवाया था।
- - यह महल तिब्बती कारीगरी का बेहतरीन नमूना है।
- - यह महल नौ मंजिलों का है। इस महल से जुड़े कई मंदिर भी हैं जो आमतौर पर बंद रहते हैं।
- - इन मंदिरों को पुजारी सुबह और शाम के वक्त पूजा करने के लिए ही खोलते हैं।