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कश्मीरियत: कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बरकरार, कश्मीरी पंडित की शवयात्रा में हजारों मुस्लिम हुए शरीक

दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में जिहादी तत्वों की साजिश के बावजूद हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बरकरार है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 27 Aug 2019 09:27 AM (IST)Updated: Tue, 27 Aug 2019 09:27 AM (IST)
कश्मीरियत: कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बरकरार, कश्मीरी पंडित की शवयात्रा में हजारों मुस्लिम हुए शरीक
कश्मीरियत: कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बरकरार, कश्मीरी पंडित की शवयात्रा में हजारों मुस्लिम हुए शरीक

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में जिहादी तत्वों की साजिश के बावजूद हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बरकरार है। पुलवामा में वर्षो से रह रहे डॉ. रत्न लाल कौल की जब दो दिन पहले मृत्यु हुई तो पड़ोसियों ने उनके परिजनों को उनका शव जम्मू नहीं ले जाने दिया। वह जम्मू से उनके परिजनों को ले आए और शवयात्रा में करीब छह हजार लोग शामिल हुए।

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पुलवामा के मुरन इलाके में रहने वाले रत्न लाल ने आतंकियों की धमकियों के बावजूद अपना घर नहीं छोड़ा। वह मुरन में ही रहे। जब उनका देहांत हुआ तो उस समय उनका छोटा बेटा ही उनके साथ था। पड़ोसियों को जब पता चला तो वह तुरंत रत्न लाल के घर पहुंचे। बेटे ने कहा कि वह अपने दिवंगत पिता का अंतिम संस्कार जम्मू में करना चाहता है क्योंकि पूरा परिवार वहीं पर है, लेकिन पड़ोसी नहीं मानें। उन्होंने दिवंगत के बेटे को संभाला और तीन गाडि़यां जम्मू के लिए भेजी ताकि दिवंगत के परिजनों और रिश्तेदारों को पुलवामा लाया जा सके।

मुश्ताक अहमद ने बताया कि रत्न लाल के सभी रिश्तेदार सुबह यहां पहुंचे। हमने पूरी तैयारी कर रखी थी। उनके निधन की खबर सुनकर पुलवामा के विभिन्न गांवों के अलावा शोपियां व कुलगाम से भी बड़ी संख्या में मुस्लिम उनकी शवयात्रा में शरीक होने आए। इस पूरे इलाके में शायद ही कोई होगा, जो उन्हें नहीं जानता हो। पुलवामा में दवाओं की पहली दुकान उनकी ही थी। दिन हो या रात, कोई भी उनके पास अपनी बीमारी के लिए जाता था तो वह दवा लेकर ही लौटता था।

इरशाद बट ने कहा कि मैं 50 साल का हूं। मैंने रत्न लाल को बचपन से यहीं देखा है। जो आदमी जिंदगीभर कश्मीर छोड़कर नहीं गया। जो हमारे सुख-दुख का साथी रहा। हम मरने के बाद उन्हें कैसे उनकी मिट्टी से दूर होने देते। यहां हालात ठीक नहीं है, फोन नहीं चल रहे थे। जम्मू से गाड़ी मिलती या नहीं मिलती, इसलिए हमने यहीं से तीन गाडि़यां जम्मू भेजी।

चुन्नी लाल नामक कश्मीरी पंडित ने कहा कि यही तो कश्मीरियत है। जिहादियों ने कश्मीरियत को मारने की बड़ी साजिशें की, लेकिन यह आज भी जिंदा है। रत्न लाल की मौत पर पूरे पुलवामा के लोग दुखी हैं। रत्न लाल के एक रिश्तेदार जो पेशे से अध्यापक हैं, ने कहा कि हम यहां आने से डर रहे थे, लेकिन पड़ोसियों ने पूरा इंतजाम कर रखा था। यहां के लोगों ने जिस तरह व्यवहार किया है, उससे साबित होता है कि कश्मीर में भाईचारा आज भी मजबूत है। 

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