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Yasin Malik Terror Funding Case: कश्मीर की यह खामोशी बहुत कुछ सुनाती है

Yasin Malik Terror Funding Case 56 वर्षीय मोहम्मद यासीन मलिक कश्मीर के उन चार आतंकियों में एक हैजो तथाकथित तौर पर सबसे पहले आतंकी ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान गए थे। इन चार आतंकियोे को हयाजी ग्रुप कहा जाता रहा है।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Thu, 19 May 2022 06:04 PM (IST)Updated: Thu, 19 May 2022 06:04 PM (IST)
Yasin Malik Terror Funding Case: कश्मीर की यह खामोशी बहुत कुछ सुनाती है
वर्ष 1987 के बाद कश्मीर पूरी तरह बदल गया ।

श्रीनगर, नवीन नवाज । कश्मीर घाटी-जहां कभी बंद कितना लंबा चलेगा, यह सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की संख्या पर तय होता था। लोग कब तक हड़ताल करेंगे, इसके लिए हड़ताली कैलेंडर जारी होता था। किसी अलगाववादी के घर पुलिस की दबिश बाद में होती थी, पथराव पहले शुरू हो जाता था। वीरवार को उसी कश्मीर में न किसी जगह कोई दुकानों को बंद करा रहा था और न कोई हड़ताल का एलान करा रहा था। कश्मीर की गाजापट्टी कहलाने वाला मैसूमा, जो लालचौक के साथ सटा हुआ है, भी पूरी तरह शांत रहा। दुकानें खुली रही और किसी को भी फिक्र नहीं थी कि दिल्ली के पटियाला हाउस में स्थित एनआइए की अदालत में यासीन मलिक के साथ क्या होने जा रहा है। कल तक जो कश्मीर में आजादी के नारे का नायक बना घूमता था, जिसके हाथ कश्मीरी हिंदुओं ही नही, राष्ट्रवादी कश्मीरी मुस्लिमों के खून से भी सने हैं, आज वादी में पूरी तरह बेगाना नजर आ रहा है।

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झेलम दरिया को कश्मीरी हिंदुओं के खून से लाल करने वाले आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन मोहम्मद यासीन मलिक के खिलाफ पटियाला हाउस स्थित अदालत में सजा तय करने की प्रक्रिया शुरु हो गई है। सभी सुरक्षा एजेंसियों और कश्मीरी मामलों के तथाकथित विशेषज्ञों को आशंका थी कि उसे सजा तय करने की पक्रिया पर कश्मीर में खूब हंगामा होगा, लेकिन नहींं हुआ है।

56 वर्षीय मोहम्मद यासीन मलिक कश्मीर के उन चार आतंकियों में एक है,जो तथाकथित तौर पर सबसे पहले आतंकी ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान गए थे। इन चार आतंकियोे को हयाजी ग्रुप कहा जाता रहा है। इनमें हमीद शेख, अशफाक मजीद वानी, यासीन मलिक और जावेद मीर शामिल हैं। हमीद और अश्फाक दोनों ही मारे जा चुके हैं। वर्ष 1980 में तला पार्टी के नाम से एक अलगाववादी गुट तैयार करने वाले यासीन मलिक ने अपने साथियों के साथ मिलकर श्रीनगर के शेरे कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम की 1983 में उस समय पिच खोद दिया था, जब वहां भारत और वेस्टइंडीज के बीच मैच होने जा रहा था। तला पार्टी 1986 में इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग बनी और मलिक उसका महासचिव। फिर 1987 के चुनाव हुए और उस समय मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के बैनर तले अलगाववादी विचाराधारा के विभिन्न संगठनों ने जमात ए इस्लामी का चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में मलिक व उसके साथ यूसुफ शाह के पोलिंग एजेंट थे। यूसुफ शाह ही आज हिजबुल मुजाहिद्दीन का सुप्रीम कमांडर सैयद सलाहुद्दीन है।

वर्ष 1987 के बाद कश्मीर पूरी तरह बदल गया और यासीन मलिक व उसके साथी कश्मीर की आजादी के नारे के साथ कश्मीरी मुस्लिमों के बीच नायक बनकर उभरे। उन्होंने कश्मीरी हिंदुओं को चुन-चुनकर कर मारा और उन्हें कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर किया। अगस्त 1990 में यासीन मलिक पकड़ा गया और 1994 में वह जेल से छूूटा। जेल से छूटते ही उसने खुद को कश्मीर का गांधी साबित करने का प्रयास करते हुए कहा कि वह अब बंदूक नहीं उठाएगा,लेकिन महात्मा गांधी की तरह ही कश्मीर की आजादी के लिए लड़ेगा। उसके एक इशारे पर कश्मीर बंद होता था, मैसूमा जहां जेकेएलएफ का मुख्यालय और उसका घर है, हर रोज होने वाले पथराव के कारण कश्मीर की गाजापट्टी के नाम से कुख्यात हो गया।

यासीन मलिक के शौक शाही हैं

वर्ष 2017 से ही टेरर फंडिंग के सिलसिले में तिहाड़ जेल में बंद यासीन मलिक के मुद्दे पर कश्मीर में व्याप्त खामोश का जिक्र करते हुए कश्मीर के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा इसे आप दो तरह से देख सकते हैं। पहला यह कि उसका दोगलापन पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है। मंहगे डिजायनर सूट पहनने के शौकीन यासीन मलिक सिर्फ दिखावे के लिए मैसूमा स्थित अपने पुराने मकान में रहता था, लेकिन शाैक उसे शाही हैं। कट्टरपंथी अलगाववादियों के बीच खुद को प्रगतिशील बताने वाले यासीन मलिक की रंगीन मिजाजी के किस्से पूरे कश्मीर में मशहूर हैं पाकिस्तान की रहने वाली मुशाल मलिक के साथ शादी करने वाला यासीन मलिक कई बार लड़कियों के साथ पकड़ा गया है। करीब पांच साल पहले वह अपने ही मुहल्ले की एक लड़की के साथ श्रीनगर से कुछ ही दूरी पर जिला बडगाम में एक गाड़ी में पकड़ा गया था। उसने यहां कई लोगों को सिर्फ इसलिए पिटवाया, क्योंकि उन्होंने उसके खिलाफ आवाज उठाई थी। वह एक माफिया की तरह काम करता था। सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए जेकेएलएफ के कई आतंकियों के परिजन आज सड़क पर हैं, वह जब कभी इससे मदद मांगने गए तो इसने हमेशा उन्हें दुत्कारा है। इसके अलावा लोग अब आतंकी हिंसा से कश्मीर में हुई तबाही को महसूस करते हैं, इसलिए वह इसे कश्मीर का खलनायक मानते है। खलनायक की मौत पर, उसकी हार पर कोई नहीं रोता।

मैसूमा से करीब 100 मीटर की दूरी पर स्थित कोकर बाजार के रहने वाले एक नागरिक ने कहा कि आतंकी हिंसा को छ़ोड़ खुद को अमन का पैरोकार कहने वाला यासीन मलिक स्थानीय लड़कों को अपना गुंडा बनाकर रखता था। जब किसी प्रदर्शन के समय पुलिस उसे रोकती थी तो वह पुलिसअधिकारियों के साथ मारपीट करता था। वह कई बार पुलिसकर्मियों को थप्पड़ मार देता था और इस तरह से वह लालचौक, मैसूमा और उसके साथ सटे इलाकों में रहने वाले युवाओं के बीच खुद को कश्मीर का डान साबित करने का प्रयास करते हुए उन्हें अपने गुट में शामिल करता था।

कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि आम कश्मीरी सोचते हैं कि उसने उन्हीं आरोपों को स्वीकारा है,जिन पर उसे ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद हो सकती है। अगर वह ईमानदार है तो उसने रुबिया सईद, वायुसेना के अधिकारियों पर हमले, आम कश्मीरी हिंदुओं और कश्मीरी मुस्लिमों के कत्ल को क्यों नहीं स्वीकारा। जेकेएलएफ के आतंकियों ने कई बार दूसरी तंजीमों के आतंकियों को मारा है, उसने यह क्यों नहीं स्वीकारा। मतलब यह कि वह सिर्फ दिखावे के लिए, खुद को महान साबित करना चाहता है और आम कश्मीरी अब उसे अपना नायक नहीं मानता।

यासीन मलिक पर कश्मीर के विभिन्न थानों में 60 के करीब एफआइआर हैं दर्ज

यासीन मलिक पर आतंकी हिंसा, हवाला, कत्ल, अपहरण, कानून व्यवस्था भंग करने, सरकारी अधिकारियों के साथ मारपीट करने समेत 60 के करीब अलग एफआइआर कश्मीर के विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज हैं। उसे टाडा और पीएसए के तहत भी कई बार बंदी बनाया गया है। 1994 में जेल से छूटने के बाद 1998 तक वह कई बार पकड़ा गया अौर कभी एक माह तो कभी तीन माह बाद जेल से छूट जाता रहा है। अक्टूबर 1999 में यासीन मलिक को पुलिस ने राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आधार जन सुरक्षा अधिनियम के तहत बंदी बनाया था। कुछ समय बाद वह जेल से छूट गया और 26 मार्च 2002 को उसे हवाला से संबंधित एक मामले में पोटा के तहत गिरफ्तार किया गया था। वर्ष 2013 में उसने पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद के साथ मिलकर कश्मीर में सुरक्षाबलों पर आम कश्मीरियों के मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाते हुए धरना दिया था।

वर्ष 2009 में उसने पाकिस्तान की रहने वाली मुशाल मलिक से शादी की। मुशाल मलिक एक चित्रकार हैं।दोनों की एक बेटी रजिया सुल्तान है जो वर्ष 2012 में पैदा हुई है। मार्च 2020 में यासीन मलिक और उनके साथियों के लिए टाडा अधिनियम, सशस्त्र अधिनियम 1959 के तहत 25 जनवरी 1990 को रावलपोरा श्रीनगर में वायुसेना के अधिकारियों पर हमले के आरोप तय हुए। इस हमले में वायुसेना के चार अधिकारी वीरगति को प्राप्त हुए थे।यासीन मलिक ने अपने साथियों संग मिलकर आठ दिसंबर 1989 को तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री और जम्मू कश्मीर पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रुबिया सईद का अपहरण किया था। यह मामला भी अदालत में विचाराधीन है।वर्ष 2017 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआइए ने यासीन मलिक को कश्मीर में आतंकी व अलगाववादी गतिविधियों के लिए टेरर फंडिंग के मामले में गिरफ्तार किया और उसके बाद से वह निरंतर जेल में ही है।  


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