जमींदोज सदल गांव की उम्मीदें भी मिट्टी में, यहां हर दिन जिंदगी जीना नई चुनौती
साढ़े चार साल पहले सदल भी हंसा खेलता गांव था लेकिन सितंबर 2014 में बारिश इस गांव पर कहर बन कर बरसी और देखते ही देखते पूरा गांव जमींदोज हो गया और 40 लोग मलबे में जिंदा दफन हो गए थे।
ऊधमपुर, अमित माही। वर्ष 2014 में सितंबर माह में प्राकृतिक आपदा का शिकार ऊधमपुर जिले के पंचैरी ब्लॉक के पंजर पंचायत के सदल गांव के लोग न तो उस काली रात को आज तक भूल पाए हैं न ही सदल को आदर्श गांव के रूप में बसाने का सांसद का किया वादा। सांसद की अनदेखी से गांव के लोग खफा हैं। क्योंकि त्रसदी के बाद सांसद एक बार ही आए और उसके बाद इधर का रास्ता ही भूल गए। पिछले साढ़े चार साल से वह परेशानी में जी रहे हैं। उनका कहना है कि अक्सर लोग मतदान का बहिष्कार करने की बात करते हैं। मगर वह मतदान का बहिष्कार नहीं करेंगे, मगर ग्रामीण वादा पूरा न करने वाले को इस बार वोट नहीं देंगे।
साढ़े चार साल पहले सदल भी हंसा खेलता गांव था, लेकिन सितंबर 2014 में बारिश इस गांव पर कहर बन कर बरसी और देखते ही देखते पूरा गांव जमींदोज हो गया और 40 लोग मलबे में जिंदा दफन हो गए थे। इसमें से 36 ही शव मिल सके।
मलबे दबे चार लोगों की तलाश में कई महीनों तक मलबे हटाने का काम चलता रहा। पीडि़त परिवार के सदस्य रोजाना इस इंतजार में घटनास्थल पर सुबह से शाम तक बैठे रहते थे कि शायद उनके बिछड़े परिवार के सदस्य के शव मिल जाएंगे। लेकिन उन्हें हर दिन निराशा ही हाथ लगती रही। अंत में शव ढूढऩे का काम भी बंद कर दिया गया।
एक पल में खो दिया पूरा परिवार
सुई में रहने वाले प्रभावित माधोराम को त्रसदी के बाद लगे गहरे सदमे के कारण मानसिक संतुलन खो दिया। सुई में आने के बाद जम्मू में चार माह उपचार के बाद वह ठीक हुआ। सुई में रहने वाले कालू राम ने उस त्रस्दी में अपने पिता, भाई और दो बेटियों को एक पल में खो दिया। सांसद जितेंद्र सिंह ने चुनाव जीतने के बाद एक बार ही सदल गांव की सुध लेने पहुंचे लेकिन उसके बाद यहां आने उचित नहीं समझा। ऐसे में इस गांव के लोग काफी नाराज है वे इस बार लोकसभा चुनाव में सोच समझ कर मतदान करेंगे।
2015 में सदल के स्मार्ट गांव बनाने की हुई थी घोषणा
सदल गांव के सरपंच कौशल कुमार और सुई में रहने वाले सदल त्रस्दी के पीडि़त कुंज लाल व अन्य पीडि़त परिवारों के सदस्यों ने बताया कि सदल के जमींदोज होने के बाद जनवरी 2015 में ऊधमपुर क्षेत्र के सांसद एवं केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सदल गांव को गोद लिया था। उन्होंने इसे न केवल जून 2016 से पहले बसाने का वादा किया, बल्कि इस गांव को राज्य का पहला स्मार्ट विलेज बनाने भी घोषणा की थी। जहां पर प्रभावित परिवारों का पुनर्वास करने के साथ उनके प्रशिक्षण और कामकाज की व्यवस्था भी की जानी थी।
सिर्फ निभाई गई औपचारिकताएं
प्राकृतिक आपदा का शिकार सदल गांव के पुनर्वास और उसे स्मार्ट बनाने की कवायद जरूर हुई लेकिन वह सिर्फ औपचारिकताएं तक सीमित रह गई। घोषणा के बाद जियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून की टीमों ने संयुक्त सर्वे कर न केवल सदल बल्कि इससे आसपास स्थित पंजर, कसूरी को आबादी बसाने के लिहाज से असुरक्षित घोषित कर दिया। फिर सदल को अन्यत्र बसाने की योजना बनी। इसके लिए 150 से 200 कनाल जमीन की तलाश हुई। ध् मगर इसके बावजूद न तो कोई आदर्श गांव बस पाया और न ही किसी प्रभावित को प्लॉट आवंटित हो सका।
हर दिन जिंदगी जीना नई चुनौती
पहाड़ गिरने से जमींदोज हुए सदल गांव के कई लोग जिंदा तो बच गए, लेकिन उनके लिए जिंदगी हर दिन चुनौती बन गई है। हादसे में जिंदा बचे शाम लाल, काहनू राम कुंज लाल, शाम लाल, मक्खना देवी, खेम राज ने बताया कि सदल में रहने वाले 46 परिवारों को प्रशासन ने सुई में आपदा प्रबंधन शेड दिया है। अंदर प्लाई बोर्ड से विभाजन कर कमरे बनाए गए हैं। पूरे हॉल की छत एक है। त्रसदी के बाद शुरू में एक साल तक तो संस्थाएं मदद करने आती थी, मगर अब तो कोई भी सुध लेने नहीं आता। वह लोग जिंदा तो हैं, लेकिन रोज मर-मर कर जी रहे हैं। प्लाई बोर्ड भी जर्जर हो चुके हैं। कुछ महीनों में यह भी नहीं रहेंगे।