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परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह: वो शूरवीर जिसने -30 तापमान में पाक सेना को चटाई थी धूल

Param Vir Chakra Captain Bana Singhजब भी सियाचिन मोर्चे का जिक्र होता है, बाना सिंह का नाम सबसे पहले सुनाई पड़ता। परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह रविवार को 70 साल के हो गए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 07 Jan 2019 11:49 AM (IST)Updated: Mon, 07 Jan 2019 11:49 AM (IST)
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह: वो शूरवीर जिसने -30 तापमान में पाक सेना को चटाई थी धूल
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह: वो शूरवीर जिसने -30 तापमान में पाक सेना को चटाई थी धूल

जम्मू, जेएनएन। दुनिया का सबसे ऊंचा रण क्षेत्र..तापमान शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस नीचे..जहां पानी के लिए बर्फ को पिघलाना पड़ता है। जहां अगर खुले हाथ किसी राइफल के टिगर को छू लिया जाए, तो 15 सेकेंड में हाथ सुन्न हो सकता है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में जहां हम और आप जैसे लोग पांच मिनट नहीं टिक सकते, वहां हमारे सैनिक 365 दिन अदभ्य साहस का परिचय दे रहे हैं। बर्फीले तूफान में कोई कब, कौन और कैसे दफन हो जाए, यह कोई नहीं जानता। इनकी परवाह किए बगैर हमारे सैनिक ऐसे अदभ्य साहस का परिचय दे रहा हैं, जिनका जीता-जागता उदाहरण कैप्टन बाना सिंह हैं। जब भी सियाचिन मोर्चे का जिक्र होता है, बाना सिंह का नाम सबसे पहले सुनाई पड़ता है।

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परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह सत्तर साल के हुए सेना के कई वरिष्ठ अधिकारियों और युद्धों में लड़ चुके कई पूर्व सैनिकों ने दी बधाइयां

आसान नहीं था पहुंचना:

भारतीय सेना ने यह प्रस्ताव बनाया कि हमें इस चौकी को वहां से हटाकर उस पर अपना कब्जा कर लेना है। इस प्रस्ताव के जवाब में नायब सूबेदार बाना सिंह ने खुद आगे बढ़कर यह कहा कि वह इस काम को जाकर पूरा करेंगे। वह आठ जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेस्टरी में नायब सूबेदार थे। उन्हें इसकी इजाज़त दे दी गई। नायब सूबेदार बाना सिंह ने चार साथी और लिए, और लक्ष्य की ओर बढ़ गए।

योजना के अनुसार, बटालियन के दूसरे लोग पाकिस्तान दुश्मन के सैनिकों को उलझा कर रखे रहें और उधर, बाना सिंह और उनके साथियों ने उस चौकी तक पहुंचने का काम शुरू कर दिया। कायद पोस्ट की सपाट दीवार पर, जो बर्फ की बनीं थी, उस पर चढ़ना बेहद कठिन और जोखिम भरा काम था। इसके पहले भी कई बार इस दीवार पर हिंदुस्तानी सैनिकों ने चढ़ने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे।

रात का तापमान शून्य से भी तीस डिग्री नीचे गिरा हुआ था। भयंकर सर्दी के कारण बन्दूकें भी ठीक काम नहीं कर रहीं थीं। खैर, अंधेरे का फायदा उठाते हुए बाना सिंह और उनकी टीम आगे बढ़ रही थी। रास्ते में उन्हें उन भारतीय बहादुरों के शव भी पड़े दिख रहे थे, जिन्होंने यहां पहुंचने के रास्ते में प्राण गंवा दिए थे। जैसे-तैसे बाना सिंह अपने साथियों को लेकर ठीक ऊपर तक पहुंचने में कामयाब हो गये। वहां पहुंचकर उन्होंने अपने दल को दो हिस्सें में बांटकर, दो दिशाओं में तैनात कर दिया और फिर पोस्ट पर ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिए। एक तरफ ग्रेनेड ने अपना काम कर दिखाया, दूसरी ओर दूसरे दल के जवानों ने दुश्मन के सैनिकों को, जो कि उस चौकी पर थे, बैनेट से मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। वहां पर पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप के कमांडो तैनात थे, जो अचानक हुए हमले में मारे गए और कुछ चौकी छोड़कर भाग निकले। कुछ ही देर में वह चौकी दुश्मनों के हाथ से भारतीय बहादुरों के हाथ में आ गई। मोर्चा फ़तह हुआ। बाना सिंह समेत उनका दल सही सलामत था और बकायद पोस्ट पर भारत फलह हासिल कर चुका था।

 कैप्टन बाना सिंह की बहादुर गाथा

पाकिस्तानी सेना के साथ भारतीय सेना की चार मुलाकातें युद्धभूमि में तो हुईं ही हैं, कुछ और भी मोर्चे हैं, जहां हिन्दुस्तान के बहादुरों ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर कर रख दिया। सियाचिन का मोर्चा भी इसी तरह का एक मोर्चा है, जिसमें जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री के आठवें दस्ते के नायब सूबेदार बाना सिंह को पराक्रम और साहस के लिए परमवीर चR दिया गया। बाना सिंह को सम्मान देने व उनकी वीरता को याद रखने के लिए सियाचिन में जिस चौकी को बाना सिंह द्वारा फतह किया था, उसका नाम बाना पोस्ट रख दिया।

महत्वपूर्ण है सियाचिन

सियाचिन के बारे में दूर बैठकर केवल कल्पना की जा सकती है। समुद्र तट से 21,153 फीट की ऊचांई पर स्थित पर्वत श्रेणी, जहां 40 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बर्फानी हवाएं चलती ही रहती हैं और जहां का अधिकतम तापमान -35ए ष्ट सेल्सियस होता है।

यहां मिलती हैं तीन देशों की सीमाएं

1949 में कराची समझौते के बाद, जब युद्ध विराम रेखा खींची गई थी, तब उसका विस्तार जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में उत्तर की तरफ खोर से लेकर दक्षिण की ओर मनावर तक था। इस तरह यह रेखा उत्तर की तरफ 9842 के हिमशैलों की तरफ जाती है। इस क्षेत्र में घास का एक तिनका तक नहीं उगता है, सांस लेना तक सर्द मौसम के कारण बेहद कठिन है। कुछ भी हो, यह ठिकाना ऐसा है जहां भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाएं मिलती हैं।

मिला था माकूल जवाब

वर्ष 1987 में पाक ने सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सीमा के अंदर चौकी बनाने का आदेश सेनाओं को दिया था। वह जगह भारत की ओर से आरक्षित थी। वहां पर पाक सैनिकों ने अपनी चौकी खड़ी की और च्कायद चौकी का नाम दिया। यह नाम पाक के जनक कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर रखा था।

70 वर्ष के हुए बाना सिंह

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह रविवार को 70 साल के हो गए। टेलीफोन पर बधाइयों देने वालों में सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी व युद्धों में उनके लड़ चुके कई पूर्व सैनिक भी शामिल थे। कैप्टन बाना सिंह को फोन करने वालों में लेफ्टिनेंट जनरल एसके दुआ भी शामिल थे। कैप्टन बाना सिंह ने बताया कि वह देशवासियों के आभारी हैं। बाना सिंह का जन्म 6 जनवरी, 1949 को जम्मू के सीमावर्ती आरएसपुरा के कादियाल गांव में हुआ।


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