Militancy in Kashmir: कश्मीर घाटी में आतंकियों के पास MGL, एक बड़े खतरे का संकेत
कश्मीर घाटी में बीते 30 साल से जारी आतंकी हिंसा के इतिहास में यह पहला मौका है जब आतंकियों या उनके किसी ओवरग्राउंड वर्कर से एमजीएल ग्रेनेड मिले हों।
श्रीनगर, नवीन नवाज। कश्मीर घाटी में सक्रिय आतंकियों की पहुंच अब एसाल्ट राइफल, मशीनगन, पिका गन और यूबीजीएल जैसे हथियारों तक सीमित नहीं रही है। अब उनके पास अत्याधुनिक मल्टील ग्रेनेड लांचर जिसे एमजीएल भी कहते हैं। आतंकियों के पास इस हथियार की मौजूदगी की पुष्टि कुपवाड़ा में पकड़े गए दो आतंकियां से 40 एमएम के तीन ग्रेनेड की बरामदगी से होती है। इससे सुरक्षा एजेंसियां सकते में आ गई हैं। आतंकियों के पास इस हथियार की मौजूदगी आने वाले समय में किसी बड़े आतंकी हमले और खतरे की ओर संकेत करती हैं। फिलहाल, दोनों आतंकियों से पूछताछ जारी है।
पुलिस ने गत मंगलवार को कुपवाड़ा मे एक जगह विशेष पर सेना के जवानों के साथ मिलकर दबिश दी थी। इस दौरान बडगाम के रहने वाले दो आतंकी अतहर युसुफ वानी और साहिल बशीर पकड़े गए थे। इनके पास से बरामद हथियारों के जखीरे में मीडियम विलासिटी के 40 एमएम के तीन एमजीएल ग्रेनेड भी शामिल हैं। कश्मीर घाटी में बीते 30 साल से जारी आतंकी हिंसा के इतिहास में यह पहला मौका है जब आतंकियों या उनके किसी ओवरग्राउंड वर्कर से एमजीएल ग्रेनेड मिले हों।
पाक सेना भी करती है एमजीएल का इस्तेमाल: कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा ले रहे सुरक्षाधिकारियों के मुताबिक, एमजीएल ग्रेनेड की बरामदगी से पहले तक उनके ध्यान में कहीं भी नहीं था कि आतंकी इस हथियार तक भी अपनी पहुंच रखते हैं। एमजीएल भारतीय सेना में भी सिर्फ पैरा कमांडो और एनएसजी दस्ते तक सीमित है। पाकिस्तानी सेना भी एमजीएल का इस्तेमाल करती है। जिन आतंकियों से एमजीएल ग्रेनेड मिले हैं, वे एलओसी के साथ सटे कुपवाड़ा में पकड़े गए हैं। इसलिए इस बात की भी आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये पाकिस्तान से ही तस्करी कर लाए गए हैं। इनका इस्तेमाल आतंकियों के पास उपलब्ध एमजीएल में होगा।
घाटी में आतंकियों से मिसाइल भी मिल चुका है: कश्मीर में आतंकियों के पास से मिसाइल भी मिल चुका है। सौर ऊर्जा से चलने वाले राॅकेट भी मिले हैं। पिकागन और मशीन गन भी कई बार बरामद हो चुकी हैं। बीते तीन सालों के दौरान जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों के पास से अलग-अलग मौकों पर तीन एम-4 अमरीकन कारबाइन राइफलें भी मिल चुकी हैं। लेकिन एमजीएल नहीं मिला है। अब पहली बार उसके ग्रेनेड मिले हैं। अगर आतंकियों के पास यह हथियार है तो यह किसी बड़े हमले को अंजाम देने के लिए ही लाया होगा। अधिकारी ने यह भी बताया कि वादी में यह कितने आतंकियों के पास होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन यह एक-दो आतंकियों के पास ही होगा। इससे ज्यादा नहीं।
क्या है एमजीएल
मल्टीपल ग्रेनेड लांचर को सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका ने 1981 में दुनिया के सामने लाया । दो साल बाद इसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन शुरु किया गया। कुछ ही वर्षों में यह 50 से ज्यादा मुल्कों की सेना और पुलिस में लोकप्रिय हो गया। एमजीएल परंपरागत एम-203 जैसे एक बार फायर करने वाले ग्रेनेड लांचर की तुलना में ज्यादा तेजी से फायर करने में समर्थ है। यह किसी भी मौसम और भौगोलिक परिस्थिति में एक विश्वसीनय हथियार माना जाता है। इसकी तकनीक भी एक रिवाल्वर जैसी होती है । इसमें एक डबल एक्शन ट्रिगर होता है। अगर कभी फायरिंग के समय मिस फायर हो तो यह दूसरे राउंड को नहीं दागता बल्कि पहला राउंड जो मिसफायर हुआ था, उसे दोबारा फायरिंग के लिए लोड कर दागा जा सकता है।
इसके ऊपर एक निशाना साधने के लिए आई गनसाइट जिसे आम बोलचाल में हम दूरबीन कह सकते हैं, लगी होती है। इसकी अधिकतम मारक क्षमता 400 मीटर है लेकिन 375 मीटर तक यह अपने निशाने पर स्टीक और घातक मार करती है। इसमें छह ग्रेनेड एक साथ लोड किए जा सकते हैं। किसी हमले के समय तीन सैकेंड में ही छह के छह ग्रेनेड दागे जा सकते हैं। यह किसी विशाल रीछ को एक ही फायर में ढेर कर सकता है। इसमें एचई, एचईएटी, एंटी राॅयट बैटन जैसे ग्रेनेड व गाेलियां इस्तेमाल की जा सकती हैं। यह आतंकरोधी अभियानों और लीको ( लो इंटेसिटी कनफलिक्ट आॅपरेशन्स) में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जंगल, पहाड़, मैदान या घनी आबादी वाले किसी भी इलाके में यह कारगर है। पूरी तरह प्रशिक्षित सैनिक या कमांडो इससे एक मिनट में 18 ग्रेनेड निशाने पर स्टीक दाग सकता है। इसके बट को खोलकर एक राइफल की तरह भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।