देश पर कुर्बान हुआ अखनूर का लाल
सियाचिन में शहीद हुए सिपाही सुखजिन्दर सिंह के पिता कैप्टन राज सिंह अब बेटे के बाद पोते को भी वीरता का पाठ पढ़ाएंगे। अखनूर के टांडा गंडारवां के कैप्टन राज सिंह ने अपने बेटे सुखजिन्दर सिंह को फौज में भर्ती होने की प्रेरणा दी थी।
राज्य ब्यूरो, जम्मू: सियाचिन में शहीद हुए सिपाही सुखजिन्दर सिंह के पिता कैप्टन राज सिंह अब बेटे के बाद पोते को भी वीरता का पाठ पढ़ाएंगे। अखनूर के टांडा गंडारवां के कैप्टन राज सिंह ने अपने बेटे सुखजिन्दर सिंह को फौज में भर्ती होने की प्रेरणा दी थी। आज बेटे के पार्थिव शरीर को देखकर गमगीन पिता ने कहा कि बेटा देश की खातिर शहीद हुआ है। अगर देश ने बुलाया तो दुश्मन से लड़ने के लिए मैं फिर से बंदूक थामने से कभी पीछे नही हटूंगा। उनका कहना है कि अब मेरा मकसद सुखजिन्दर के बेटे को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाना होगा। कैप्टन राज सिंह ने परिवार में देश सेवा का जज्बा कूटकूट कर भरा है। चार साल पहले सुखजिन्दर सेना में भर्ती हुए थे। दो साल पहले उनका छोटा भाई बलविन्द्र सिंह भी सेना में भर्ती हो गया था। वह भी इस समय सेना की पंजाब रेजीमेंट में है। बेटो का चेहरा भी नहीं देख पाया
15 महीने पहले ही सुखजिन्दर की स्मृति कौर से शादी हुई थी। वह पिछले साल अक्टूबर में छुट्टियां काटकर सियाचिन में डयूटी पर गए थे। दो महीने पहले बेटे के रूप में परिवार में खुशियां आई। सुखजिन्दर का परिवार उनके फिर से छुट्टी आने की उम्मीदें लगाया बैठा था। इंतजार था कि कब छुट्टी मंजूर हो व सुखजिन्दर अपने बेटे को देख पाए। अकसर टेलीफोन पर अपने बेटे की खैर खबर ले लेता था। विश्वास दिलाता था कि वह जल्द ही मिलने आएगा, लेकिन जब आया तो तिरंगे में लिपटकर। पत्नी के हाथ से शादी का चूड़ा भी नहीं उतरा
मंगलवार को सुखजिन्दर के शहीद होने की सूचना मिलने के बाद परिवार पर दुख का पहाड़ टूट गया था। दुल्हन स्मृति कौर के हाथ से अभी तक शादी का चूड़ा भी नहीं उतरा था। बिलख रही स्मृति को देखकर सबकी आंखें नम थीं। पति अपने बेटे का चेहरा देखे बिना ही देश की खातिर कुर्बान हो गए थे। शहीद की बहन मनप्रीत कौर व माता सुनीत कौर का भी रो-रोकर बुरा हाल था। गांव की महिलाएं उन्हें संभाल रही थीं।
----------------------------------- बेटे का नाम रखने के लिए पिता का हो रहा इंतजार
शहीद हरजिन्दर सिंह का परिवार उनके बेटे के नामकरण के लिए उनके आने का इंतजार कर रहा था। बेटा दो महीने का हो गया था लेकिन परिवार ने उसका नाम नहीं रखा था। उसे प्यार के नाम से बुलाया जाता था। सुखजिन्दर जब गत वर्ष अक्टूबर महीने में छुट्टी काट कर गए थे तेा उसके समय पत्नी गर्भवती थी। ऐसे में आने वाले बच्चे की सलामती के लिए परिवारजनों के साथ सियाचिन में बैठा सुखजिन्दर भी दुआएं मांगता था। परिवारजनों के अनुसाी बेटे के पैदा होने की खबर मिलने पर उसकी खुशी का कोई ठिकाना नही रहा था। वह अकसर कहता था कि छुट्टी मिलते ही घर आकर बेटे को देखेगा। यह खुशी नसीब होने से पहले ही वह देश की खातिर कुर्बान हो गए।