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अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली नई अर्जी पर सुनवाई स्थगित

सुप्रीम कोर्ट आज केवल आर्टिकल 35-ए के खिलाफ वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करेगा। इस मामले में मुख्य सुनवाई 31 अगस्त को हो सकती है।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Mon, 27 Aug 2018 08:24 AM (IST)Updated: Mon, 27 Aug 2018 08:25 PM (IST)
अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली नई अर्जी पर सुनवाई स्थगित
अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली नई अर्जी पर सुनवाई स्थगित

नई दिल्ली, प्रेट्र। संविधान के अनुच्छेद 35ए की वैधानिकता को चुनौती देने वाली एक नई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी। शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आग्रह पर यह कदम उठाया है। संविधान के इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल है। इसके प्रावधानों के अंतर्गत राज्य विधान सभा को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सूबे के स्थायी नागरिकों की परिभाषा तय कर उन्हें विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करे।

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मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा एवं जस्टिस एएम खानविल्कर की पीठ ने नई याचिका पर सुनवाई नहीं की। पीठ ने यह कदम इसलिए उठाया, क्योंकि याचिकाकर्ता ने पहले ही शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को पत्र भेजकर अर्जी पर सुनवाई स्थगित करने का आग्रह किया था। भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक ताजी याचिका दाखिल कर संविधान के अनुच्छेद 35ए को मनमाना घोषित करने की मांग की है। उनका कहना है कि संविधान के इस अनुच्छेद को इस आधार पर मनमाना घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि यह समानता का अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी, जीवन का अधिकार, निजी स्वतंत्रता और महिलाओं के सम्मान जैसे मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।

अनुच्छेद 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेष दर्जा हासिल है। इसके तहत दूसरे राज्य के लोग जम्मू-कश्मीर में कोई भी अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं। इस अनुच्छेद के तहत यह भी प्रावधान है कि अगर राज्य की कोई महिला दूसरे सूबे के पुरुष के साथ शादी कर लेती है तो वह भी जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीदने और पुश्तैनी जायदाद हासिल करने के अधिकार से वंचित हो जाती है। इससे पूर्व भी अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई स्थगित हो चुकी है। इस अनुच्छेद के समर्थन में नेशनल कांफ्रेंस और माकपा सहित कई पार्टियां भी शीर्ष अदालत पहुंची हैं।
 

क्या है अनुच्छेद 35ए
दरअसल, अनुच्छेद 35-ए के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की विधानसभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिल जाता है। राज्य सरकार को ये अधिकार मिल जाता है कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे या नहीं दे।

जानिए-कब जुड़ा ये अनुच्छेद
14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिए भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया।

अभी तक शुरू नहीं हुई सुनवाई
35-ए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हो पाई है। पिछले साल अगस्त में भी राज्य की महबूबा मुफ्ती सरकार ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया था। इसके बाद इस साल के शुरू में केंद्र सरकार ने दिनेश्वर शर्मा को वार्ताकार नियुक्त किए जाने का हवाला देते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया था। एक बार फिर राज्य सरकार ने पंचायत चुनावों को देखते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया है।

क्या कहता है जम्मू-कश्मीर का संविधान
बता दें कि 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बनाया गया था। इसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया है। इस संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।

इन कारणों से है विरोध
इसके अलावा अनुच्छेद 35ए, धारा 370 का ही हिस्सा है। इस धारा की वजह से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है। महिलाओं ने भी अनुच्छेद को भेदभाव करने वाला कहा है।



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