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राजौरी दिवस पर विशेष: जब कबाइलियों से अस्मत बचाने के लिए कुओं में कूद गई थीं महिलाएं

राजौरी दिवस पर विशेष 30 हजार से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया भयानक मंजर याद कर कांप जाती है रूह बुजुर्गों के कानों में आज भी गूंजती है बच्चों के रोने की आवाज

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 03:24 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 03:24 PM (IST)
राजौरी दिवस पर विशेष: जब कबाइलियों से अस्मत बचाने के लिए कुओं में कूद गई थीं महिलाएं
राजौरी दिवस पर विशेष: जब कबाइलियों से अस्मत बचाने के लिए कुओं में कूद गई थीं महिलाएं

राजौरी, गगन कोहली। देश में आजादी के बाद पहली दीपावली का उत्सव मन रहा था और राजौरी में खून की होली खेली जा रही थी। कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना ने राजौरी में महीनों तक तांडव मचाया। जो भी मिलता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता और औरतों की आबरू लूट ली जाती। अस्मत बचाने को किसी ने जहर खा लिया और न जाने कितनी महिलाएं कुएं में कूद गईं। इस तांडव का अंत तब हुआ जब 12 अप्रैल 1948 को भारतीय सेना ने राजौरी में प्रवेश किया और 13 अप्रैल की सुबह राजौरी के लिए खुशियां लेकर आई। राजौरी को कबाइलियों से पूरी तरह मुक्त कर लिया गया। इस दिवस को राजौरी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। सेना शौर्य दिवस के तौर पर मनाती है।

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26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर का विलय भारत के साथ कर दिया। भारतीय सेना श्रीनगर पहुंची और कबाइलियों को खदेड़ना शुरू किया गया। इसके बाद कबाइली राजौरी की ओर भागे। कबाइलियों ने राजौरी में आते ही लोगों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। महिलाओं की अस्मत लूटी गई। 11 नवंबर 1947 को देश में दीपावली का पर्व मनाया जा रहा था उस समय राजौरी कबाइलियों के जुल्म में जल रहा था।

उस दौर को याद कर आज भी बुजुर्गों की रूह कांप जाती है। पूरा राजौरी आग की लपटों में घिरा हुआ नजर आ रहा था। बड़ी संख्या में महिलाओं ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। कई महिलाओं ने अपनी बेटियों के साथ जहर खा लिया तो कुछ ने कुएं में छलांग लगा दी। उन कुओं के स्थान पर अब बलिदान भवन बनाया गया, जिसका निर्माण नवंबर 1969 को हुआ। विशेष दिनों में पाठ पूजा के साथ शहीदों को याद किया जाता है।

कुलदीप राज गुप्ता कहते हैं कि मेरे कानों में आज भी बच्चों के रोने की आवाज गूंजती है। बच्चे अपनी मांओं को खो रहे थे। तब मेरी उम्र दस वर्ष थी। मैंने देखा कि कई माताएं जहर खाकर जान दे रही थीं। उस समय राजौरी के तहसीलदार हरजी लाल थे। जब कबाइलियों ने हमला बोला तो वह हम लोगों की सुरक्षा के लिए तैनात गोरखा राइफल के बीस जवानों को अपने साथ लेकर रियासी भाग गए। आरएसएस व सिंह सभा के सदस्यों ने कुछ दिन मुकाबला किया, पर उनका गोला-बारूद खत्म हो चुका था। इसका लाभ उठाकर कबाइलियों ने आक्रमण तेज कर दिया। इस लड़ाई में मेरे पिता के साथ परिवार के कई सदस्य मारे गए।

आज भी नहीं रुकते आंसू

कृष्ण लाल गुप्ता कहते हैं कि कबाइली कई महिलाओं को जबरन अपने साथ ले गए। अस्मत लूटकर कई को मौत के घाट उतार दिया। वह मंजर याद आता है तो आंसू बहने लगते हैं। जिस स्थान पर बलिदान भवन है, तब वहां कुआं था। इज्जत बचाने के लिए कई महिलाएं इस कुएं में कूद गई थीं।

राणै को मिला परमवीर चक्र

भारतीय सेना को नौशहरा से लेकर राजौरी तक पहुंचाने के लिए सेकेंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणै ने अहम भूमिका निभाई थी। इस साहसिक कार्य के लिए राणै को परमवीर चक्र मिला था। पाकिस्तान की सेना और कबाइलियों के हमले की खबर मिलते ही आठ अप्रैल 1948 को डोगरा रेजिमेंट के जवानों व अधिकारियों ने नौशहरा से राजौरी की तरफ मार्च किया था। पाकिस्तानी सेना ने रास्ते में बारूदी सुरंगें बिछा रखी थीं। राणै घायल होने के बाद भी बारूदी सुरंगों को हटाते रहे। उनकी बदौलत ही भारतीय सेना राजौरी में प्रवेश कर पाई। इसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनके नाम से ही हवाई पट्टी है।

मौलवी गुलाम उल दीन भी किए गए याद

मौलवी गुलाम उल दीन ने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाक सेना की हर गतिविधि की सूचना भारतीय सेना को दी। तब सेना ने मौलवी को अशोक चक्र से सम्मानित किया था। प्रत्येक वर्ष राजौरी दिवस पर मौलवी गुलाम उल दीन को भी याद किया जाता है।

माली बी को दी गई श्रद्धांजलि

जांबाज महिला माली बी ने 1971 के युद्ध से पहले ही सेना के अधिकारियों को जानकारी दे दी थी कि पाक सेना किसी भी समय आक्रमण कर सकती है। इसके बाद सेना के जवानों ने सीमा पर सुरक्षा को पुख्ता किया था। माली बी को पद्मश्री मिला था। 13 अप्रैल को उन्हें भी याद किया जाता है।

प्रत्येक वर्ष 13 अप्रैल को मंडी चौराहे पर बनाए गए शहीदी स्मारक पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें सैन्य अधिकारी, धर्म गुरु, प्रशासनिक अधिकारी व आम लोग प्रार्थना सभा में भाग लेते हैं। शहीदी स्मारक को सजाने का काम सेना के जवानों ने किया।


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