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Kashmiri Pandits: विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व होने पर ही घाटी वापसी संभव: शादीलाल

Kashmiri Pandits शादीलाल पंडिता का कहना है कि 32 साल से कश्मीरी पंडित परेशान हैं लेकिन उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। घाटी वापसी की कोई योजना नहीं बन रही। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारी बात सुनने वाला ही कोई नहीं है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 03 Aug 2021 10:57 AM (IST)Updated: Tue, 03 Aug 2021 10:59 AM (IST)
Kashmiri Pandits: विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व होने पर ही घाटी वापसी संभव: शादीलाल
पूरे मामले को लेकर कश्मीरी पंडित संगठनों में इन दिनों चर्चाएं हो रही हैं।

जम्मू, जागरण संवाददाता: 1989 में जब आतंकवाद के कारण घाटी में हालत बिगड़े तो कश्मीरी पंडितों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा। मगर 32 साल का अरसा गुजरने के बाद भी इन कश्मीरी पंडितों की घाटी वापसी नहीं हो पाई। आज भी यह लोग देश के अलग अलग हिस्सों में रहकर अपना जीवनयापन कर रहे हैं।

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जम्मू और ऊधमपुर में भी काफी संख्या में कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। विस्थापित कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधि शादीलाल पंडिता का कहना है कि जब तक विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व नहीं होगा, तब तक घाटी वापसी संभव नहीं लग रही है।

शादीलाल पंडिता ने कहा कि हर बार विधानसभा चुनाव में अपने क्षेत्र के लिए जम्मू में बने विशेष मतदान केंद्र से वोट तो डाल देते हैं, मगर जीतने वाले प्रतिनिधि दोबारा कश्मीरी पंडितों की बात सुनने नहीं आते। यही कारण है कि अब कश्मीरी पंडित विधानसभा की पांच सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए सुरक्षित रखने की मांग कर रहे हैं।

इनका कहना है कि विधानसभा में कश्मीरी पंडितों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। जब कश्मीरी पंडित विधानसभा में पहुंचेगा तो वहां पर समुदाय की आवाज को बुलंद कर सकेगा। घाटी में विभिन्न विधानसभा के लिए अब तक जो वोट दिए जाते रहे, वो किसी काम नहीं आए। अब हमें अपना प्रतिनिधि विधानसभा में चाहिए। पूरे मामले को लेकर कश्मीरी पंडित संगठनों में इन दिनों चर्चाएं हो रही हैं।

शादीलाल पंडिता का कहना है कि 32 साल से कश्मीरी पंडित परेशान हैं, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। घाटी वापसी की कोई योजना नहीं बन रही। यह सब इसलिए हो रहा है, क्योंकि हमारी बात सुनने वाला ही कोई नहीं है। जब तक कश्मीरी पंडितों की विधानसभा में गूंज नहीं बनेगी, कश्मीरी पंडितों की घाटी वापसी नहीं हो पाएगी। इसलिए ही हम विधानसभा सीटों पर आरक्षण मांग रहे हैं।

वहीं, पनुन कश्मीर के प्रधान विरेंद्र रैना ने कहा कि परिसीमन हो रहा है और इससे कश्मीरी पंडितों के साथ कुछ अच्छा ही होगा। हमें पूरी उम्मीद है कि कुछ सीटें कश्मीरी पंडितों के हिस्से में आएंगी। अब कश्मीरी पंडित समाज की आवाज अगर बुलंद करनी है तो विधानसभा में हमारे प्रतिनिधि तो होने ही चाहिए। 


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