Jammu: कोरोना लॉकडाउन ने वरिष्ठ साहित्यकारों की सोशल मीडिया से नजदीकी बढ़ाई
डोगरी संस्था के अध्यक्ष प्रो. ललित मगोत्रा ने कहा है कि यह लंबे समय से महसूस किया जा रहा था कि किसी भी साहित्यकार को सोशल मीडिया से कदम ताल करना होगा।
जम्मू, अशोक शर्मा। बदलते युग में तकनीक की घुसपैठ के कारण बुजुर्ग साहित्यकार अपने आप को आज के युग के पाठकों से कटा हुआ महसूस करने लगे थे। उन्हें लगने लगा था कि वह सोशल मीडिया पर अपनी कृतियां पहुंचाने में असक्षम हैं। जबकि अधिकतर युवा अब फेसबुक, वाट्सएप तथा इंटरनेट पर अपना समय गुजारना पसंद करते हैं। किताबों के प्रति पाठकों का मोह भंग होता जा रहा है। उनकी किताबें अब केवल ड्रांइग रूम में सजावट का सामान बन कर रह गई हैं। वह चाहते थे कि उनकी रचनाएं भी युवाओं तक पहुंचे अपने दूसरे साथियों तक पहुंचे। लेकिन कम्प्यूटर की जानकारी के अभाव के चलते वह सोशल मीडिया पर अपनी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। चाहकर भी अधिकतर बुजुर्ग साहित्यकार कम्प्यूटर या मोबाइल पर उस तरह काम नहीं कर पा रहे थे कि वे भी दौड़-धूप वाले साहित्य का हिस्सा बन सकें।
लॉकडाउन के चलते जबकि साहित्यिक गोष्ठियां, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सेमीनार होना बंद हो गए तो व्यस्त रहने वाले अधिकतर साहित्यकारों ने भी सोशल मीडिया में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने योग्य कम्प्यूटर, मोबाइल सीख ही लिया। आज यह साहित्यकार वेबिनार और वेब साहित्यिक गोष्ठियों के अलावा फेसबुक और दूसरी डिजिटल तकनीक का प्रयोग करने लगे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार आर्ष ओम दलमोत्रा ने कहा कि बुजुर्ग साहित्यकार जिन्हें नेट का ज्ञान नहीं है। उनमें अकेलेपन की भावन घर कर गई है। वहीं जिन लोगों ने अपने अपने आप को नेट के साथ अपडेट कर लिया हुआ है। अपनी रचनाएं दूसरों तक पहुंचाने में सफल हैं। देश दुनिया में कहा क्या लिखा जला रहा। नेट के माध्यम से उन्हें पल-पल की खबर मिलती रहती है।
वरिष्ठ साहित्यकार केके शाकिर ने कहा कि आज के युग में कम्प्यूटर, मोबाइल का पूर्ण ज्ञान न होना बहुत बड़ा अभिशाप है। मेरे लिए मोबाइल पर अपनी कोई रचना चढ़ाना अभी भी मुश्किल काम है लेकिन अब फेसबुक, वाट्सएप और सोशल मीडिया पर कौन क्या कर रहा है। उसे पढ़ लेता हूं। उसे लाइक, अनलाइक कर रहा हूं। कुछ पता न चले तो घर के छोटे बच्चों से सीखने की भी कोशिश करता हूं।
डोगरी संस्था के अध्यक्ष प्रो. ललित मगोत्रा ने कहा है कि यह लंबे समय से महसूस किया जा रहा था कि किसी भी साहित्यकार को सोशल मीडिया से कदम ताल करना होगा। अक्सर गोष्ठियों में भी इस बात पर चर्चा होती थी कि लेखक लोग सोशल मीडिया का सहारा लें लेकिन अक्सर लोग समय का अभाव या सीखने असक्षमता जाहिर करते थे। अब जब से लॉकडान हुआ है। तब से बहुत से ऐसे साहित्यकारों को भी सोशल मीडिया पर सक्रिय भूमिका निभाते देखा जा रहा है। जो डिजिटल से दूरी बनाए हुए थे।
वरिष्ठ साहित्यकार डा. अशोक कुमार ने कहा कि नि:संदेह किताबों को लेकर यह हताशा का माहौल हमारे पिछड़ जाने का संकेत है। किताबों से दिनोंदिन बढ़ती दूरी हमें नैतिक पतन, भौतिकवाद एवं आत्ममुग्ध आधुनिकता से ग्रस्त कर रही है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं साहित्यिक जैसे तमाम क्षेत्रों का ज्ञान हमें किताबों से ही मिलता है। लेकिन लोग जिस तेजी से सोशल मीडिया की ओर शिफ्ट हुए हैं, उसे देखते हुए हर साहित्यकार के लिए कम्प्यूटर की जानकारी समय की जरूरत बनती जा रही है। इस लॉकडाउन में बहुत से बुजुर्ग साहित्यकार सोशल मीडिया पर सक्रिय होते दिखे हैं। इसे लॉकडाउन के दौरान साहित्यकारों के लिए उपलब्धि ही कहा जा सकता है।