LAC: पूर्वी लद्दाख में जवानों को सेहतमंद रखेगा जौ का सत्तू और याक के दूध से बना पनीर
LAC युद्ध में लड़ने वाले जवानों के लिए जौ का सत्तू सदियों से सुपर फूड रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान भी लद्दाख के लोगों ने चोटियों पर लड़ रहे लद्दाख स्काउट्स के जवानों तक सत्तू व खाने का अन्य सामान भेजा था।
जम्मू, विवेक सिंह। LAC: पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सैनिकों को धूल चटाने के लिए लद्दाख का हर व्यक्ति भारतीय सेना से कंधा मिलाए खड़ा है। यहां के ग्रामीण चोटियों पर तैनात जवानों के लिए खाने-पीने की पौष्टिक चीजें पहुंचा रहे हैं। इसमें जौ का सत्तू प्रमुखता से शामिल है। इस सत्तू के साथ लद्दाखी लोग घर में बनाए बिस्किट, सूखी सब्जियां, सूखी मटर और याक के दूध का पनीर भी भेज रहे हैं। यह सामान कई दिनों तक खराब नहीं होता है। जवानों तक इसे पहुंचाने के लिए महिलाएं भी कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। सर्दी में पूरे लद्दाख में जनजीवन लगभग ठहर जाता है। इस बर्फीले रेगिस्तान में तापमान माइनस चालीस डिग्री नीचे तक चला जाता है।
चारों ओर सिर्फ बर्फ नजर आती है। सड़क मार्ग बंद हो जाते हैं। इसलिए लद्दाखी लोग अभी से दुर्गम इलाकों में तैनात लद्दाख स्काउट्स समेत अन्य जवानों तक सत्तू और खाने-पीने का अन्य सामान पहुंचा रहे हैं। युद्ध में लड़ने वाले जवानों के लिए जौ का सत्तू सदियों से सुपर फूड रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान भी लद्दाख के लोगों ने चोटियों पर लड़ रहे लद्दाख स्काउट्स के जवानों तक सत्तू व खाने का अन्य सामान भेजा था। अब फिर से पूर्वी लेह में एलएसी से सटे माठो और स्पितुक गांव के लोग उसी जज्बे और जुनून के साथ फौजियों के लिए यह रसद भेज रहे हैं। इन गांवों के पुरुष और महिलाओं के समूह द्वारा नियमित भेजे जाने वाले खाने के सामान में जौ से बने सत्तू की बोरियां होना आम है। ग्रामीण अपने घरों से सत्तू इकट्ठा करते हैं और इसे सेना की मदद से ऊपरी हिस्सों तक पहुंचा रहे हैं। बेहद पौष्टिक जौ का सत्तू जवानों को कड़ाके की ठंड में स्फूर्ति से भरा रखेगा।
कारगिल युद्ध में भी सेना के साथ थीं आंगमों
पूर्वी लद्दाख के स्पितुक गांव की महिलाओं का जज्बा भी कम नहीं है। इस गांव में चार सौ लोग रहते हैं। पूरा गांव सेना के जवानों को अपना परिवार मानता है। गांव की महिला आंगमों कहती है कि सैनिकों के लिए काम करना उन्हें सुकून देता है। वह अन्य महिलाओं के साथ जरूरी सामान को प्रतिदिन सैनिकों तक पहुंचाती हैं। आंगमों ने कारगिल युद्ध में भी पाकिस्तान को धूल चटाने वाले भारतीय सेना के बहादुर सिपाहियों के लिए सामान पहुंचाया था। उनका कहना है कि सेना की मदद करना हर भारतीय का फर्ज है।
माठो गांव से भी जाती हैं सूखी सब्जियां
चुशुल क्षेत्र के माठो गांव के लोगों का भी जज्बा कमाल का है। तकरीबन तीन सौ घरों वाले इस गांव की आबादी करीब 1200 है। यहां के ग्रामीण भी जवानों के लिए सूखी सब्जियों के साथ जौ का सत्तू भेज रहे हैं। स्थानीय ग्रामीण स्टेंजिन का कहना है कि हमारे गांव के काफी युवा चोटियों पर जमे हुए हैं। सैनिक हमारी रक्षा के लिए ही कड़ाके की ठंड में बैठे हैं, हम उन्हें हर संभव सहयोग देंगे। जरूरत पड़ी तो उनसे कंधा मिलाकर दुश्मन से लड़ेंगे भी।
याक के दूध के मक्खन की चाय में मिलाकर खाते हैं सत्तू
लद्दाख के लोग पूरे साल याक के दूध से बने मक्खन से बनी चाय में सत्तू मिलाकर खाते हैं। मक्खन से बनी चाय में नमक व सत्तू मिलाकर इसे खीर की तरह गाढ़ा किया जाता है। इस तरह तैयार सत्तू ताकत देने वाला सुपर फूड बन जाता है। लद्दाखी में इसे पावा कहते हैं। सत्तू को सूप व पानी में मिलाकर भी खाया जाता है। तिब्बत में सत्तू से बनी खीर को सांपा कहा जाता है। सत्तू की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है। ऐसे में इसे लंबे समय तक घर में रखा जाता है। वहीं, सुखाया गया याक के दूध का पनीर भी लंबे समय तक रखा जा सकता है। इसी कड़ाके सर्दी में भी कभी भी बनाया जाता है। सुखाई गई पालक व मटर जवानों में प्रोटीन व विटामिनों की जरूरत को पूरा करते हैं।
सैनिक सदियों से सत्तू का करते रहे हैं इस्तेमाल
शरीर को स्फूर्ति और ताकत देना वाला यह सत्तू सदियों से सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है। छत्रपति शिवाजी की सेना मुगलों से युद्ध के दौरान अपने सैनिकों को सत्तू देती थी। सैनिक सत्तू अपने पास रखते थे। भूख लगने पर इसे खाते थे। इससे उनमें युद्ध लडऩे की शक्ति का संचार होता था। तिब्बत के बौद्ध भिक्षु लंबी यात्रों के दौरान सत्तू लेकर साथ चलते थे। इसका इस्तेमाल थकावट दूर करने के लिए लद्दाख के खिलाड़ी भी करते हैं। सत्तू में प्रोटीन, मैग्नीशियम व आयरन भरपूर होता है। इसे विश्व का सबसे जल्द तैयार होने वाला ताकतवर खाना माना जाता है।