मानसिक मंदता को मात देकर संवारा जा रहा जीवन
मानसिक मंदता के शिकार बच्चों की अठखेलियां, शरारतें और मजबूरियां इस केंद्र में देखने को मिलती हैं। स्नेह और निष्ठा के मंत्र से बच्चों के बदलते रंग इस केंद्र को प्रसिद्धि दिला रहे हैं।
जम्मू, अंचल सिंह : शहर के बाहरी क्षेत्र मंडाल फ्लाएं में सेंट जॉन्स पुनर्वास केंद्र मानसिक रूप से मंद बच्चों का जीवन संवार रहा है। यहां मानसिक मंदता से पीड़ित बच्चों को पढ़ाने, लिखाने के साथ उनको बीमारियों से उभारने के प्रयास किए जा रहे हैं। बहुत से बच्चे यहां आकर सामान्य जीवन की ओर बढ़े हैं। मानसिक मंदता के शिकार बच्चों की अठखेलियां, शरारतें और मजबूरियां इस केंद्र में देखने को मिलती हैं। स्नेह और निष्ठा के मंत्र से बच्चों के बदलते रंग इस केंद्र को प्रसिद्धि दिला रहे हैं।
शहर ही नहीं जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों में भी मानसिक मंदता से जुड़े लोग इस केंद्र बारे बातें करते हैं। शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर मंडाल में स्थित सेंट जॉन्स पुनर्वास केंद्र को वर्ष 2008 में बनाया गया। वर्ष 1997-98 में सेंट जॉन्स स्कूल के खुलने के बाद प्रबंधन ने जब इलाके में ऐसे बच्चों की संख्या को देखा तो इस केंद्र की स्थापना की। डे-बोर्डिंग इस सेंटर में 35 बच्चे पंजीकृत हैं। सतवारी, रायपुर, मंडाल, फ्लाएं, मनवाल, सौहांजना समेत आसपास के दर्जन से ज्यादा गांवों से मानसिक रूप से बीमार बच्चे यहां आते हैं। इन बच्चों को घरों से लाया और छोड़ा जाता है। फादर शैजू थॉमस सेंटर और यहां स्थित चर्च के प्रभारी हैं। यहां दो सिस्टर, दो फिजियोथ्रेपिस्ट समेत आठ लोगों का स्टाफ है।
इस सेंटर में विभिन्न मानसिक बीमारियों से ग्रस्त बच्चे हैं। कोई बच्चा बोल नहीं पाता तो कोई सुन नहीं सकता। किसी के हाथ-पांव काम नहीं करते तो कोई अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। विभिन्न तरह की बीमारियों के चलते यह बच्चे गरीब परिवारों से हैं। इस सेंटर में बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी सेहत का भी ध्यान रखा जाता है। बच्चों को स्पीक एंड फिजियोथिरेपी देते हुए सामान्य जीवन जीने की ओर बढ़ाया जा रहा है। सेंटर में क्लॉस रूम, फिजियोथिरेपी सेंटर, ग्राउंड के अलावा किचन के अलावा इन बच्चों की जरूरत के सभी इंतजाम हैं। अलग-अलग बच्चे को जरूरत के हिसाब से थिरेपी दी जाती है। इन बच्चों के मां-बाप बहुत खुश हैं कि वे इन बच्चों का इलाज करवाते हार गए तो इस सेंटर ने उन्हें सहारा दिया। उनके बच्चे यहां आम बच्चों की तरह स्कूल आते हैं। सीखते हैं। एन्जॉय करते हैं। बच्चों को यहां गाने-बजाने के अलावा विभिन्न खेल में भी प्रतिभागी बनाया जाता है। इससे बच्चों में बदलाव आता है। बच्चे यहां आकर आने वालों का स्वागत अपने ही अंदाज में करते नजर आते हैं। प्रबंधन इन बच्चों को ठीक करते हुए इनके लिए अच्छे भविष्य की कामना करता है। ऐसे सभी बच्चों को यहां तराशने के प्रयास जारी हैं।
निदेशक फादर शैजू चॉको का कहना है कि सेंटर में बच्चों को ठीक करने के प्रयास किए जाते हैं। दवाइयां देने से लेकर फिजियोथिरेपी, स्पीक थ्रेपी का प्रयास तो करते ही हैं, ऐसा माहौल देते हैं कि बच्चे यहां आकर खुश हों। उनके यहां एक वक्त खाना भी खिलाया जाता है। अभिभावक सुभाष, वीरेंद्र ने कहा कि हमारे लिए इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा कि हमें एक ऐसा सेंटर मिला जहां बच्चे को सारी सुविधाएं मिल रही हैं। हमारे बच्चों का इलाज करवाते हम थक गए। इस सेंटर में इलाज के साथ पढ़ाई, बच्चों को गाने-बजाने की कला, व्यायाम सिखाया जाता है। काफी अंतर बच्चों में दिखता है। बच्चे घर से ज्यादा इस सेंटर में खुश रहते हैं। यह बच्चे तीन दिसंबर को दिव्यांगता दिवस में भाग लेने की भी तैयारी कर रहे हैं।
'मानसिक मंदता के बच्चों का जीवन आम लोगों से मेल नहीं खाता। वह अपनी ही दुनिया में रहते हैं। सेंटर में हम उन्हें पढ़ाने-लिखाने के साथ अन्य गतिविधियों में संलिप्त करते हैं। देखादेखी बच्चे सीखते हैं। साथ-साथ इलाज चलता है तो धीरे-धीरे में इन बदलाव आता है। कुछ महीनों में ही बच्चों ने काफी कुछ सीखा। ' -सिस्टर शुभा मारिया
'इन बच्चों में रहकर सेवा करने का मजा ही कुछ और है। अच्छा लगता है जब इनके साथ बच्चे बनकर इनकी दिक्कतें समझते हैं। फिर उन्हें हल करते हैं। विभिन्न माध्यमों से बच्चों का इलाज किया जाता है। बच्चे सामान्य हो, हमेशा ऐसे प्रयास रहते हैं। हम इन्हें खेलना, कूदना सिखाते हैं। पढ़ने-लिखने का ज्ञान देते हैं।' -सिस्टर एन्नेट
'मानसिक मंदता विभिन्न प्रकार की होती है। कुछ बच्चे बोल, सुन नहीं पाते। कुछ के हाथ-पांव काम नहीं करते। ऐसे बच्चों को स्पीक और फिजियोथ्रेरी से ठीक किया जाता है। बच्चों को मा, पा जैसे अक्षर सिखाते हुए बोलना सिखाया जाता है। उनके अंगों को ठीक करने के लिए व्यायाम करवाए जाते हैं। हमने यहां यंत्र भी लगा रखे हैं। बच्चों में बदलाव आया है। मां-बाप खुश हैं।' -डॉ. शुविंद्र, फिजियोथ्रेपिस्ट
'मानसिक मंदता के बच्चे समाज से अलग ही होते हैं। इनकी अपनी ही दुनिया रहती है। इनमें घुल-मिल जाने के बाद इनकी स्थिति समझ आती है। ऐसी ही छोटी-छोटी चीजों को ध्यान में रखते हुए हम इन्हें ठीक करने का काम करते हैं। इन्हें सेंटर में सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं। लोगों से कोई पैसा नहीं लिया जाता है। फिलहाल 18 साल से कम उम्र के बच्चे ही रखते हैं।' -फादर शैजू थॉमस