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दुश्मन को मिटाने के लिए आज भी तैयार हैं भारतीय सेना के घायल शेर

युद्ध के मैदान और आतंकरोधी अभियान में मिले जख्मों के साथ चुनौतियों का सामना कर रहे सेना के घायल शेर आज भी दुश्मन को मिटाने के लिए बुलंद हौसला रखते हैं।

By Edited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 02:33 AM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 11:30 AM (IST)
दुश्मन को मिटाने के लिए आज भी तैयार हैं भारतीय सेना के घायल शेर
दुश्मन को मिटाने के लिए आज भी तैयार हैं भारतीय सेना के घायल शेर

जम्मू, विवेक सिंह। युद्ध के मैदान और आतंकरोधी अभियान में मिले जख्मों के साथ चुनौतियों का सामना कर रहे सेना के घायल शेर आज भी दुश्मन को मिटाने के लिए बुलंद हौसला रखते हैं। पठानकोट के मूमन कैंट में वीर सैनिकों के सम्मान में मंगलवार को संपन्न हुए दो दिवसीय कार्यक्रम में यह संदेश में उन जांबाजों ने दिए, जिनकी बहादुरी के किस्से आज भी ताजा है। कार्यक्रम में जुटे करीब पांच सौ वीर सैनिकों, अधिकारियों व पूर्व सैनिकों में से अधिकतर जम्मू कश्मीर में घायल हुए थे। सेना वर्ष 2018 को अक्षम सैनिक के वर्ष के रूप में मना रही है। इन वीरों का बुलंद हौसला देखकर परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह भी तारीफ किए बिना नहीं रह पाए।

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कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए अधिकतर सैनिक खुद में इतिहास संजोए हैं। उन्होंने जान की बाजी लगाकर दुश्मन को नाकाम बनाया। इस दौरान अपने कई साथी भी खो दिए। कार्यक्रम से प्रभावित हुए कैप्टन बाना सिंह ने बताया कि मैं देश की खातिर गोलियां खा चुके इन बहादुरों की हिम्मत देखकर दंग रह गया हूं। भले ही उन्हें गंभीर चोटें आई हों, शरीर कमजोर हो गया हो, लेकिन दुश्मन को उसके अंजाम तक पहुंचाने का जज्बा आज भी कूट-कूट कर भरा है। उन्होंने बताया कि मैं कई ऐसे अधिकारियों व जवानों से मिला, जो आज भी दुश्मन से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं।

कैप्टन बाना सिंह ने राज्य के करीब 60 वीरों के साथ इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। छह महीने की लंबी लड़ाई लड़ने के बाद मौत को मात देने वाले सेना के मेजर अमरदीप सिंह के लिए दुश्मन को मात देना बाएं हाथ का खेल है। हिमाचल प्रदेश का यह बहादुर गत वर्ष फरवरी में कश्मीर के शोपियां में आतंकवादियों के हमले को नाकाम बनाते हुए घायल हुआ था। इस हमले में तीन सैनिक शहीद व उनके समेत दो अधिकारी घायल हुए थे। इस दौरान एक महिला की भी मौत हुई थी।

सैनिक की आत्मशक्ति उसकी असली ताकत

दिल्ली के आरआर अस्पताल में उपचाराधीन मेजर अमरदीप सेना की वर्दी में व्हील चेयर पर कार्यक्रम में मौजूद थे। उनका कहना है कि एक सैनिक की आत्मशक्ति ही उसकी असली ताकत है। यह संदेश देती है कभी मत हारो। उन्हें सिर में गोली लगी थी और एयरलिफ्ट कर दिल्ली ले जाने के बाद छह महीने तक वह आईसीयू में रहे। मेजर अमरदीप कार्यक्रम में अपनी पत्नी मेजर शीला के साथ आए थे। दोनों सेना के शूटर भी हैं। कार्यक्रम में मेजर अमरदीप की तरह कई ऐसे बहादुर थे, जिन्होंने मौत को भी मात दे दी।


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