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Jammu Kashmir: सात दशक बाद हुआ असली आजादी का अहसास

बच्चे बुजुर्गो सबकी आंखों में अब उम्मीदों की नई चमक है। हो भी क्यों न आज उन्हें उन्हें स्वतंत्र भारत के अधिकार पहली बार मिले हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 09:52 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 09:52 AM (IST)
Jammu Kashmir: सात दशक बाद हुआ असली आजादी का अहसास
Jammu Kashmir: सात दशक बाद हुआ असली आजादी का अहसास

जम्मू, जागरण संवाददाता। मिश्रीवाला (नई बस्ती) में हरबंस लाल के परिवार में आज उत्सव का सा माहौल है। परिवार को सात दशक बाद असली आजादी का अहसास हुआ है। बच्चे, बुजुर्गो सबकी आंखों में अब उम्मीदों की नई चमक है। हो भी क्यों न, आज उन्हें उन्हें स्वतंत्र भारत के अधिकार पहली बार मिले हैं।

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दोयम दर्जे के नागरिकता से परिवार को आजादी जो मिल चुकी है। इनकी खुशी देख हरबंस की खुशी कई गुना बढ़ जाती है। वह कहते हैं कि कल तक हम सब पश्चिमी पाकिस्तानी रिफ्यूजी कहलाते थे, लेकिन आज हम देश के नागरिक हैं और जम्मू कश्मीर के डोमिसाइल के हकदार।

62 साल के हरबंस का कहना है कि इन वर्षो में नागरिकता नहीं होने का बड़ा नुकसान परिवार को उठाना पड़ा। दो बेटे अजय व दीप कुमार सरकारी नौकरी की उम्मीद करते-करते अब आवेदन की उम्र पार कर चुके। उनकी शादी हो गई व बेटे के बच्चे अब स्कूलों में पढ़ रहे हैं, लेकिन तीसरे बेटे संजीव के सपनों को पंख लग चुके हैं। स्नातक के बाद संजीव अब उच्च शिक्षा पाना चाहता है, ताकि बेहतर रोजगार हासिल कर सके।

हरबंस लाल का कहना है कि 1947 में देश विभाजन के समय हमारे बुजुर्ग पश्चिमी पाकिस्तान से यहां आए थे। जम्मू-कश्मीर की सरकारों की अनदेखी की सजा हमारे पूरे समाज को भुगतनी पड़ी और उम्रभर शरणार्थी के दाग के साथ जीते रहे। अब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म करके हम रिफ्यूजियों को जिदंगी का सबसे बड़ा तोहफा दिया है। अब हमारे बच्चे खुशियों से महरूम नहीं रहेंगे।

काश पिता जी देख पाते यह पल

मढ़ ब्लॉक के सीमांत पंजौड़ गांव के रहने वाले 64 साल के सुखदेव राज को आज अपने पिता चूड़ू राम की याद आ रही है जो उत्पीड़न से आजादी की उम्मीद ताकते-ताकते इस दुनिया से विदा ले चुके। वे कहते थे कि देर-सवेर ही सही, उन्हें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल कर ही रहेगी।

सुखदेव राज को मलाल है कि उनके पिता के जीते जी यह सपना साकार नहीं हो पाया, लेकिन आज उनकी तरह लाखों परिवारों को इंसाफ मिला है। देश के विभाजन के समय 1947 में वह खुद, हरबंस की माता पुण्या देवी, दादा कृपा राम को पश्चिमी पाकिस्तान के खैरी गांव (सियालकोट) से जम्मू आना पड़ा था। यहां सरकार से न कोई मदद मिली और न ही जमीन का टुकड़ा मिला। महज एक चद्दर लेकर यहां आए और जिंदगी गरीबी में ही गुजार दी। अब 70 साल बाद उनको असली आजादी का अहसास हुआ।


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