Kashmir: राजवार टाइगर्स ने लोलाब-राजवार से खदेड़े आतंकी, ये इलाके कभी माने जाते थे आतंकियों की यूनिवर्सिटी
कश्मीर के अलगाववाद के इतिहास को पढ़ा जाए तो पता चलेगा कि मकबूल बट भी कुपवाड़ा का रहने वाला था। इस जिले से कई लड़कें आतंकी बने हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज। हंदवाड़ा में कर्नल समेत पांच सुरक्षाकर्मियों की शहादत ने फिर से वर्ष 1990 की याद दिला दी है। कश्मीर में कुपवाड़ा का यह इलाका आतंकियों का उस समय एक तरह से मुख्यालय था। कुपवाड़ा को आतंकवाद का द्वार कहा जाता था। लोलाब-राजवार को आतंकियों की विश्वविद्यालय माना जाता था। क्षेत्र को आतंकियों और अलगाववादियों के समर्थक छोटा पाकिस्तान पुकारा जाता था। यह इलाका आतंकियों की सुरक्षित सेंचुरी था जिसे राजवार टाइगर्स ने मुक्त कराने में अहम भूमिका निभाई। सेना की 21 आरआर को राजवार टाइगर्स कहते हैं।
आतंकरोधी अभियानों में उल्लेखनीय भूमिका निभा चुके सेवानिवृत्त आइजी (आइपीएस) अशकूर वानी के अनुसार, आतंकी अपनी रेडियो बातचीत में राजवार इलाके को छोटा पाकिस्तान और लोलाब को विश्वविद्यालय के नाम से संबोधित करते थे। कुपवाड़ा का अधिकांश हिस्सा एलओसी से सटा हुआ है। गुलाम कश्मीर से घुसपैठ करने वाले अधिकांश इसी जिले से कश्मीर में दाखिल होते थे। अगर कश्मीर के अलगाववाद के इतिहास को पढ़ा जाए तो पता चलेगा कि मकबूल बट भी कुपवाड़ा का रहने वाला था। इस जिले से कई लड़कें आतंकी बने हैं।
विदेशी आतंकी इसी जिले में ठिकाना बनाना पसंद करते थे। पूर्व पुलिस अधिकारी हरदित्त सिंह ने कहा कि 1993-94 के दौरान पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले आतंकी कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा, राजवार इलाके में ही ज्यादा रहते थे। इन इलाकों में कई जगह उस समय आतंकियों ने बंकर तैयार किए थे। तालिबान स्टाइल के आतंकी होते थे, जो कंधों पर एसाल्ट राइफलें और एलएमजी लेकर घूमते थे। जच्लडारा सड़क पर गाड़ियां रोक तलाशी लेते थे। इस बीच, सेना की 21 आरआर ने हंदवाड़ा-जच्लडारा सड़क पर स्थित बागातपोरा में मुख्यालय स्थापित किया। जवानों व अधिकारियों ने पुलिस के तंत्र के साथ मिलकर आतंकियों को खदेड़ना शुरू किया। इस काम में स्थानीय लोगों का पूरा सहयोग रहा। आतंकियों का खुलेआम घूमना बंद हो गया। उनके बंकर जो राजवार-हंदवाड़ा और लोलाब को अफगानिस्तान की टोरा-बोरा पहाड़ियों की शक्ल देते थे, गायब हो गए।
300 से ज्यादा आतंकी मारेः राजवार टाइगर्स ने 300 से ज्यादा आतंकियों का सफाया किया है, लेकिन डेढ़ दर्जन जवानों व अधिकारियों को भी गंवाया है। 31 अगस्त 2000 को सेना की 7 सेक्टर आरआर के ब्रिगेडियर शेरगिल और 21 आरआर के सीओ राजेंद्र चौहान छंजमुला से चंद किलोमीटर की दूरी पर आतंकियों के हमले में शहीद हुए थे। उनका रेडियो ऑपरेटर भी मारा गया था। आतंकियों ने धमाके में उनकी जिप्सी को उड़ाने के बाद चारों तरफ से उन पर गोलियों की बौछार की थी। छंजमुला से सटे एक गांव के रहने वाले शब्बीर अहमद नामक एक पूर्व पंचायत प्रतिनिधि ने कहा कि लोगों में फिर 1990 के दशक की वापसी का डर बैठ गया है। 8-10 साल के दौरान यहां कई बार मुठभेड़ हुई है। जो बीते 24 घंटों में हुआ है,वह खतरनाक है।
घबराने की जरूरत नहींः एसएसपी इम्तियाज हुसैन मीर ने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। अब कहीं छोटा पाकिस्तान या आतंकियों की यूनिवर्सिटी नहीं बनेगी। मुट्ठी भर आतंकी हंदवाड़ा और उसके साथ सटे इलाकों में है। पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियां उनके पीछे लगी हैं।
21आरआर के नाम से कांपते हैं आतंकी: सेना की 21 आरआर बटालियन जिसके लगभग सभी अधिकारी और जवान सेना की गार्ड्स ब्रिगेड से आते हैं, के नाम से सिर्फ कश्मीर में ही नहीं गुलाम कश्मीर बैठे आतंकी सरगना भी कांपते हैं। यह वह बटालियन है,जिसने बीते दो दशक में 300 से अधिक आतंकियों को मार गिराया है। कर्नल आशुतोष शर्मा इसके दूसरे कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) थे जो आतंकी हमले में शहीद हुए हैं।
2020 में सेना के लिए सबसे बड़ा नु़कसान: कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा ले रहे सुरक्षाबलों के लिए कर्नल आशुतोष, मेजर अनुज और सब इंसपेक्टर सगीर पठान समेत पांच सुरक्षाकर्मियों का एक साथ शहीद होना बड़ा नुकसान माना जा रहा है। इस साल सुरक्षाबल अलग अलग अभियानों में 62 आतंकियों को मार गिरा चुके हैं। इनमें करीब 32आतंकी पहली अप्रैल से सुबह तक मारे गए हैं। इस दौरान एक दर्जन सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं। मेजर अनुज के पिता मेजर अनुज के पिता ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) चंद्रकात सूद ने कहा कि उसने बहुत बड़ा बलिदान दिया है। यह उसकी ड्यूटी का ही हिस्सा था।
पांच साल बाद कर्नल रैंक के अधिकारी की पहली शहादतः जम्मू कश्मीर में बीते पांच साल में किसी मुठभेड़ में कर्नल के शहीद होने की पहली घटना है। जबकि कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों का नेतृत्व कर रही 21 राष्ट्रीय राइफल ने 20 साल बाद कर्नल रैंक का अधिकारी खोया है। दक्षिण कश्मीर के त्रल में 27 जनवरी 2015 को हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर आबिद खान समेत दो आतंकियों को मार गिराने के अभियान में कर्नल एमएन राय शहीद हुए थे। इसके बाद 17 नवंबर को मनिगाह कुपवाड़ा में एक आतंकरोधी अभियान में कर्नल संतोष महादिक ने शहादत दी थी। 21 अगस्त 2000 को सेना की 21 राष्ट्रीय राइफल के तत्कालीन सीओ कर्नल राजेंद्र चौहान व ब्रिगेडियर बीएस शेरगिल जाचलदारा गांव में आइईडी धमाके में शहीद हो गए थे। इसके करीब 20 साल बाद कर्नल आशुतोष शर्मा रविवार सुबह शहीद हुए। कर्नल चौहान और ब्रिगेडियर बीएस शेर गिल गश्त पर थे। आतंकवादियों ने जाचलदारा गांव के पास आईईडी में रिमोट कंट्रोल से विस्फोट किया था, जिससे उनके वाहन के परखच्चे उड़ गये थे। दोनों अधिकारी मौके पर ही शहीद हो गए जबकि सेना के पांच अन्य जवान घायल हुए थे।