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जम्मू की जेलों में संस्कार सीख समाज में सिर उठाकर जी रहे कैदी

वर्ष 2013 में कोट भलवाल में सुधार केंद्र की शुरुआत हुई। यह ऐसी जेल है जहां खूंखार आतंकवादी कैद है। इस जेल में कैदियों को सुधारने का बीड़ा उठाते हुए सहगल ने यहां पर भी विशेष प्रशिक्षण शिविर लगाए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 10:52 AM (IST)Updated: Mon, 21 Jan 2019 10:52 AM (IST)
जम्मू की जेलों में संस्कार सीख समाज में सिर उठाकर जी रहे कैदी
जम्मू की जेलों में संस्कार सीख समाज में सिर उठाकर जी रहे कैदी

जम्मू, जागरण संवाददाता। समाज का एक ऐसा वर्ग जिसे कोई अपनाने को तैयार नहीं होता। सामाजिक बहिष्कार से ग्रस्त इस वर्ग में जीने की चाह भी खत्म हो जाती है लेकिन कुछ लोग होते हैं जो ऐसे निराश लोगों में न केवल जीने की चाह पैदा करते हैं, बल्कि उन्हें समाज में सिर उठाकर चलने की राह भी दिखाते है। ऐसा ही कुछ जम्मू की जेलर के नाम से प्रसिद्ध रजनी सहगल भी कर रही हैं। जेलों को सुधार केंद्र बनाने के नाम पर औपचारिकताएं तो बहुत होती हैं लेकिन जेलर रजनी सहगल ने जेल में बंद कैदियों को एक अच्छा इंसान बनाने को मानो जिंदगी का लक्ष्य बना लिया।

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रजनी सहगल करीब डेढ़ दशक पहले जब अंबफला स्थित जिला जेल की सुपरिंटेंडेंट बनीं तो वहां पर कैदियों को सबसे पहले मोमबत्ती बनाने का काम सिखाया। इसके लिए बाकायदा जेल में प्रशिक्षण शिविर आयोजित हुए। जेल कर्मियों ने कैदियों के साथ मिलकर मोमबत्ती बनाना सीखा। जेल में इसके लिए बाकायदा मशीनें लगाकर मोमबत्ती का काम शुरू किया गया। इतना ही नहीं उन्होंने महिला कैदियों को सिलाई-कढ़ाई का काम सिखाया और यहीं से जम्मू में कैदियों के लिए जेल एक सुधार केंद्र के रूप में सामने आई।

वर्ष 2013 में कोट भलवाल में सुधार केंद्र की शुरुआत हुई। यह ऐसी जेल है जहां खूंखार आतंकवादी कैद है। इस जेल में कैदियों को सुधारने का बीड़ा उठाते हुए सहगल ने यहां पर भी विशेष प्रशिक्षण शिविर लगाए। रजनी सहगल को इसके बाद ऊधमपुर जेल सुपरिटेंडेंट नियुक्त किया गया तो उन्होंने वहां पर भी कैदियों को एक अच्छा नागरिक बनाने की मुहिम शुरू कर दी। कई कैदियों ने अपने हुनर का निखार किया। अब रजनी सहगल एक बार फिर से कोट भलवाल जेल की सुपरिंटेंडेंट हैं।

कैदी बना रहे ये सामान : जेल में कैदी इन दिनों मोमबत्ती एवं अगरबत्ती ही नहीं मोबाइल रिपेयरिंग, पेंटिंग, खाद्य प्रसंस्करण, मसाले एवं पापड़ बना रहे हैं। महिला कैदी ब्यूटीशियन के गुर भी यहां सीख रही हैं। इसके अलावा महिला कैदियों को खादी के कपड़े बनाने का काम सिखाया गया है। जेल में पहले यह कार्य केवल कैदियों को व्यस्त रखने के लिए करवाया जाता था लेकिन रजनी सहगल ने इसे व्यावसायिक स्तर पर शुरू करवाया और धीरे-धीरे जेल में बना सामान बाहर बिक्री के लिए पहुंचने लगा। पिछले कई साल से हर दीवाली पर जेल में कैदियों द्वारा तैयार मोमबत्तियों को बिक्री के लिए रखा जाता है।

सुधार बिक्री केंद्र भी खुला : रजनी सहगल ने अंबफला स्थित जम्मू जिला जेल के बाहर एक छोटी सी दुकान से जो शुरुआत की थी वो आज एक शोरूम का रूप ले चुकी है। करीब एक दशक पूर्व अंबफला जेल के कैदियों द्वारा बनाए गए सामान की बिक्री के लिए यह दुकान खोली गई थी। पिछले साल जनवरी में इस छोटी सी दुकान को शोरूम का रूप देते हुए सुधार बिक्री केंद्र का नाम दिया गया। आज इस शोरूम में मोमबत्ती व अगरबत्ती के अलावा बेडशीट, रेडीमेड कपड़े, हथकरघा का सामान, लकड़ी का फर्नीचर, तकिये के कवर व कई अन्य चीजें बिक्री के लिए रखी गई हैं और यह सारी सामग्री जम्मू की जेलों में बंद कैदियों द्वारा तैयार की गई है। 


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