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राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजे जम्मू-कश्मीर पर डालेंगे असर

विधानसभा चुनाव सभी पार्टियां अकेले ही लड़ेगी और चुनाव के बाद ही गठबंधन बारे सोचा जाएगा। कांग्रेस का ध्यान जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में बराबर रहेगा।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 11:30 AM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 11:30 AM (IST)
राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजे जम्मू-कश्मीर पर डालेंगे असर
राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजे जम्मू-कश्मीर पर डालेंगे असर

जम्मू, सतनाम सिंह। राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत और मध्य प्रदेश में भाजपा को कांटे की टक्कर देने से बने नए राजनीतिक परिदृश्य से जम्मू कश्मीर भी अछूता नहीं रहेगा। आगामी विधानसभा चुनाव में भी समीकरण का बदलना तय है। राज्य विधानसभा भंग हो चुकी है और इस समय जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू है। तीनों राज्यों में बेहतर प्रदर्शन से कांग्रेस के हौसले बुलंद हुए है। कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जो पीडीपी के साथ साल 2002 में गठबंधन सरकार बना चुकी है और नेकां के साथ साल 2008 में छह साल तक गठबंधन सरकार बना कर काम कर चुकी है। यह स्प्ष्ट है कि विधानसभा चुनाव सभी पार्टियां अकेले ही लड़ेगी और चुनाव के बाद ही गठबंधन बारे सोचा जाएगा। कांग्रेस का ध्यान जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में बराबर रहेगा।

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नेशनल कांफ्रेंस भी यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह कश्मीर केंद्रित नहीं बल्कि जम्मू व लद्दाख के लोगों के सहयोग के बिना सरकार नहीं बना सकती। पीडीपी को अपने ही नेताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। नेकां, कांग्रेस और पीडीपी के निशाने पर पहले से भाजपा है और आने वाले दिनों में इन तीनों पार्टियों के हमले तेज होंगे। मोदी सरकार की उपलब्धियों को उजागर करने के लिए सक्रिय हुई भाजपा को भी अपना रूख कड़ा करना होगा। भाजपा को जम्मू के लोगों को यह खुल कर बताना होगा कि उसने पीडीपी के साथ रहते हुए उसने क्या किया और अगले चुनाव के वायदों को कैसे पूरा करेगी। जम्मू संभाग के कांग्रेस नेता अपने आप को अधिक सक्रिय करने के लिए तैयारी कर चुके है और अब उनका उत्साह भी दोगुना हो गया है।

पार्टी के कई असंतुष्ट नेता जो किसी ओर पार्टी में जाने के लिएमन बना रहे थे, वे भी अब अपनी पार्टी में बने रहेंगे। यहीं नहीं अन्य पार्टियों के कुछ असंतुष्ट भी आने वाले दिनों में कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। चुनाव बाद कौन सी पार्टी किस पार्टी से हाथ मिलाती है, इसका पता तो बाद में ही चलेगा क्योंकि 87 विधानसभा सीटों में 44 का जादूई आंकड़ा जुटाना ही चुनौती होगा। बताते चले कि

जम्मू कश्मीर में साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 87 सीटों में से पीडीपी को 28, भाजपा को 25, नेकां को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें हासिल हुई थी। पीपुल्स कांफ्रेंस को 2 व अन्य ने पांच सीटें जीती थी। भाजपा ने सभी सीटें जम्मू संभाग से जीती थी। कांग्रेस ने जम्मू संभाग में 5 सीटें जीती थी। कांग्रेस को सबसे अधिक झटका जम्मू जिले से लगा था। जम्मू जिला में विधानसभा की 11 सीटें है। चुनावी बिगुल बजने से पहले ही सारी राजनीतिक पार्टियां कूद पड़ी है। जम्मू कश्मीर में अकेले अपने दम पर सरकार बनाना हर राजनीतिक पार्टी के लिए बहुत बढ़ी चुनौती है।

नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतार सकती है भाजपा

अगले विधानसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर में भाजपा नए चेहरों को मैदान में उतार सकती है। संभावना जताई जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी पिछले चुनाव के विजयी उम्मीदवारों में पचास प्रतिशत को टिकट न देकर नए चेहरों को सामने ला सकती है। इसका कारण यह भी है कि पार्टी ऐसे उम्मीदवारों का पता साफ करेगी जो लोगों की आकांक्षाओं पर पूरे नहीं उतरे और कार्यकर्ताओं के बीच भी नाराजगी है। पार्टी इस पर मंथन करेगी। व्यापक विचार विमर्श और हाईकमान के साथ सलाह मशवरा होगा। ऐसे उम्मीदवारों को आगे लाया जाए जो अधिक सक्रिय रहे हो, लोगों के बीच जाते रहे हो और पार्टी की मजबूती देने के लिए दिन रात एक किया हो। वहीं कांग्रेस और नेकां भी अपने पुराने उम्मीदवारों के साथ साथ नए चेहरों को मैदान में उतार सकती है।

यह तो अभी शुरूआत है

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान जीए मीर ने कहा कि देश में असहनशीलता की राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने भाजपा को यह संदेश दे दिया है। कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष पार्टी करार देते हुए उन्होंने कहा कि अगर लोगों को बांटने की कोशिशें की गई तो उसका हाल भी भाजपा जैसा होगा। पांच राज्यों के नतीजे तो अभी शुरुआत है और अगले संसदीय चुनाव में लोग भाजपा को नकार देंगे। धर्म के नाम पर लोगों को बांटने और नोटबंदी ही भाजपा के हारने के कारण रहे है। मीर ने कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बढ़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आएगी।

राज्यपाल भी चुनावी नतीजों से सबक लें

नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा कि जम्मू कश्मीर की अलग पहचान के कारण मुद्दे भी अलग पहचान को लेकर ही है जिन्हें हमे बरकरार रखना होगा। देश के लोगों ने मंदिर-मस्जिद राजनीति, धार्मिक असहनशीलता, एतिहासिक शहरों के नाम बदलने की राजनीति को नकार दिया है। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल को पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से सबक लेते हुए राज्य के कानून बदलने के विवाद से दूर रहना चाहिए।  


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