पंजाबी को राजभाषा का दर्जा न देने की गूंज संसद तक पहुंची
राज्य ब्यूरो जम्मू जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को राजभाषा का दर्जा न दिए जाने के मुद्दे की गू
राज्य ब्यूरो, जम्मू : जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को राजभाषा का दर्जा न दिए जाने के मुद्दे की गूंज संसद तक पहुंच गई है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब से लोकसभा के सदस्य मनीष तिवारी ने जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को नजरंदाज करने का मुद्दा उठाया। तिवारी की तरफ से लोकसभा में पंजाबी भाषा का मुद्दा उठाए जाने से सिख संगठनों के आंदोलन को बल मिला है। तिवारी ने लोकसभा में कहा कि भाषा अध्यादेश में पंजाबी को शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने यह तर्क भी दिए कि जम्मू कश्मीर पर 1807 में जब शेर-ए-पंजाब महाराजा रंजीत सिंह ने अधिकार किया था, तबसे जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा बोली जाती है। करीब 200 साल से जम्मू और आसपास के इलाकों में पंजाबी का बोलबाला है। साल 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तो बड़ी संख्या में पंजाबी भाषाई लोग जम्मू कश्मीर आकर बस गए थे, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से अधिसूचित की गई जम्मू कश्मीर की राजभाषाओं में कश्मीरी, डोगरी, उर्दू, हिदी और इंग्लिश को शामिल किया गया, परंतु पंजाबी के साथ भेदभाव किया गया।
इस समय जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। इस मामले को उपराज्यपाल और उनके सलाहकार केके शर्मा के समक्ष भी उठाया जा चुका है। जम्मू कश्मीर गुरुद्वारा प्रबंधक बोर्ड के प्रधान टीएस वजीर का कहना है कि पंजाबी भाषा को जम्मू कश्मीर में इंसाफ हर हाल में मिलना ही चाहिए। इसके लिए हमारा संघर्ष जारी है। ऑल पार्टीज सिख कोआर्डिनेशन कमेटी के चेयरमैन जगमोहन सिंह रैना का कहना है कि पंजाबी भाषा का मुद्दा उठाने वाले हर नेता या कार्यकर्ता का हम स्वागत करते हैं। नेशनल सिख फ्रंट के चेयरमैन वीरेंद्र जीत सिंह ने कहा कि पंजाबी भाषा को भी राजभाषाओं में शामिल करना चाहिए। पंजाबी भाषा बहुत पुरानी है और यह जम्मू कश्मीर में पिछले दो सौ साल से अधिक समय से बोली जा रही है।