Kashmir: गायों के सहारे पुलवामा की युवती ने खुद को कर्ज के दलदल से कैसे उबारा, जानिए पूरी कहानी
शहजादा ने बताया कि बाबा को मेरे भाइयों और बहनों की शादी के लिए 15 लाख रुपये कर्जा लेना पड़ा। तीनों भाई परिवार से अलग रहने लगे। ऐसे में घर की सारी जिम्मेदारी हम दो छोटे बहन-भाई पर आ गई। गरीबी ने हम दोनों की पढ़ाई छुड़वा दी।
श्रीनगर, रजिया नूर: जब अपने ही साथ छोड़ दें तो मायूस न हों, बल्कि और दृढ़ता से कदम बढ़ाएं। यकीनन आपकी राह में मंजिल नजदीक आ खड़ी होगी। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा की 26 वर्षीय शहजादा अख्तर ने। शहजादा के सिर पर न तो पक्की छत थी और न ही ठीक से दो वक्त की रोटी।
घर में सबसे छोटी थी और परिवार कर्ज में डूबा। बड़े भाई-बहनों ने हाथ छोड़ दिया, फिर भी हिम्मत नहीं हारी। केंद्र की नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन (एनआरएलएम) का सहारा मिला। एक गाय खरीदी, जिसके भरोसे परिवार की जिंदगी चल पड़ी। इसके सहारे परिवार को गरीबी और कर्ज के भंवर से निकाला। आज शहजादा की गौशाला में 25 गायें हैं। दूध, दही, पनीर बेचकर वह आज अपने इलाके की सफल महिला उद्यमी बन गई है। उनके परिवार को अब खुशहाल परिवारों में गिना जाता है। आज वह कुछ लोगों को रोजगार भी दे रही हैं।
शहजादा ने बताया कि मेरे बाबा की दूध की दुकान थी। इस बीच, बाबा को मेरे भाइयों और बहनों की शादी के लिए 15 लाख रुपये कर्जा लेना पड़ा। इससे परिवार की आॢथक हालत और ज्यादा खराब हो गई। तीनों भाई परिवार से अलग रहने लगे। ऐसे में घर की सारी जिम्मेदारी हम दो छोटे बहन-भाई पर आ गई। गरीबी ने हम दोनों की पढ़ाई छुड़वा दी। घर में मुश्किल से दो वक्त का खाना पकता था।
इसी बीच, लोगों ने मुझे एनआरएलएम के बारे में बताया। अधिकारियों से मिली तो उन्होंने पूरी योजना के बारे में समझाया। इस सदस्यों का सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर मैंने उस पर काम किया। कुछ समय बाद मुझे मिशन की तरफ रिवालविंग फंड के तौर पर 40,000 रुपये मिले। इससे एक गाय खरीद ली। यह साल 2016 की बात है। इसका दूध बेचने से कुछ पैसे बचाए। इसके बाद पशुपालन विभाग की योजना के तहत कर्ज लेकर दो और गायें खरीदीं। पहले से कर्ज था इसलिए परिवार के लोगों ने और कर्ज लेने पर आपत्ति जताई, लेकिन मैंने हिम्मत जुटाई और कर्ज ले लिया। योजना के तहत कर्ज में छूट भी मिली थी।
...और अब 25 गायें हैं: शहजादा ने बताया कि तब उसके पास तीन गायें हो गई थीं। इनसे इतनी आमदनी तो हो जाती थी कि घर का खर्चा चलाने के अलावा कर्ज का कुछ पैसा चुकाया जाने लगा। धीरे-धीरे सारा कर्ज निपट गया। आज वह 25 गायों को पाल रही है। इनसे प्रतिदिन तीन क्विंटल दूध का उत्पादन होता है। आज उन्होंने पुलवामा के मुख्य बाजार में दुकान तक खरीद ली है। उनकी गोशाला में तीन लोगों को रोजगार भी मिला है। यहां तक कि बड़े भाइयों के लिए रोजगार का भी बंदोबस्त किया है।
कंपोस्ट खाद की इकाई भी खोली: शहजादा ने बताया कि गौशाला के साथ साथ उन्होंने वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने की इकाई भी लगा चुकी हैं। अब वह पनीर और दही की एक यूनिट लगाने पर विचार कर रही हैं। आज वह जिस मुकाम पर हैं, उसमें एनआरएलएम की भूमिका है।