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कोट भलवाल जेल नहीं, आतंकियों की ऐशगाह, कैदियों को मिल रही हर सुविधा

कोट भलवाल जेल में छापे के दौरान पुलिस कर्मियों ने दो मोबाइल फोन को बरामद किए, लेकिन वे सिमकार्ड बरामद नहीं कर पाए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 10:59 AM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 10:59 AM (IST)
कोट भलवाल जेल नहीं, आतंकियों की ऐशगाह, कैदियों को मिल रही हर सुविधा
कोट भलवाल जेल नहीं, आतंकियों की ऐशगाह, कैदियों को मिल रही हर सुविधा

जम्मू, जागरण संवाददाता। आतंकवाद प्रभावित जम्मू कश्मीर राज्य की जेलें लंबे समय से विवादों में रही हैं। देश की अति संवेदनशील जेल कोट भलवाल जेल एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई। जेल में कैदियों द्वारा मोबाइल फोन प्रयोग करने की सूचना पर जिला पुलिस तथा राज्य पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) के जवानों ने कोट भलवाल जेल में दबिश देकर वहां से दो मोबाइल फोन, तीन पैन ड्राइव, छोटा गैस चूल्हे के अलावा कुछ बरतन भी बरामद किए है, जिनमें एक चाकू भी शामिल है। इतना हीं नहीं जेल में छापामारी के दौरान कच्ची सब्जियां भी मिली है, जिससे पता चला है कि कैदी अपना मन पसंद खाना जेल की मेस की बजाए अलग बनाया करते थे। हालांकि यह सामान जेल परिसर के भीतर बने एक बैरक में से बरामद हुआ है। उक्त बैरक बंद पड़ा हुआ था। जेल से बरामद मोबाइल फोन तथा पैनड्राइव को जांच के लिए पुलिस के साइबर सैल में भेज दिया गया है। जम्मू कठुआ रेंज के डीआईजी विवेक गुप्ता का कहना है कि फोन तथा पैन ड्राइव से डाटा डी-काेड़ करीब दो दिनों का समय लग जाएगा। इन इलेक्ट्रानिक्स सामान की जांच से पता चला पाएगा कि मोबाइल फोन से किन नंबरों को डायल किया गया है।

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पुलिस को नहीं मिले सिमकार्ड

कोट भलवाल जेल में छापे के दौरान पुलिस कर्मियों ने दो मोबाइल फोन को बरामद किए, लेकिन वे सिमकार्ड बरामद नहीं कर पाए। फोन बरामद होने के बाद पुलिस कर्मियों ने पूरे जेल परिसर को खंगाला। पुलिस का आशंका थी कि छापेमारी की खबर से कैदियों ने सिमकार्ड को तोड़ कर फेंक ना दिया हो। हालांकि इस दौरान टूटा हुआ सिमकार्ड भी पुलिस कर्मियों को बरामद नहीं हुआ।

पहले भी विवादों में रह चुकी है कोर्ट भलवाल जेल

कोट भलवाल जेल पहले भी कई विवादों में रह चुका है। कोट भलवाल जेल के मजबूत किले को तोड़ कर दो बार खूंखार आतंकी फरार होने में कामयाब हो चुके है। वर्ष 1999 में जून महीने में मेजर इरफान समेत तीन आतंकी फरार हो गए। इसी साल सितंबर में दोबारा जेल में सुरंग बनी और इसे नाकाम बना दिया गया। दोनों मामलों में तत्कालीन जेल सुपरिंटेंडेंट पर इसकी गाज गिरी। मामला कुछ साल शांत रहा। इसके बाद 2006 में एक बार फिर जेल में कैदियों ने कब्जा कर लिया। उनकी बैरकों से सुख सुविधाओं का सामान मिला, जिसे हटा दिया गया। उस समय के जेल सुपरिंटेंडेंट गुरमीत सिंह को सस्पेंड कर दिए गया था और एडीजी का तबादला हो गया था। बहुचर्चित अमनदीप हत्याकांड मामले में वर्ष 2010 को सुपारी किलरों से बातचीत कराने और नागर सिंह का समर्थन करने पर उस समय के जेल सुपरिंटेंडेंट मिर्जा सलीम बेग सस्पेंड हुए थे और उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। मामला अभी शांत हुआ ही हुआ था कि वर्ष 2013 में जेल में बंद पाकिस्तानी कैदी सना उल्लाह पर हमला हो गया और सुरक्षा में कोताही बरतने पर जेल सुपरिंटेंडेंट रजनी सहगल को सस्पेंड कर दिया गया।

पुरानी तकनीक है जेलों में लगे जैमर

राज्य की विभिन्न जेलों में कैदियों द्वारा मोबाइल फोन के प्रयोग के मामले लगातार प्रकाश में आते रहते है। गत वर्ष श्रीनगर सेंट्रल जेल में आतंकी नवीद के भागने के बाद जेल की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगे थे। उस समय जांच में यह बात सामने आई थी कि जेल में लगे मोबाइल फोन के जैमर फोर जी मोबाइल नेटवर्क को रोक नहीं सकते। उक्त जैमर केवल टू जी नेटवर्क पर अंकुश लगाने में कामयाब होते है। श्रीनगर सेंट्रल जेल से उस समय एनआईए के छापे के दौरान करीब 25 मोबाइल और सिम बरामद हुए थे। कैदी धड़ल्ले से थ्री जी और फोर जी नेटवर्क का प्रयोग कर रहे थे। 


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