J&K : चौदह साल से गांव-गांव घूमकर जागरूकता की जला रहीं लौ
घरेलू हिंसा से बचाने का लक्ष्य लेकर सेवानिवृत्त शिक्षक संतोष खजूरिया पिछले चौदह साल से गांव-गांव घूमकर महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के लिए प्रेरित कर रही हैं।
जम्मू, ललित कुमार। चूल्हे-चौके में व्यस्त रहने वाली ग्रामीण महिलाएं अक्सर अपने अधिकारों को लेकर जागरूक नहीं होतीं। इसी कारण कई बार उनका शोषण भी होता है। ऐसी महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलाने और उन्हें घरेलू हिंसा से बचाने का लक्ष्य लेकर सेवानिवृत्त शिक्षक संतोष खजूरिया पिछले चौदह साल से गांव-गांव घूमकर महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों व अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित कर रही हैं। साथ ही उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी भी दे रही हैं। चौदह साल पहले उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को जागरूक करने का जो सफर अकेले शुरू किया था, उस सफर में आज उनके साथ 300 से 400 महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।
1994 में राष्ट्रपति पुरस्कार से हो चुकी हैं सम्मानित
शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाएं देने के लिए वर्ष 1994 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित कठुआ निवासी संतोष खजूरिया ने वर्ष 1995 में एक स्वयंसेवी संगठन महिला अधिकार का गठन किया। शुरुआत में तो वो घर की ही एक-दो महिलाओं को साथ लेकर किसी गांव पहुंच जाती थी और वहां पर ग्रामीण महिलाओं को एकत्रित कर उन्हें उनके अधिकारों का ज्ञान बांटने लगती थी। धीरे-धीरे उनका यह सफर आगे बढ़ता गया और गांव-गांव से महिलाएं उनके साथ जुड़ने लगी।
सेवानिवृत्ति के बाद महिलाआें को कर रही हैं जागरूक
वर्ष 2007 में सेवानिवृत्त होने के बाद संतोष खजूरिया ने अपना पूरा समय महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने को समर्पित कर दिया। संतोष खजूरिया कठुआ के वार्ड- 13 में शास्त्री नगर में अपना कार्यालय चलाती है और जहां कहीं भी उन्हें किसी महिला के साथ अत्याचार होने की सूचना मिलती है तो वहां पहुंच जाती है। चौदह साल के इस सफर में संतोष खजूरिया ने कठुआ, सांबा, जम्मू व ऊधमपुर के सैकड़ों गांवों में जाकर वहां जागरूकता शिविर आयोजित किए और महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया। वह हर साल वूमेन-डे व मदर्स-डे मनाती है, जिसका एकमात्र उद्देश्य महिलाओं को सशक्त करना है। इतना ही नहीं, पिछले साल संतोष खजूरिया ने हीरानगर के पंजोकेचक्क में निशुल्क सिलाई सेंटर भी खोला और वहां गांव की महिलाओं व युवतियों को तीन व छह महीने का सिलाई कोर्स करवा उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने का अवसर प्रदान किया।
संतोष खजूरिया बताती है कि जब वह बतौर शिक्षक काम कर रही थी तो उनकी कई गांवों में तैनाती हुई, जहां उन्होंने देखा कि ग्रामीण महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर अनभिज्ञ हैं और इस कारण उनका शोषण हो रहा है। संतोष खजूरिया बताती है कि इस दौरान घरेलू हिंसा के कई मामले उनके सामने आए जिन्हें देखकर उन्होंने ऐसी महिलाओं के लिए कुछ करने का फैसला लिया। शुरू में बहुत दिक्कतें आई, लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य होता चला गया।