लद्दाख को तीसरे डिवीजन के रूप में मान्यता देने की तैयारी, भाजपा को होगा सियासी फायदा
Ladakh third division. लद्दाख को कश्मीर डिवीजन से अलग कर अलग डिवीजन बनाने की योजना की तैयारी है।
जम्मू, नवीन नवाज। सर्द रेगिस्तान कहलाने वाले लद्दाख को कश्मीर डिवीजन से अलग कर अलग डिवीजन बनाने की योजना की तैयारी है। राज्यपाल प्रशासन इसका मसौदा लगभग तैयार कर चुका है और शीघ्र ही इस फैसले पर मुहर लगने की संभावना है। लेह व कारगिल के निवासी कुछ समय से भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं और लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र का दर्जा देने की मांग तेजी से उठा रहे हैं। यह एकाएक संभव नहीं है। ऐसे में राज्यपाल प्रशासन ने वैकल्पिक रास्ता खोज निकाला है। यह फैसला सिरे चढ़ता है तो लेह और कारगिल के लोगों की विकास योजनाओं के साथ-साथ रोजमर्रा के मुद्दे आसानी से हल होंगे, वहीं भाजपा के लिए अपनी चुनावी जमीन को मजबूत करने का अवसर भी मिलेगा।
इससे पूर्व 27 सितंबर को राज्यपाल सत्यपाल मलिक के नेतृत्व वाली राज्य प्रशासकीय परिषद में लेह व कारगिल स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषदों के विधायी, कार्यकारी और वित्तीय अधिकार बढ़ाने की मुहर लगा चुकी है। दोनों परिषदों को अपने कार्याधिकार क्षेत्र में कर लगाने, कर जमा करने के अलावा विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मियों की निगरानी व नियंत्रण के अलावा केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत निधि आबंटन में बढ़ोतरी का अधिकार दिया गया। अगर अलग प्रशासकीय इकाई का दर्जा देने पर मुहर लगती है तो यह राज्य में लद्दाख व राज्य के प्रशासन के संदर्भ में उनका दूसरा बड़ा फैसला होगा।
जम्मू कश्मीर के तीन हिस्से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हैं। तीनों की भौगोलिक, भाषाई और सामाजिक परिस्थितियां भी अलग-अलग हैं। लेकिन राज्य में दो ही प्रशासकीय संभाग जम्मू व कश्मीर हैं। जम्मू संभाग में रावी दरिया से लेकर पीरपंचाल के दक्षिण का पूरा इलाका है, जबकि कश्मीर संभाग में पीरपंचाल के बाएं छोर से लेकर सियाचिन की बर्फीली चोटियां हैं। जिस तरह से पीरपंचाल कश्मीर घाटी को जम्मू संभाग से अलग करने वाली एक प्राकृतिक दीवार है, उसी तरह जोजिला दर्रा कश्मीर घाटी को लद्दाख प्रांत से अलग करने और उसे जोड़ने वाला एकमात्र संपर्क है।
लद्दाख प्रांत को अलग डिवीजन या संभाग बनाने से कश्मीर घाटी कहें या कश्मीरी नौकरशाही या कश्मीरी वर्चस्व घटेगा। लगभग 40 सरकारी विभागों के संभागीय कार्यालय, निदेशालय लेह व कारगिल में बनेंगे। लद्दाख के लिए एक अलग पुलिस रेंज भी बनेगा और आइजीपी रैंक के अधिकारी भी तैनात होंगे जो अभी श्रीनगर में बैठकर ही इस इलाके को नियंत्रित करते हैं। कश्मीर संभाग के अंतर्गत लद्दाख के दोनों जिलों को कश्मीर की सेंट्रल पुलिस रेंज के साथ जोड़ा गया है। लद्दाख में अलग मंडलायुक्त होगा।
संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार, लद्दाख प्रांत को अलग डिवीजन या संभाग बनाने के मुद्दे पर गत दिनों राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अपने सलाहकारों और मुख्यसचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम के साथ विस्तृत चर्चा हुई है। उन्होंने बताया कि लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद लेह और लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद कारगिल ने इस बारे में राज्यपाल प्रशासन को एक आग्रह भी भेजा है। स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद लेह की गत दिनों हुई महासभा बैठक में भी लद्दाख को एक डिवीजन या संभाग बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ है।
स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद कारगिल के मुख्य कार्यकारी पार्षद फिरोज खान ने भी गत दिनों राज्यपाल सत्यपाल मलिक से भेंट कर कारगिल के विकास संबंधी मुद्दों को हल करने का आग्रह करते हुए लद्दाख को अलग संभाग का दर्जा देने की मांग की थी। लेह स्वायत्त परिषद के कार्यकारी मुख्य पार्षद जामियांग सिरिंग नामगयाल ने कहा कि अगर लद्दाख को एक अलग प्रशासकीय इकाई बनाया जाता है तो हमारे क्षेत्र के लोगों की अधिकांश समस्याओं को जल्द हल करने में मदद मिलेगी। हमें बराबरी के आधार पर विकास योजनाओं में हिस्सा मिलेगा, अन्यथा हम कश्मीर के सहारे ही रह जाते हैं। इसके अलावा लद्दाख में केंद्र शासित राज्य की मांग को भी किसी हद तक शांत करने किया जा सकता है,क्योंकि केंद्र शासित दर्जे का मामला एक राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इसमें केंद्र व राज्य दोनों का सहयोग जरूरी है, जबकि लद्दाख को एक अलग डिवीजन बनाना पूरी तरह प्रशासकीय विषय है जो राज्य सरकार के अधीन है।
लद्दाख में वर्ष 1951 से ही केंद्र शासित राज्य के दर्जे की मांग हाे रही है। इसके लिए यहां कई बार तीव्र जनांदोलन हुए हैं। वर्ष 1993 में तत्कालीन केंद्र सरकार पहली बार सैद्धांतिक तौर पर लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा देने को राजी हुई और अंतरिम व्यवस्था के तहत लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के गठन पर सहमति हुई। कानून, न्याय एवं कंपनी मामलों के मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर राज्य विधानसभा अधिकारों का विकेंद्रीयकरण अधिनयिम 1992 के अनुच्छेद तीन के तहत प्राप्त अधिकारों के आधार राष्ट्रपति के जरिए के लद्दाख में अंतर जिला सलाहकार परिषदों और स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के गठन का कानून लाया।
यह कानून राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौर में ही लागू होना था, लेकिन लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद एलएएचडीसी अधिनियम 1997 में तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस के दौर में पारित हुआ। लेकिन यह अधिनियम ज्यादा प्रभावकारी नहीं था। अलबत्ता, वर्ष 2002 में तत्कालीन पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार के दौरान एलएएचडीसी लेह को अधिकारों की समानता का अधिकार वर्ष 1997 के अधिनयिम में संशोधन के जरिए प्रदान किए। इसके साथ ही करगिल जिले के लिए भी एलएएचडीसी का गठन किया गया। स्वायत्त परिषदों के मुख्य कार्यकारी पार्षदों को कैबिनेट मंत्रियों के बराबर और पार्षदों को राज्य मंत्रियों के बराबर प्रोटोकाल व भत्ते प्रदान किए गए। इसके साथ ही कौंसिलों को विकास योजनाओं व प्रशासकीय कार्याें के लिए जमीनों की निशानदेही, आवंटन और कौंसिल के कर्मियों की निगरानी व नियंत्रण का अधिकार भी दिया गया।
भाजपा को होगा सियासी फायदा
लद्दाख को एक अलग प्रशासकीय इकाई का दर्जा देने से भाजपा को निकट भविष्य में होने वाले संसदीय और विधानसभा चुनावों में सियासी फायदा हो सकता है। भाजपा ने वर्ष 2014 के अपने चुनाव घोषणापत्र में लद्दाख को एक अलग केंद्र शाासित राज्य का दर्जा देने का एलान किया था। लेकिन यह वादा पूरा नहीं हुआ और इससे स्थानीय लोग उससे नाराज थे। केंद्र शाासित राज्य का यकीन दिलाने के बाद ही भाजपा पहली बार लद्दाख प्रांत की संसदीय सीट जीतने में कामयाब रही और लद्दाख यूनियन टेरीटेरी फ्रंट एलयूटीएफ के संस्थापक थुपस्तान छिवांग भाजपा के टिकट पर सांसद बने। उन्होंने गत दिनों लद्दाख की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए भाजपा और संसद की सदस्यता छोड़ दी। इससे कुछ समय पहले ही एलएएचडीसी लेह के चुनावों में भाजपा को नुकसान झेलना पड़ा। अगर राज्यपाल शाासन के दौर में लद्दाख को एक अलग प्रशासकीय इकाई बनाया जाता है तो इससे भाजपा किसी हद तक स्थानीय मतदाताओं का अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब रह सकती है।
नेशनल कांफ्रेंस-पीडीपी भी नहीं कर पाएगी ज्यादा विरोध
लद्दाख को एक अलग प्रशासकीय इकाई का दर्जा देने का नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी भी ज्यादा विरोध नहीं कर पाएगी। अगर करेंगी तो दोनों को वहां सियासी नुकसान झेलना पड़ेगा। दोनों का कारगिल जिले की दोनों विधानसभा सीटों और लेह जिले की एक विधानसभा सीट पर अच्छा प्रभाव है। इसके अलावा करगिल पर्वतीय विकास परिषद के कार्यकारी मुख्य पार्षद नेशनल कांफ्रेंस से जुड़े फिरोज खान ही हैं। वर्ष 2004 में एलयूटीएफ के समर्थन पर लद्दाख प्रांत के सभी उम्मीदवार निर्विरोध ही राज्य विधानसभा में पहुंचे थे।
राज्य का क्षेत्रवार गणित
जम्मू कश्मीर का कुल क्षेत्र 222236 वर्ग किलोमीटर है। इसमें लद्दाख का कुल क्षेत्रफल 59146 वर्ग किलोमीटर, कश्मीर संभाग का 16351 वर्ग किलाेमीटर और जम्मू संभाग का क्षेत्रफल 26293 वर्ग किलोमीटर है। राज्य में 22 जिले हैं। इनमें से दस जिले जम्मू संभाग में हैं और कश्मीर में लद्दाख प्रांत के दो जिलों समेत 12 जिले हैं। अगर लद्दाख को अलग प्रशासकीय इकाई बनाया जाएगा तो कश्मीर का राज्य में प्रशासकीय व राजनीतिक वर्चस्व घटेगा।