Lockdown Effect: लाॅकडाउन में लोगों की रसोई में आलू हुआ खास, तरह-तरह के बना रहे पकवान
सतवारी की प्रीतम कौर ने बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है घर में आलू का सेवन दोगुना हो गया है। दस-दस किलो आलू घरों में आ रहा है लेकिन उतनी ही जल्दी खत्म भी हो रहा है।
जम्मू, जागरण संवाददाता : कोरोना के इस दौर में आलू घर-घर में खास हो गया है। लॉकडाउन के चलते कामकाजी लोग, स्कूली बच्चे सभी घरों में हैं और ऐसे में आलू का सबसे ज्यादा सेवन विभिन्न पकवानों, सब्जियों के रूप में हो रहा है। इन दिनों घरों में आलू के पकौड़े, समोसे, मिर्च बड़ा, आलू टिक्की, ¨फगर चिप्स आए दिन बन रहा है। वहीं, आलू की कढ़ी, आलू पूड़ी, दम आलू पर ज्यादा जोर है। दूसरी सब्जियों में आलू ही चल रहा है। जैसे आलू गोभी, आलू बैंगन, आलू मटर, आलू शिमला मिर्च आदि। लॉकडाउन के इन दिनों में आलू सभी घरों की पसंद हैं क्योंकि यह वह विभिन्न सब्जियों में काम आता है तो वहीं कई पकवान भी इसी से बनते हैं। आलू के बारे में सभी जानते हैं कि मुश्किल के दौर में यही आलू काम आता है। यही वो सब्जी है जिसका भंडारण कर इसे लंबे समय तक रखा जा सकता है। वैसे भी आलू के दाम वाजिब ही बने हुए हैं। यही कारण है कि चाहे घर छोटा हो या बड़ा, सभी लोगों ने पांच दस किलो आलू का स्टॉक बनाकर रखा हुआ है। इससे आलू की खपत भी बढ़ गई है।
नरवाल मंडी के थोक व्यापारी राजकुमार राजा का कहना है कि इन दिनों पंजाब, राजस्थान व हिमाचल प्रदेश से आलू आ रहा है। भले ही पैदावार इस बार कम है लेकिन लॉकडाउन के दौर में व्यापारी अपना माल शीघ्रता से निकाल देना चाहता है। यही कारण है दाम वाजिब है।
गृहिणियां कहती हैं:- अभी भाव भी 15 से 20 रुपये किलो: सतवारी की प्रीतम कौर ने बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है, घर में आलू का सेवन दोगुना हो गया है। आए दिन पकवान तो बनते ही हैं लेकिन जब कोई सब्जी न मिले तो यही आलू काम आता है। इसलिए दस-दस किलो आलू घरों में आ रहा है लेकिन उतनी ही जल्दी खत्म भी हो रहा है।
केनाल रोड की सुनीता का कहना है कि आलू इसलिए भी ज्यादा खरीद लेते हैं कि पता नही कि अगले दिन कोई सब्जी मिलेगी या नहीं। ऐसे में आलू तो काम आ ही सकता है।
जानीपुर की निर्मला देवी का कहना है कि लॉकडाउन में इन दिनों सभी घर पर ही हैं। बच्चे भी कामकाज पर नहीं जा रहे। इसलिए घूम फिर कर कभी पकवान ही खा रहे हैं। कभी आलू टिक्की तो कभी पकौड़े। इस कारण आलू का सेवन बढ़ गया है। चूंकि सब्जी की दुकानें खुली रहती हैं और आलू की उपलब्धता भी हो जाती है। लेकिन फिर भी एक साथ ही कई दिनों का आलू खरीदा जाता है। यानी की ऐसा कोई दिन नही जब आलू किसी न किसी रूप में नहीं पकता हो।